पिछले दिनों एक न्यूज चैनल द्वारा कराये गये सर्वे में देशभर के मुख्यमंत्रियों में सबसे अलोकप्रिय बने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत. इससे पिछले वर्ष इस सूची में उनका स्थान दूसरा था. इसके बाद से सोशियल मिडिया पर मुख्यमंत्री को लेकर तरह तरह की टिप्पणी हो रही है. टिप्पणी से ज्यादा फिलहाल मुख्यमंत्री का मजाक बन रहा है. क्या पक्ष क्या विपक्ष क्या आम जनता मुख्यमंत्री सभी के निशाने पर हैं.
(Least Popular CM of India)
राष्ट्रीय चैनल के इस सर्वे को आये 24 घंटे नहीं हुये थे कि एक अन्य चैनल ने सर्वे कर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को उत्तराखंड में ईमानदार छवि का सबसे लोकप्रिय नेता घोषित कर दिया. यह किस प्रकार का डैमेज कंट्रोल था समझ से परे है.पर सवाल यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री का सबसे अलोकप्रिय होना क्या केवल मजाक का विषय हो सकता है?
खैर, चुनाव से लगभग एक वर्ष पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का भारत में सबसे अलोकप्रिय होना जितनी बड़ी समस्या भाजपा के लिये है उतनी ही बड़ी समस्या है उत्तराखंड के मतदाताओं के लिये. बीस साल से भाजपा और कांग्रेस के बीच यहां का मतदाता पेंडुलम की तरह झूल रहा है. क्षेत्रीय दलों का वजूद दोनों पार्टियों ने मिलकर खत्म ही कर दिया है. रही बात आम आदमी पार्टी में भविष्य देखने की तो उसके कार्यकर्ता अभी तक ख़ुद ही पहाड़ चढ़ने में असर्मथ रहे हैं हां मैदानी इलाकों में आप की शोशेबाजी पूरे जोरों पर है.
(Least Popular CM of India)
उत्तराखंड का मतदाता राजनैतिक रूप से कितना जागरूक है इस बात से पता चलता है कि आज भी यहां हफ्ते में कहीं न कहीं बच्चे के खेत में जंगल में पैदा होने की खबर, रास्ते में किसी गर्भवती या उसके नवजात की मृत्यु की खबर आती ही है. फिर भी बीस सालों से कभी किसी जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को लेकर कोई आन्दोलन नहीं हुआ.
पर्वतीय क्षेत्र की संकल्पना पर बने इस पहाड़ी राज्य में बीस सालों में एक भी पर्वतीय जिला ऐसा नहीं है जिसके पास सभी सुविधाओं से संपन्न अस्पताल हो. स्वास्थ्य जैसा मूलभूत मुद्दा भी हमारी राजनैतिक मांग का कभी हिस्सा नहीं रहा. मुख्यमंत्री किसी भी राज्य का चेहरा होता है, त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड का चेहरा हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत का अलोकप्रिय होना सिवा इस राज्य के लोगों की हार के कुछ नहीं है.
(Least Popular CM of India)
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