4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – दसवीं क़िस्त
[पिछली क़िस्त का लिंक: एक लड़की मां नहीं बनना चाहती क्या इसलिए उससे घृणा की जानी चाहिए]
ये सच है कि पिछली कई बार से मैं ये सब तुम्हें बताना चाहती थी, लिखना चाहती थी मेरी बच्ची, लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि मैं तुम्हें क्या बताऊं. पर आखिर कब तक मैं तुमसे ये चीजें छिपा सकती हूं. तो सुनो, इस एक साल यानी 2008 में; दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कश्मीर, आंध्र, असम आदि जगहों में पता नहीं कितने लोग बम विस्फोट में मर चुके हैं. मुझे अब संख्या याद नहीं रहती कि किस जगह ब्लास्ट में कितने लोग मरे, कितने घायल हुए. जब तक पिछले धमाके की याद भी धुंधली नहीं होती, बम विस्फोट, मतृकों और घायलों के नए आंकड़े, नई सूची जारी हो जाती है! (Letter from a Mother to the Unborn)
सबसे मुश्किल है अच्छा इंसान बन पाना
अभी कई महीने पहले सूरत में शायद 18 जगह बम फूटे थे. टीवी पर खबर सुन और देख-देखकर मेरा दिमाग फिर फटने लगा था. मैंने मां को फोन लगाया और खूब रोई. रोते हुए ही पूछने लगी ‘ऐसे समाज में, ऐसे समय में कैसे बच्चा पैदा करूं मां ? क्या फायदा बच्चा पैदा करके जब हम उसे सुरक्षा नहीं दे सकते, जीने की गारंटी नहीं दे सकती?’ मां बेचारी क्या जवाब देती, अपनी बच्ची का रोना सुन के उनके तो वैसे ही कलेजा मुह को आ गया होगा. वे कहती रही ‘हिम्मत रख बेटा ऐसे नहीं करते क्या बताऊं मैं ठीक तो कुछ भी नहीं होगा खैर, पर हिम्मत तो रखनी ही पड़ेगी बेटा!’ (Letter from a Mother to the Unborn)
अभी दो-ढाई महीने ही पहले मैं और तुम्हारे पिता कनाट प्लेस में खरीदारी के लिए निकले. हम बस स्टाप पहुंचे ही थे, कि मेरी दोस्त का मैसेज आया मोबाइल पर ‘महरोली में ब्लास्ट हुआ है, घर पर ही रहना!’ हम दोनों एक-दूसरे की तरफ देखते रहे. ‘क्या करें?’ का सवाल दोनों के चेहरों पर एक साथ तैर रहा था, पर दोनों ही चुप थे. फिर मैंने और जोर से तुम्हारे पिता का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘हम साथ में हैं, चलते हैं .बम फोड़ने वाले जगह, समय और दिन के मुहूर्त नहीं निकालते, बलास्ट के लिए हर जगह और हर समय मुहूर्त खुला है. जब तक ‘वे’ टारगेट नहीं बनाते, हम सुरक्षित हैं. और जिस दिन वे हमें निशाना बना लेंगे, उस दिन हमें कोई नहीं बचा सकता .’ तुम्हारे पिता ने इस बात पर पूरी सहमति जताई और हम चले पड़े.
रास्ते में कहीं भी हमने पल भर को भी एक-दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा था. पूरे दिन एक ही बात दिमाग में घूमती रही, ‘मरेंगे तो भी साथ ही’. उस पूरे दिन में एक बार ऐसा हुआ कि मोबाइल की सिग्नल प्रॉब्लम के कारण, तुम्हारे पिता मुझसे लगभग तीन-चार मीटर की दूरी पर गए. मैं थकने के कारण जहां थी, वहीं बैठी रही .लेकिन वो सात-आठ मिनट(जितनी देर तुम्हारे पिता फोन पर रहे), पता नहीं मेरे कितने दिनों पर भारी थे मेरी जान .मैं एकटक तुम्हारे पिता को देख रही थी और बार-बार एक ही चीज सोच रही थी ‘भानु मेरे पास सुरक्षित लौट आएगा न? या कहीं मैं भानु की आंखों के आगे धमाके के साथ धुंए में तो नहीं उड़ जाऊंगी? हम मिल पाएंगे न? कहीं ये तो नहीं, कहीं वैसा तो नहीं!’
ये तीन-चार मीटर और सात-आठ मिनट की दूरी तुम्हारी मां पर कितनी भारी पड़ी थी मेरी बच्ची, मैं तुम्हें शायद ही समझा पाऊं. काश, तुम्हें कभी इतना भारी वक्त न उठाना पड़े! लेकिन मैं जानती हूं मेरी बच्ची, जिस समय और समाज में तुम जन्म लेने वाली हो, तुम्हें ऐसे पता नहीं कितने भारी लम्हों में जीना होगा मेरी जान! मुझे अफसोस है, और मैं शर्मिंदा भी हूं इस बात पर
ये नरभक्षी सियासत का दौर है मेरे बच्चे, तुम कैसे निबाहोगे?
मैं जानती हूं, दुनिया में हिंसा, द्वेष, नफरत हर पल बढ़ रही हैं. तुम्हारे इस दुनिया में आने तक और ज्यादा ऐसी हिंसक चीजें बढ़ चुकी होगीं .लेकिन ये प्रकृति, संगीत और प्यार, ये तीन चीजें हमेशा, हमेशा हिंसा से ज्यादा बड़ी हैं; ज्यादा जगह फैली हैं. तुम जब भी परेशान होओगे मेरे बच्चे अपने प्यार के पास जाना, प्रकृति की गोद में जाना, या फिर संगीत के आगोश में जाना. ये बहुत सारे दर्दों की दवा हैं!
अच्छी बात ये है कि कुदरत और संगीत का मरहम सारी दुनिया में फैला पड़ा है. तुम जहां भी होओगे, ये मरहम तुमसे सिर्फ ‘इच्छा भर की दूरी’ पर होगा, और ये सब फिर से जीवन में तुम्हारी आस्था पैदा कर देंगे मेरी जान! प्रकृति आड़े वक्त में हमेशा तुम्हें हिम्मत और हौंसला देगी मेरी बच्ची. ये दर्द में आराम दिलाएंगे. कुदरत हमेशा खून-खराबे, हिंसा और नफरत से ज्यादा ताकतवर है, प्रकृति की शरण में ऐसे असंख्य मर्जों की दवा है. असंख्य तरह के दर्द हैं यहां और कई तरह के मरहम भी हैं मेरी बच्ची. तुम आओ. दर्द और मरहम की इस दुनिया में तुम्हारा स्वागत है मेरे नूर!
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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