Featured

कुमाऊं के गोपीदास मास्साब का गायन सुनने के लिये आपको जर्मनी जाना पड़ेगा

कुमाऊँ की सीमान्त शौका सभ्यता से ताल्लुक रखने वाली अनिन्द्य रूपवती राजुला और उसके प्रेमी राजकुमार मालूशाही की प्रेमकथा हमारे इधर बहुत विख्यात है. जैसा कि हर लोक साहित्य के साथ होता है इस गाथा के भी अनेक संस्करण पाए जाते हैं. इसे शास्त्रीय कुमाऊनी शैली में गाये जाने की लम्बी परम्परा है.
(Kumaoni Folk Singer Gopidas)

राजुला-मालूशाही की प्रेमगाथा गाने वालों में बड़े लोकगायक गोपीदास मास्साब का नाम सबसे ऊपर है. उनके जीवन की एक सबसे जरूरी कहानी कोनराड माइजनर नाम के एक जर्मन मानवशास्त्री के साथ जुड़ी हुई है. 1966 में भारत भ्रमण पर आये माइजनर का हिमालय के लोकसंगीत पर शोध करने का मन था.

जब वे अल्मोड़ा पहुंचे तो उनकी मुलाक़ात मोहन उप्रेती से हुई. जगतविख्यात “बेड़ू पाको बारा मासा” की धुन बनाने वाले मोहन उप्रेती ने उन्हें गोपीदास मास्साब और उनकी विलक्षण कला के बारे में बतलाया. गोपीदास मास्साब उन दिनों कुमाऊँ के छोटे से सुन्दर कस्बे कौसानी में दर्जी का काम कर अपना गुजारा कर रहे थे.

गोपीदास मास्साब. ‘पहाड़’ पुस्तिका ‘गोपी-मोहन’ से साभार

उन दिनों मास्साब के हाथ गंभीर त्वचा रोग से ग्रस्त थे और उन्होंने उन्हें ढक रखा था. जब उन्होंने माइजनर को दुकान पर आया देखा तो उन्हें लगा कि अंगरेज़ कुछ सिलवाने आया होगा. अभिवादन में हाथ उठाकर उन्होंने इशारे से बताया कि वे बीमारी के कारण कुछ भी सिलने से लाचार हैं. इस बात ने माइजनर को बहुत द्रवित किया.

बाद में जब मास्साब की समझ में सब कुछ आया तो थोड़े पैसे मिल सकने के लालच में उन्होंने कौसानी के अनाशक्ति आश्रम में अपना गाना पेश किया. साढ़े नौ घंटे तक चली मालूशाही की उस सधी हुई गायकी ने माइजनर को हतप्रभ कर दिया. गोपीदास और भी तमाम चीजें गाते थे लेकिन उन्हें मालूशाही गायक के रूप में ही सब जानते थे और गोपी दास मालूशाही वाला कहा करते थे.
(Kumaoni Folk Singer Gopidas)

कोनराड माइजनर की जिन्दगी इसके बाद बदल गयी और अपने घर-परिवार से दूर अगले नौ साल तक वह मास्साब के साथ रहा. उसने कुमाऊनी भाषा सीखी और जर्मनी से मशीनें लाकर उन का सारा गायन रेकॉर्ड किया. मालूशाही को बैरागी राग कहने वाले गोपीदास मास्साब के साथ दिन-रात काम कर उसने राजुला-मालूशाही कथा का वह टेक्स्ट भी तैयार किया जिसे अब आधिकारिक माना जाता है.

1975 में गोपीदास की मृत्यु के बाद भी उसने कुमाऊँ आना नहीं छोड़ा और कोई बीस साल की मेहनत के बाद राजुला-मालूशाही की गाथा का टेक्स्ट तीन शानदार खण्डों की सूरत में जर्मनी में छपवाया. उनके गायन की कोई सौ घंटे की रेकॉर्डिंग भी माइजनर ने की जो अब तक म्यूनिख विश्वविद्यालय में सुरक्षित है.

कुमाऊं में गोपीदास के गायन की कोई रेकॉर्डिंग किसी के पास भी नहीं है. उसे सुनने के लिए आपको जर्मनी जाना पड़ेगा. गोपीदास अकारण ही माइजनर से नहीं कहते थे कि उनके बाद मालूशाही को कोई नहीं गाएगा.
(Kumaoni Folk Singer Gopidas)

अशोक पाण्डे

“हाँ साहब! वह पैठी है मन के भीतर” – गोपाल राम टेलर से महान लोकगायक तक गोपीदास का सफ़र

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • भारत की सांस्कृतिक विरासत को विदेशी अपने यहाँ संभाल कर रख रहे हैं और दूसरी तरफ भारत में सेक्युलर पार्टियां उसे मिटाने में लगी हैं ।

  • क्या म्यूनिख विश्वविद्यालय से आग्रह करके डिजिटल कॉपी नहीं मँगायी जा सकती?

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago