उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों के हक हकूकों को बनाए रखने के लिए पिछले 4 साल से सख्त भू कानून का हल्ला खूब मचा हुआ था. प्रदेश में सख्त भू कानून लागू करने की मॉग को लेकर राज्य के कई शहरों और छोटे कस्बों में प्रदर्शन हुए. उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने गत 24 अक्टूबर 2024 को देहरादून में विशाल ताण्डव रैली निकाली. यह सब प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत किया जा रहा था, ताकि एक बेहतर भू कानून उत्तराखण्ड में लागू किया जा सके.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार ने भी खूब जोर-जोर से इस बात को प्रचारित और प्रसारित किया कि वह उत्तराखण्ड के मूल निवासियों की जन भावनाओं के अनुरूप एक सख्त भू कानून शीघ्र ही राज्य में लागू करेगी. जिससे यहां के निवासियों के हक हकों के रक्षा के साथ ही जमीनों के अंधाधुंध खरीफ फरोख्त पर भी लगाम लगेगी. आए दिन प्रदेश सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, पदाधिकारी द्वारा इस बारे में खूब बयान बाजी की जा रही थी. उससे ऐसा लग रहा था कि अब जो भू कानून बनेगा, वह पूरी तरह से उत्तराखण्ड के हितों की रक्षा करेगा.
तीन-चार साल तक सख्त भू कानून लागू करने का खूब हल्ला मचाने और पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में कमेटी बनाने और उसके बाद उस कमेटी की रिपोर्ट को लागू करवाने के बारे में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई. इतना सब करने के बाद विधानसभा के बजट सत्र में प्रदेश सरकार ने भू कानून के नए संशोधन का जो मसौदा सदन में रखा और गत 21 फरवरी 2025 को वह सदन में पारित भी हो गया. उसे अगर गौर से देखें तो यह पूरी तरह से “खोदा पहाड़, निकली चुहिया” वाले कहावत को ही चरितार्थ करता है और कुछ नहीं. इसमें कहीं भी जमीनों की अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर रोक नहीं लगने वाली है. अपितु यह एक तरीके से यहॉ के लोगों के साथ प्रदेश सरकार द्वारा की गई धोखाधड़ी ही साबित होने वाली है.
प्रदेश मंत्रिमंडल की गत 19 फरवरी 2025 को विधानसभा में हुई बैठक में बहुचर्चित भू कानून संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गई. जिसमें हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर बाकी 11 जिलों में उत्तराखंड से बाहर के लोग कृषि और उद्यान के लिए जमीन नहीं खरीद पाएंगे, इसका प्रावधान किया गया. अभी तक उत्तराखंड से बाहर के लोग बिना मंजूरी के 250 वर्ग मीटर और मंजूरी लेकर सारे 12.50 एकड़ तक कृषि भूमि, खेती और उद्यान के लिए खरीद सकते थे. उत्तराखंड से बाहर के लोगों को अभी तक जिलाधिकारी स्तर से जमीन खरीदने की आसानी से मंजूरी मिल रही थी.
इस व्यवस्था को मंत्रिमंडल ने पूरी तरह समाप्त कर दिया. अब जिलाधिकारी स्तर से मंजूरी देने के प्रावधान को ही समाप्त कर दिया गया है. अब कृषि व उद्यान को छोड़कर अन्य किसी विशेष प्रयोजन के लिए किसी को जमीन खरीदनी होगी तो मंजूरी जिला अधिकारी नहीं देंगे, बल्कि प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा. शासन के स्तर पर ही उस पर निर्णय होगा. मंत्रिमंडल के इस निर्णय के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि नया भू कानून लागू होने के बाद पहाड़ पर सक्रिय लैंड बैंक माफिया पर शिकंजा कसेगा. कृषि व उद्यान के नाम पर जमीनें को खरीद कर लैंड बैंक बनाने वालों को इससे झटका लगेगा और पहाड़ पर जमीनों का बेहतर प्रबंधन होगा. साथ ही विकास योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध हो सकेगी.
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प्रदेश मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद सदन में 20 फरवरी 2025 को पेश किए गए उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) संशोधन विधेयक – 2025 के अनुसार, नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका, छावनी परिषद क्षेत्र की सीमा के अंतर्गत आने वाले और समय-समय पर नगर निकायों में सम्मिलित किया जा सकने वाले क्षेत्रों को छोड़कर यह संपूर्ण उत्तराखंड में लागू होगा. विधेयक के अनुसार, उत्तर प्रदेश जिम्मेदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम-1950 ( उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 1 वर्ष -1951) (अनुकूलन एवं रूपांतरण आदेश -2001) जिसे इसके बाद मूल अधिनियम कहा गया है, की धारा-एक की उप धारा -2 को निम्न में प्रतिस्थापित कर दी जाएगी अर्थात यदि कोई क्षेत्र 7 जुलाई 1949 के बाद किसी नगर निकाय क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है तो अनुसूची- 2 के स्तंभ तीन में वर्णित विषयों के संबंध में स्तंभ 4, 5, 6 में वर्णित न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत सम्मिलित माने जाएंगे.
