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फील्ड मार्शल मानेकशॉ से सीखो सच्ची लीडरशिप

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सैम बहादुर को जानिए

फील्ड मार्शल मानेकशॉ का नाम जुबान पर आते ही आंखों के सामने शारीरिक रूप से एक चुस्त-दुरुस्त और मानसिक रूप से एक बेहद सजग रहने वाले आर्मी ऑफिसर की छवि आती है. एक ऐसा ऑफिसर जिसे आज के युवा अफसर भी अपना आदर्श मानते हैं. मानेकशॉ से जुड़ी कई बातें हैं जो उनके व्यक्तित्व को उजागर करती हैं. खासकर, पाकिस्तान से 1971 के युद्ध के समय उनकी तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बातचीत को लेकर कई चटपटी बातें हैं, जो मानेकशॉ की लीडरशिप के खास अंदाज को सामने लाती हैं. जब इंदिरा गांधी ने पहली बार उन्हें बुलाकर पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी की बाबत पूछा था, तो उन्होंने साफ कह दिया था कि वे युद्ध जीतने के लिए करते हैं और अभी जीतने वाली तैयारी नहीं है.
(The leadership of Field Marshal Manek Shaw)

इंदिरा गांधी को मॉनसून के गुजरने तक इंतजार करना पड़ा था. “अब हम युद्ध के लिए तैयार हैं स्वीटी” मानेकशॉ ने बाद में चिंतित इंदिरा गांधी को कहा था. वे शायद अकेले व्यक्ति थे जो इंदिरा गांधी को स्वीटी पुकार सकते थे. इंदिरा गांधी से अपने करीबी संबंधों के बारे में मानेकशॉ ने उन पर बनी डॉक्यूमेंट्री “अ लाइफ लिव्ड सच” में खुलकर बात की है. एक बार इंदिरा गांधी ने उनसे पूछ लिया था कि तुम तख्तापलट तो नहीं करने वाले. तब मानेकशॉ ने अपने अंदाज में उनके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाकर उन्हें बताया था – देखो हम दोनों की ही नाक लंबी है, पर मैं दूसरों के मामलों में अपनी नाक नहीं घुसाता.

फील्ड मार्शल मानेकशॉ को आदर्श आर्मी ऑफिसर के रूप में देखने की सबसे बड़ी वजह उनमें लीडरशिप क्वॉलिटी थी. जितना वे अपने साथी अफसरों और राजनैतिक हलकों में सम्मान से देखे जाते थे, जवानों के बीच भी वे उतना ही लोकप्रिय थे. मानेकशॉ लीडरशिप की बात करते हुए सबसे जरूरी प्रफेशनल नॉलेज को बताते थे. वे अपने मातहत आर्मी कमांडरों को अक्सर कहते थे – तुम भविष्य के कमांडर हो. फैसले लो और एक बार फैसला ले लिया तो उसकी पूरी जिम्मेदारी भी लो. अपने साथियों या मातहतों पर असफलता का ठीकरा मत फोड़ो.
(The leadership of Field Marshal Manek Shaw)

मानेकशॉ श्रेष्ठ लीडरशिप के लिए प्रफेशनल नॉलेज के बाद ईमानदारी, निष्पक्षता और न्याय को सबसे जरूरी मानते थे. उनका कहना था कि एक व्यक्ति जो अपने बर्ताव और फैसलों में निष्पक्ष नहीं है, ईमानदार नहीं है और जो न्याय करना नहीं जानता, वह कभी अच्छा लीडर नहीं बन सकता. मानेकशॉ कहते हैं – कोई इंसान सजा नहीं पाना चाहता लेकिन वह सजा को स्वीकार करता है क्योंकि वह जानता है कि एक रसूखदार के बेटे को भी वही सजा मिल रही है. किसी व्यक्ति को यह रास नहीं आता कि उसके जूनियर को उससे ऊपर बैठा दिया गया पर वह फिर भी यह इज्जत से स्वीकार करेगा बशर्ते कि ऐसा नियमों के तहत किया जा रहा हो और उस जूनियर में उससे बेहतर क्वॉलिटीज हों. अयोग्य व्यक्ति को लीडरशिप दिए जाने को जनरल मानेकशॉ ने सबसे खतरनाक बताया.

यह मानेकशॉ की लीडरशिप का ही करिश्मा था कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान को महज 13 दिन में परास्त कर दिया. पर युद्ध की क्रूरता के बाद मानेकशॉ का मानवीय चेहरा भी उजागर हुआ जब उन्होंने पाकिस्तानी युद्धबंदियों की देखभाल करने में कोई कसर न छोड़ी और अपनी पत्नी को भी इस काम में उतार दिया. अगर आज भी सेना के युवा अफसर उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, तो इसकी वजह उनके व्यक्तित्च की यह संपूर्णता है. किसी शख्स के पास अगर प्रफेशनल नॉलेज है, वह अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित है, वह निडर है और मानवीय भी, तो कौन उसके जैसा नहीं बनना चाहेगा.
(The leadership of Field Marshal Manek Shaw)

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

इसे भी पढ़ें: इस कहानी से सीखो सबक जिंदगी का

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