लैंसडाउन उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल का एक पौड़ी जिले का एक खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है. 2001 की जनगणना के आधार पर लैंसडाउन की आबादी सात हजार से कुछ ज्यादा थी.
कालीडांडा पहाड़ी की ढलान पर बसे लैंसडाउन को अंग्रेजों द्वारा एक सैन्य छावनी के रूप में स्थापित किया गया था. ब्रिटिश भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडाउन के नाम पर इस जगह का नाम रख दिया गया. उस समय इसे कालीडांडा या कालूडांडा ही कहा जाता था.
पांचेक किमी के इस छावनी क्षेत्र को अंग्रेजों द्वारा उस समय एक आधुनिक कैन्टोमेंट के तौर पर विकसित किया गया था. लैंसडाउन छावनी में मुख्यतः गोरखा व गढ़वाल पलटन का केंद्र हुआ करता था. उस वक़्त यहाँ पर नागरिक सुविधाएँ न के बराबर ही हुआ करती थीं, यह मुख्यतः सैन्य केंद्र ही हुआ करता था.
लैंसडाउन आजादी के आन्दोलन की कई स्मृतियों से भी जुड़ा हुआ है. आजादी के बाद लैंसडाउन एक कस्बे के रूप में भी विकसित हुआ. आज भी यह क्षेत्र पूरी तरह सेना की देख-रेख में है. अब यह गढ़वाल रायफल्स का गढ़ है. लैंसडाउन में गढ़वाल रायफल्स का म्यूजियम और वार मेमोरियल भी है. इस म्यूजियम में गढ़वाल रायफल्स से जुड़ी गौरवशाली चीजें देखी जा सकती हैं.
सेना के गौरव से जुड़ा होने के अलावा लैंसडाउन मनमोहक प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर हिल स्टेशन भी है. यहाँ के ऊंची पहाड़ी को टिप इन टॉप कहा जाता है, यहाँ से हिमालय की बर्फीली चोटियों का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है. लैंसडाउन अपने सूर्योदय और सूर्यास्त के दिलकश दृश्यों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. लैंसडाउन की पहाड़ियों से सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का ही भव्य दृश्य दिखाई देता है. लैंसडाउन में एक छोटा सा तालाब ही है जिसे भुल्ला ताल कहा जाता है, सैलानी यहाँ नौकायन का आनंद लिया करते हैं.
प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ यहाँ पर धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी काफी जगहें मौजूद हैं. एक शताब्दी पुराना सेंट मैरीज चर्च, ताड़केश्वर मंदिर. शिव के मंदिर ताड़केश्वर को सिद्ध पीठ भी माना जाता है. यह मंदिर ताड़ और देवदार के जंगल से भी घिरा हुआ है.
लैंसडाउन की औसत साक्षरता दर 86% है, जो की साक्षरता के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है.
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लेख बहुत संक्षिप्त लगा । कुछ फोटो भी शामिल किए जा सकते थे।