संशोधित भू कानून के अनुसार, अब नगर निकाय सीमा से बाहर भी दूसरे राज्यों के लोगों के लिए 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने के मानक को और सख्त किया गया है. अब दूसरे राज्य के लोगों को जमीन खरीदने के लिए सब रजिस्ट्रार के समक्ष बाकायदा कानूनी शपथ पत्र देकर बताना होगा कि उनके पास उत्तराखंड में कहीं जमीन नहीं है. नई व्यवस्था में एक परिवार एक बार ही उत्तराखंड में 250 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकेगा. शपथ पत्र झूठा निकलने पर सरकार जमीन जफ्त कर लेगी. उत्तराखंड में नगर निकाय की सीमा से बाहर दूसरे राज्य के लोगों के लिए सिर्फ 250 वर्ग मीटर जमीन खरीदने का नियम है.
दूसरे राज्य के लोगों द्वारा इस नियम के दुरुपयोग के मामले सरकार के संज्ञान में आए. एक ही परिवार के लोगों ने पति-पत्नी, बेटे, बेटी के नाम से अलग-अलग 250-250 वर्ग मीटर के कई भूखंड खरीद लिए. पिछले दिनों विभिन्न जिलों में जमीनों की जांच के दौरान सरकार के स्तर पर कार्रवाई भी की गई. ऐसे कई मामले सामने आए तो सरकार ने सख्ती दिखाते हुए कई जगह जमीनों को जफ्त भी किया. अब नई व्यवस्था में जमीन खरीद के समय कानूनी शपथ पत्र के नियम को सख्त किया जा रहा है. शपथ पत्र में साफ करना होगा कि परिवार के किसी भी सदस्य के नाम पर उत्तराखंड में कहीं जमीन/भूखंड नहीं है. शपथ पत्र की पड़ताल भी कराई जाएगी.
बाहर के लोग शपथ पत्र देकर जो भी जमीन खरीदेंगे, उसे उनके आधार कार्ड से लिंक किया जाएगा. यह व्यवस्था इसलिए की जा रही है ताकि उस आधार कार्ड पर उत्तराखंड में कहीं और जमीन खरीदने का प्रयास होने पर इसकी सटीक जानकारी मिल सकेगी. साथ ही जमीन खरीद का भी ब्यौरा अपडेट होता रहेगा. नए भू कानून में नगर निकाय सीमा में भी दूसरे राज्य के लोगों के लिए व्यवस्था सख्त की जा रही है. नगर निकाय सीमा में बाहरी लोगों ने यदि कृषि भूमि खरीद कर तय भू उपयोग से हटकर उसका इस्तेमाल किया तो भू कानून के प्रावधानों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी.
नया कानून के लागू होने पर निकाय सीमा में यदि कृषि भूमि खरीदी है, तो उसका प्रयोग सिर्फ और सिर्फ खेती के लिए ही करना होगा. अभी तक उत्तराखंड में नगर निकाय सीमा के भीतर बाहरी लोगों की जमीन खरीद की छूट है. भले ही जमीन आवासीय हो या कृषि भूमि. नया भू कानून लागू होने के बाद जमीन खरीदते समय दूसरे राज्य के खरीदार को अपनी मंशा और जमीन के उपयोग की भी स्पष्ट जानकारी देनी होगी. अगर किसी भी तरह से भूमि का दूसरा इस्तेमाल किया जाता है तो प्रशासन स्तर से जमीन को सीधे सरकार के कब्जे में लेने की कार्रवाई की जाएगी.
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संशोधित भू कानून के अनुसार अब हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों को छोड़कर अन्य 11 जिलों में कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी उत्पादन, बैमौसमी सब्जियां, औषधि पादपों, सुगंधित पुष्प, मसालों के उत्पादन, वृक्षारोपण, पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, पशुधन प्रजनन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, कृषि, फल संस्करण, चाय बागान, वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं के लिए जमीन 30 साल के लीज पर दी जा सकेगी. कृषि व उद्यान से संबंधित जमीनों को बचाने के साथ ही उद्योग निवेश की भी व्यवस्था की गई है, ताकि राज्य का विकास अवरूद्ध ना हो. इसके लिए अस्पताल, स्कूल-कॉलेज, उद्योग, होटलों के लिए कड़े प्रावधान के साथ ही जमीन उपलब्ध हो पाएगी.
इन कार्यों के लिए कृषि और उद्यान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी सूरत में नहीं हो सकेगा. गरीबों के लिए सस्ते मकान बनाने के लिए भी जमीन उपलब्ध हो सकेगी. राज्य में जिन लोगों के पास 2003 से पहले की जमीन है, उन्हें ही भू कानून के कड़े प्रावधानों से राहत मिल सकेगी. बिना मंजूरी लिए पूर्व में जमीन खरीदने वालों के खिलाफ जमीन जप्त किए जाने की कार्यवाही होगी. राज्य में उद्योगों के लिए जमीन खरीद की मंजूरी देने से पहले एक सख्त प्रक्रिया से गुजरना होगा. निवेश करने वालों को निवेश की मात्रा की जानकारी देनी होगी. इससे कितना रोजगार सृजित होगा, राज्य को होने वाले लाभ की सूचना देने के साथ ही प्लांट मशीनरी का भी प्रस्ताव देना होगा. इन तमाम प्रस्तावों का आकलन किया जाएगा. सभी विभागों से एक अभिहित अधिकारी नामित किया जाएगा. उद्योगों को बढ़ावा देने को नोटिफाई थ्रस्ट सेक्टर विकसित किए जाएंगे.
विधानसभा के बजट सत्र में 21 फरवरी 2025 को मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 पर चर्चा के दौरान कहा कि यह संशोधन भू सुधारों में अंत नहीं, अपितु एक शुरुआत है. राज्य सरकार ने जन भावनाओं के अनुरूप भू सुधारों की नींव रखी है. भू प्रबंधन एवं भू सुधार पर आगे भी अनवरत रूप से कार्य किया जाएगा.
मुख्यमन्त्री ने कहा कि राज्य सरकार ने राज्य की जनता की जनभावनाओं एवं अपेक्षाओं के अनुरूप निर्णय लिया है. सरकार कई नए महत्वपूर्ण मामलों पर ऐतिहासिक निर्णय ले रही है. उन्होंने कहा हमारा उत्तराखण्ड के संसाधनों, जमीनों को भूमाफियाओं से बचाने का संकल्प है. जिन उद्देश्यों से लोगों ने जमीन खरीदी है, उसका उपयोग नहीं दुरुपयोग हुआ, ये चिंता हमेशा मन में थी. उन्होंने कहा उत्तराखण्ड में पर्वतीय इलाकों के साथ मैदानी इलाके भी हैं. जिनकी भौगोलिक परिस्थिति एवं चुनौतियां अलग-अलग हैं. उन्होंने कहा जब से अटल जी ने उत्तराखण्ड के लिए औद्योगिक पैकेज दिया, तब से राज्य सरकार बड़ी संख्या में औद्योगीकरण की ओर जा रही है. ऐसे में राज्य में आने वाले असल निवेशकों को कोई दिक्कत न हो, निवेश भी न रुके. उसके लिए इस नए संशोधन / कानून में हमने सभी को समाहित किया है.
मुख्यमन्त्री ने कहा कि राज्य सरकार सबकी जन भावनाओं के अनुरूप कार्य कर रही है. हम लोकतांत्रिक मूल्यों पर विश्वास रखते हैं. बीते कुछ वर्षों में देखा जा रहा था कि प्रदेश में लोगों द्वारा विभिन्न उपक्रम के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीनें खरीदी जा रही थीं. उन्होंने कहा भू प्रबंधन एवं भू सुधार कानून बनने के पश्चात इस पर पूर्ण रूप से लगाम लगेगी. इससे असली निवेशकों और भू माफियाओं के बीच का अन्तर भी साफ होगा. राज्य सरकार ने बीते वर्षों में बड़े पैमाने पर राज्य से अतिक्रमण हटाया है. वन भूमि और सरकारी भूमियों में से 3461.74 एकड़ वन भूमि से कब्जा हटाया गया है. यह कार्य पहली बार हमारी सरकार ने किया. इससे इकोलॉजी और इकॉनमी दोनों को संरक्षण मिला है.
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मुख्यमन्त्री ने कहा कि राज्य में कृषि एवं औद्योगिक प्रयोजन हेतु खरीद की अनुमति, जो कलेक्टर स्तर पर दी जाती थी, उसे अब 11 जनपदों में समाप्त कर केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर से निर्णय लिए जाने का प्रावधान किया गया है. किसी भी व्यक्ति के पक्ष में स्वीकृत सीमा में 12.5 एकड़ से अधिक भूमि अंतर्करण को 11 जनपदों में समाप्त कर केवल जनपद हरिद्वार एवं उधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर पर निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने कहा आवासीय परियोजन हेतु 250 वर्ग मीटर भूमि क्रय हेतु शपथ पत्र अनिवार्य कर दिया गया है. शपथ पत्र गलत पाए जाने पर भूमि राज्य सरकार में निहित की जाएगी. सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों के अंतर्गत थ्रस्ट सेक्टर एवं अधिसूचित खसरा नंबर भूमि क्रय की अनुमति, जो कलेक्टर स्तर से दी जाती थी, उसे समाप्त कर अब राज्य सरकार के स्तर से दी जाएगी.
मुख्यमन्त्री धामी ने कहा इसके साथ की नए कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं. उन्होंने कहा सरकार ने गैरसैंण में भी हितधारकों, स्टेकहोल्डर से विचार लिए थे. इस नए प्रावधानों में राज्यवासियों के विचार और सुझाव भी लिए गए हैं. सभी जिलों के जिलाधिकारियों एवं तहसील स्तर पर भी अपने जिलों में लोगों से सुझाव लिए गए. सभी के सुझाव के अनुरोध पर ये कानून बनाया गया है. उन्होंने कहा उत्तराखण्ड राज्य का मूल स्वरूप बना रहे, यहॉ का मूल अस्तित्व बचा रहे, इसके लिए इस भू सुधार किए गए हैं. उन्होंने कहा राज्य की डेमोग्राफी बची रहे, इसका विशेष ध्यान रखा गया है.
मुख्यमन्त्री ने बताया कि प्रदेश में औद्योगिक, पर्यटन, शैक्षणिक, स्वास्थ्य तथा कृषि एवं औद्यानिक प्रयोजन आदि हेतु अतिथि तक राज्य सरकार एवं कलेक्टर के स्तर से कुल 1883 भूमि क्रय की अनुमति प्रदान की गयी. उक्त प्रयोजनों / आवासीय प्रयोजनों हेतु क्रय की गयी भूमि के सापेक्ष कुल 599 भू-उपयोग उल्लंघन के प्रकरण प्रकाश में आये हैं. जिनमें से 572 प्रकरणों में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश-2001) की धारा 166/167 के अन्तर्गत वाद योजित किये गये हैं तथा 16 प्रकरणों में वाद का निस्तारण करते हुए 9.4760 हेक्टेयर भूमि राज्य सरकार में निहित की गयी है. अवशेष प्रकरणों में कार्यवाही की जा रही है.
सबसे आश्चर्यजनक यह है कि भू कानून में किया गया कथित संशोधन व्यापक बहस के बिना ही सदन में पारित हो गय. इस कानून को लेकर सदन के अंदर भाजपा के विधायकों की चुप्पी तो समझ में आती है. भाजपा के किसी विधायक के अंदर यह हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी ही सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाती. पर कांग्रेस के विधायकों ने भी इसकी खामियों पर बहुत कुछ सदन के अंदर नहीं बोला. सदन में विधेयक के पारित हो जाने के बाद कांग्रेस विधायक अब बयानबाजी कर रहे हैं. जहां उनको इस विधेयक के कुछ प्रावधानों पर खुलकर सवाल उठाने चाहिए थे, वहां उन्होंने चुप्पी साध का रखी.
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इतने महत्वपूर्ण विधेयक पर सदन में सत्ता और विपक्ष द्वारा व्यापक बहस क्यों नहीं की गई? इसमें जो भी खामियां हैं और जिन पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, यह सवाल सदन के अंदर विधायकों ने क्यों नहीं उठाए? क्यों बिना किसी संशोधन के जल्दी बाजी में इसे पारित कर दिया गया? यह एक बड़ा सवाल है इसके पीछे सरकार की क्या मंशा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चाहते थे कि सदन के अंदर कांग्रेस इसके कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए तो उस बहाने इसे प्रवर समिति को भेज दिया जाए. पर कांग्रेस ने इस पर कोई सवाल ना उठाकर इस कथित संशोधन वाले विधेयक को सदन में पारित हो जाने दिया. पक्ष और विपक्ष के बीच भू कानून के संशोधनों को लेकर अंदर खाने क्या खिचड़ी पक रही थी? यह अभी बाहर आना बाकी है.
पिछले तीन-चार साल से जिस सख्त भू कानून का ढिंढोरा भारतीय जनता पार्टी और प्रदेश सरकार पीट रही थी, वह भू कानून में किए गए लचर संशोधनों के बाद पूरी तरह से राज्य की जनता, विशेष कर पहाड़ की, को ठगे जाने की तरह दिखाई दे रहा है. पहला यह कि राज्य के सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले दो मैदानी जिलों ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार को क्यों, किसके दबाव में और किन का हित साधने के लिए इस कानून से बाहर रखा गया है? यह दोनों जिले क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य के सबसे छोटे जिलों में शामिल हैं. उसके बाद भी सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व होने के कारण यहां इस समय विधानसभा की 20 सीटें हैं.
जिनमें से 11 सीटें हरिद्वार जिले में और 9 सीटें ऊधमसिंह नगर जिले में हैं. जिस तरह से इन जिलों को एक सोची-समझी साजिश के तहत नए संशोधित भू कानून से बाहर रखा गया है, उससे यह तय है कि आने वाले कुछ ही सालों में इन दोनों जिलों में जनसंख्या का घनत्व बहुत तेजी के साथ बढ़ेगा. जो नए परिसीमन के बाद राज्य की अवधारणा को पूरी तरह से खत्म कर देगा और इन दो जिलों में ही 25 से अधिक विधानसभा सीटें हो जायेंगी. ऐसी स्थिति में उत्तराखंड के पहाड़ी राज्य होने का औचित्य ही पूरी तरह से धाराशाही हो जाएगा. प्रदेश सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने यह सबसे बड़ा षड्यंत्र राज्य के पहाड़ी जिलों के लिए रचा है. इसे समय पर सोचने और समझने की आवश्यकता है.
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सरकार का दावा है कि बाहर के लोग 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीद पाएंगे और एक परिवार में से एक ही सदस्य यह भूखंड खरीद सकेगा. परिवार के अन्य सदस्यों बेटा, पत्नी, बहू आदि भूखंड नहीं खरीद पाएंगे. इसके लिए भूखंड खरीदने वाले का आधार कार्ड जमीन के कागजों के साथ लिंक किया जाएगा, ताकि अगर वह दूसरी जगह पर भूखंड खरीदना है तो इसकी जानकारी मिल सके. यहां पर सवाल यह है कि भूखंड खरीदने पर परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड तो लिंक नहीं होंगे. आधार कार्ड तो केवल उसी व्यक्ति का लिंक होगा, जिसके नाम से भूखंड खरीदा जाएगा. ऐसी स्थिति में परिवार का दूसरा सदस्य दूसरी जगह पर भूखंड खरीदेगा तो इस पर रोक कैसे लगेगी?
इसी संशोधित भू कानून में एक लचर व्यवस्था यह भी है कि सरकार यह दावा कर रही है कि हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य 11 जिलों में कोई भी बाहर का व्यक्ति किसी भी तरह से जमीन नहीं खरीद पाएगा. वहीं दूसरी ओर 19 से अधिक ऐसे काम हैं, जिनके लिए 30 साल की लीज पर जमीन देने की बात कही गई है. इस व्यवस्था में भी सरकार का दावा है कि कृषि और उद्यान से संबंधित जमीनों का उपयोग नहीं किया जाएगा. तब यह जमीन आएगी कहां से? वह जमीन कौन सी होगी? जो इन विभिन्न कार्यों के लिए 30 साल की लीज पर दी जाएगी. इसी तरह की लचर कानूनी व्यवस्थाओं से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सरकार की मंशा राज्य की जमीनों को खुर्द बुर्द होने से बचाने की नहीं, अपितु सख्त भू कानून के नाम पर कानून, कानून खेलने की है और कुछ नहीं.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
भू कानून में संशोधन पर भाकपा माले के उत्तराखण्ड राज्य सचिव इन्द्रेश मैखुरी कहते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार द्वारा उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम 1950) में संशोधन के लिए लाया गया विधेयक, जिसे आम बोलचाल की भाषा में भू कानून कहा जा रहा है, एक ऐसा कानून है, जो जमीनों की लूट को रोकता नहीं है, बल्कि लूट के रास्ते को घुमावदार बनाता है.
त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते 2018 में औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन की अधिकतम सीमा को खत्म करने के लिए उक्त अधिनियम में धारा 154(2) जोड़ी गयी. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो कानून लाए हैं, उसमें 154(2) को खत्म करके, इससे मिलते जुलते प्रावधान को 154 (2 क) में लिख दिया गया है. इस धारा के तहत तो भूमि हस्तांतरण केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में होगा, लेकिन यह भी व्यवस्था है कि इस कानून के प्रावधान नगर निकाय क्षेत्रों में लागू नहीं होंगे.
इसके साथ ही इस विधेयक की धारा -156 में किए गए संशोधन के तहत पूरे प्रदेश में खेती, बागवानी से लेकर वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं तक कई सारे उद्देश्यों के लिए भूमि 30 साल तक की लीज पर ली जा सकती है. इसका आशय यह है कि पूरे प्रदेश की जमीनें ही भू भक्षियों के निशाने पर होंगी.
त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने भू उपयोग बदलने के संदर्भ में धारा 143 में उपधारा (क) जोड़ कर प्रावधान किया था कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदी गयी कृषि भूमि का भू उपयोग स्वतः ही बदल जाएगा, चूंकि इस संशोधन अधिनियम में इस पर कोई बात नहीं कही गयी है तो त्रिवेंद्र रावत द्वारा लाया गया यह प्रावधान अभी भी बदस्तूर जारी रहेगा.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू कानून के संदर्भ में अगस्त 2021 में पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने से लेकर अब तक जितना लंबा समय इस प्रक्रिया में लिया, उतने समय में तो पूरा कानून ही नए सिरे से लिखा जा सकता था, लेकिन उसके बजाय ऐसे संशोधन लाए गए हैं, जो बड़े भू भक्षियों से प्रदेश की जमीनों की रक्षा करने में नाकाम रहेंगे.
भूमि के संदर्भ में उत्तराखंड की सबसे पहली जरूरत है कि भूमि बंदोबस्त किया जाए. साथ ही भूमि सुधार हो, भूमिहीनों में भूमि का वितरण हो, खास तौर पर पहाड़ में जो दलित भूमिहीन हैं उनको. कृषि भूमि के संरक्षण का कानून बनाया तथा पर्वतीय कृषि को उत्पादक व लाभकारी बनाने के ठोस उपाय किए जाएं. साथ ही प्रदेश में बंजर हो चुकी 88,141 हेक्टेयर भूमि को भी उपजाऊ बनाने के लिए ठोस उपाय किए जाएं.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
कथित नए भू कानून पर अपनी प्रतिक्रिया में उत्तराखंड महिला मंच ने इस संबंध में 23 फरवरी को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि कथित सशक्त भू कानून का प्रस्ताव विधानसभा के बजट सत्र में प्रस्तुत हुआ और अगले ही दिन 21 फरवरी को चंद घंटों में बिना किसी सार्थक चर्चा-विचार विमर्श के यह पारित भी हो गया. दुर्भाग्य है कि उत्तराखंड विधानसभा की यही परंपरा रही है. उत्तराखंड में बहु प्रचारित हिंदी अखबारों ने तो पहले से ही इस बारे में अपनी प्रकाशित रिपोर्टों के माध्यम से इसे सशक्त भू कानून व मुख्यमंत्री के क्रांतिकारी कदम के रूप में इसके गुणगान का प्रचार प्रसार शुरू कर दिया था. माहौल यही बनाया जा रहा था कि इस कानून के बन जाने के बाद तो पूंजीपतियों के द्वारा निवेश के नाम पर या भू माफियाओं के द्वारा जो जमीनों की लूट चली आ रही थी, उस पर अब प्रभावी रोक लग जाएगी.
अब जब शीध्र ही विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून बन ही जाएगा तो विचारणीय है कि इस कानून से क्या सच में जमीनों की लूट पर रोक लग पाएगी? क्या सच में सरकार की व नेताओं की ऐसी कोई मंशा भी है या नहीं ? इसके लिये तथ्यों की गहराई में जाकर समझने की जरूरत है कि इस कानून में जो कि, राज्य में जमीनों की लूट को रोकने के लिए लाया गया है , उसमें इसके लिए क्या प्राविधान किये गये है ? जो लूट की छूट चल रही थी, उस पर रोक लगाने के लिए क्या कुछ किया गया है? सरसरी तौर पर देखें तो इस कानून के प्राविधानों से निम्न कुछ बातें तो बहुत ही स्पष्ट हैं –
वह यह कि यह कानून उत्तराखंड के 11 जिलों में ही लागू होगा, यानी ऊधमसिंह नगर व हरिद्वार जिले में पूंजीपतियों व भू माफियाओं पर यह कानून कोई रोक-टोक नहीं लगाएगा. जिन अन्य 11 जिलों देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत और नैनीताल में यह कानून लागू होगा भी तो वहां भी उस जिले के नगर निकाय क्षेत्रों व छावनी क्षेत्रों में यह कानून लागू नहीं होगा अर्थात किसी भी तरह के नगर निकाय इस कानून से मुक्त रहेंगे. इसका सीधा अर्थ है कि यहां भी भू माफिया के जमीन लूट के कामों पर कोई रोक-टोक नहीं होगी .
इन 11 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां ये कानून लागू होगा, वहां की जमीनों की लूट को रोकने के लिए जो प्रावधान किए भी गए हैं तो उसमें भी इतने किंतु परंतु लगे हैं कि उन्हें समझने में किसी भी आम व्यक्ति को तो चक्कर ही आ जाएगा. इसके बावजूद इसमें एक ऐसी बात है जो सरकार की मंशा को बहुत साफ कर देती है. जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इन 11 जिलों में भी जहां यह कानून लागू किया जा रहा है, वहां के नगर निकायों के अलावा भविष्य में जो ग्रामीण क्षेत्र इन निकायों में शामिल किए जाएंगे, उन क्षेत्रों पर भी तब यह कानून लागू नहीं होगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसा प्राविधान इस कानून में आखिर क्यों किया गया?
क्या ऐसे में यह आशंका व्यक्त करना सही न होगा कि किसी ग्रामीण क्षेत्र में क्योंकि जब वहां भू कानून लगा होगा, तब तो वहां की जमीन की कीमत नगर क्षेत्र की तुलना में बहुत सस्ती रहेगी, इसलिए पहले सरकार में बैठे नेता- आला अफसर और भू माफिया उन गांव की जमीनों का सस्ते में सौदा कर लेंगे और फिर सांठ-गांठ से उस ग्रामीण क्षेत्र को नगर निकाय में मिला कर बड़ी-बड़ी जमीनों के मालिक बनकर बाद में जमीनों की सौदेबाजी करके उससे अरबों रुपये कमाएंगे. अगर गठजोड़ की मंशा ऐसी नहीं है तो फिर इस कथित सशक्त कानून में ऐसा प्राविधान क्यों किया गया? इससे तो यही लगता है कि सरकार जिस तरह से भू माफियाओं, पूंजीपतियों और भ्रष्टाचारियों को ही अब तक संरक्षण देती नजर आती रही है, वह आगे भी उनके हितों को ही संरक्षण देती रहेगी.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
सरकार की मंशा व पक्षधरता को समझने के लिए एक उदाहरण और पर्याप्त होगा. मसूरी में जॉर्ज एवरेस्ट की 122 एकड़ जमीन, जिसका सरकारी दर पर आज मूल्य 27,000 करोड़ रूपया बताया जाता है, के समतलीकरण और सुंदरीकरण पर पहले सरकार 23 करोड़ रूपया खर्च करती है, फिर उसे एक कंपनी विशेष को 15 साल के लिए एक करोड़ सालाना की दर से लीज पर दे देती है. इस महा भ्रष्टाचार का स्वतः संज्ञान लेकर जब न्यायालय ने इस प्रकरण पर सीबीआई जांच के आदेश दिए तो सरकार इस पर भी सीबीआई जांच करवाने की जगह उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रही है, ऐसा क्यों?
उक्त जमीन घोटाले को लेकर प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कि यह बयान भी गौर करने लायक है जिसमें वह कहते हैं कि “जॉर्ज एवरेस्ट के जिस टेंडर पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उसमें पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है. इससे पहले जहां 5 सालों में सिर्फ 18 लाख रुपए की आय हुई अब 1 साल में 1.20 करोड़ की आय हो रही है. जिस जमीन को 171 एकड़ का बताया जा रहा है, उसमें 7 एकड़ ही समतल जमीन है. बाकी तो 60 से 80 डिग्री ढलान वाले पहाड़ है.”
इस सबसे जहां सरकार व उसके नेताओं की मंशा व चरित्र तो उजागर होता ही है, वहीं विपक्षी दल का हल्कापन भी. महिला मंच ने अपने बयान में यह भी कहा कि यहां यह भी विचारणीय है कि यदि सरकार व उसके मुखिया पुष्कर सिंह धामी की मंशा साफ थी तो क्यों नहीं राज्य में जब सबसे पहले पहल 2023 में, जनता के हितों के प्रति प्रतिबद्ध पर्यावरणविद एवं शोधकर्ता बौद्धिक विचारवान लोगों के साथ ही साथ ‘राज्य कैसा हो’ जैसे मुद्दों पर संघर्षशील उत्तराखंड महिला मंच, इंसानियत मंच, भारत ज्ञान विज्ञान समिति एवं अनेक वामपंथी व अन्य जन संगठनों एवं भाकपा माले, माकपा, भाकपा, समानता पार्टी, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, समाजवादी पार्टी व कई अन्य क्षेत्रीय संगठनों के नेतृत्वकारियों ने इसे संयुक्त रूप से सरकार से सर्वप्रथम तत्काल प्रभाव से त्रिवेंद्र सरकार की जमीन लूट को विस्तार देने वाले 2018 के कानून और उस लूट को और भी सुगम करने वाले 2022 के धामी सरकार के कानून को समाप्त करने की जो मांग तब की गई थी और की जाती रही, उसे लगातार क्यों अनदेखा किया जाता रहा? इतना ही नहीं तब तो उक्त मांग पर प्रतिबद्ध इन संगठनों की एकता और आंदोलन को कमजोर करने के लिए इसमें चालाकी से घुसे कुछ सरकारी एजेंटों के जरिए उस आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास भी किया गया.
महिला मंच ने आगे कहा कि यदि प्रदेश सरकार की मंशा साफ होती तो सबसे पहले 2018 व 2022 में भू कानून में किए गए संशोधनों को को तत्काल निरस्त किया जाता, क्योंकि इन्हीं कानून के चलते जमीनों की लूट आगे भी लगातार चलती रही. गत वर्ष 24 में गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र से उठे आंदोलन के आंदोलनकारी नेतृत्व ने भी इस बिन्दु को अपेक्षित तवज्जो नहीं दी. जिसके चलते अब सशक्त भू कानून की जगह ऐसा लचर भू कानून लाकर लोगों को इस तरह से बरगलाया जा रहा है, जैसे राजधानी के सवाल पर आज भी बरगलाया जा रहा है.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
सरकार अपनी पीठ खुद थपथपाते हुए यह जरूर बता रही है कि 2003 से अब तक 1,883 मामलों में से 572 मामलों में कार्यवाही करते हुए न्यायालय में मुकदमे दायर किए गए हैं और 150 बीघा जमीन सरकार में निहित कर दी गई है (अर्थात प्रति ब्लॉक औसत निकालो तो लगभग डेढ़ बीघा जमीन प्रति ब्लॉक सरकार ने अधिकृत की है, कानून का उल्लंघन करने वालों से ). पर सरकार यह नहीं बताती है कि 2018 के बाद तो साढे बारह एकड़ यानी 100 – 150 बीघा या इससे भी ज्यादा जो जमीन तब खरीदी गई वह किन लोगों ने खरीदी और उन पर कहां और क्या औद्योगिक कार्य हुए? इस बारे में वह कुछ नहीं बताती है. और उन पर क्या कार्रवाई सरकार करेगी या नहीं करेगी? अगर नहीं तो क्यों नहीं करेगी? इस कानून में कहीं कोई जिक्र तक नहीं किया गया है. ऐसे में कैसे इस कानून को जनहित में लाया गया सशक्त भू कानून कहा जा सकता है ?
महिला मंच ने अपने बयान में कहा कि आज जरूरत है कि इस कानून के विरोध में सभी जन पक्षधर ताकतें किसी एक व्यक्ति या किसी एक संगठन के नेतृत्व में नहीं, बल्कि एक ऐसे सशक्त भू कानून को बनवाने के लिए एक मत होकर सामूहिक नेतृत्व के साथ संयुक्त मोर्चा या सांझा मंच बनाकर, पूरे उत्तराखंड में सशक्त भू कानून को लाने की लड़ाई को आगे बढ़ाएं. एक ऐसी लड़ाई, जो पूरे उत्तराखंड में अब तक की जमीनों की लूट को उजागर कर सके और आगे संभावित ऐसी लूट और लुटेरों से उत्तराखंड की जनता को सच्ची राहत दिला सके.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विधायक प्रीतम सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार ने एक प्रदेश में दो-दो भू कानून लागू कर दिए हैं. यह कांग्रेस और प्रदेश की जनता की समझ से बाहर है. हर बात में एक कानून होने की बात कहने वाली भाजपा सरकार एक छोटे से राज्य में दो भू कानून लागू कर रही है. आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम दिखाई देंगे. देहरादून में अपने आवास पर पत्रकारों से 24 फरवरी 2025 को बात करते हुए उन्होंने कहा कि संशोधित भू कानून पहाड़ की जन भावनाओं के अनुरूप नहीं है. तेरह जिलों वाले छोटे से राज्य में इस भू कानून से दो जिलों को बाहर कर दिया है. इससे आने वाले समय में व्यावहारिक और तकनीकी दिक्कतें आएंगी. इन दो जिलों में जनसंख्या का दबाव भी बढ़ेगा. जो राज्य के लिए ठीक नहीं है.
(Land Law Uttarakhand Jagmohan Rautela)
जगमोहन रौतेला
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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