उत्तराखंड के महान मालूशाही-गायक गोपीदास के साथ अपनी पहली मुलाक़ात को याद करते हुए जर्मनी के मानवशास्त्री और भारत के अध्येता कोनराड माइजनर ने लिखा है:
गोपीदास से 1966 में हुई पहली मुलाकात को मैं भूल नहीं सकता. एक मित्र अध्यापक मुझे कौसानी के उत्तरी उलार में स्थित गोपीदास के घर ले गये. यहां से नन्दादेवी तथा त्रिशूल आदि के शिखरों का भव्य दृश्य है. अपने घर की देहरी में गोपीदास बैठा था. किसी बीमारी ने उसकी त्वचा को घेरा था, अतः उसने हाथ ढंके थे. मेरे अभिवादन करने से पहले ही उसने हाथ उठा कर मुझे दिखाये. दरअसल उसने समझा था कि मैं कुछ सिलाने आया हूँ और असमर्थता जाहिर की. मैं इस समय द्रवित हो गया था.
उसने मेरे लिये और जर्मनी के लोगों के लिए मालूशाही गयी. जिस आश्रम (अनाशक्ति) में गांधी रहे थे, वहां उसने 9.30 घंटे तक गाया. एक हुड़का और एक सहयोगी गायक उसके साथ थे. जब वह मालूशाही गाता था, वह प्रसन्न और संतुष्ट रहता था. गाता तो वह और भी बहुत कुछ था पर जाना जाता था मालूशाही गायक के रूप में ही – गोपी दास मालूशाही वाला. वह मालूशाही को ‘बैरागी राग’ कहता था.
गोपीदास की गायन शैली का समग्र विश्लेषण कठिन है. पर यह कहा जा सकता है कि उसकी धुनें पाठ (टैक्स्ट) पर आधारित हैं. संगीत का कोई पैमाना इनमें नहीं है. जैसा कि मोहन उप्रेती कहते हैं, गोपीदास की मालूशाही मूल के सबसे ज्यादा करीब है. उसके पात्र मानवीय हैं. उसका संगीत ज्यादा संपन्न और रंगों से भरा है.
आज से कोई ढाई दशक पहले ‘पहाड़’ द्वारा एक महत्वपूर्ण मोनोग्राफ छापा गया था. ‘गोपी-मोहन’ नामक इस मोनोग्राफ का सम्पादन विख्यात लोक-कला कर्मी बृजेन्द्र लाल साह ने किया था. इसमें गोपीदास के अलावा एक और महान कुमाऊनी लोकगायक मोहन सिह रीठागाड़ी पर भी आवश्यक सामग्री थी.
इस पुस्तिका में कोनराड माइजनर द्वारा लिया गया गोपीदास का छोटा सा इंटरव्यू छपा है. संभवतः किसी दुभाषिये की मदद से मूल कुमाऊनी में लिया गया यह इंटरव्यू हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत है:
कोनराड माइजनर: त्यार बौज्यू, बूबू वगैर यो लोग लै सब दर्जी छिया या उनर कै और रोजगार छी? (आपके पिता, दादाजी वगैरा भी सब दर्जी थे या उनका कोई और रोजगार था?)
गोपीदास: दर्जी (दर्जी)
कोनराड माइजनर: जाति कै भयि तुमरि? (जाति क्या हुई आपकी?)
गोपीदास: जाति? कै बतूं? जाति ‘दास’ भय, हमुन है पैलि, आब त उ जाति-हाति ख़तम कर ह्यालि, उनूल सब एक कर ह्यालि न, हमर, ल्वार, भूल, कोली वगैर, दर्जी-फर्जी , सब एक दी, ‘राम’ कर दी सब. (जाति? क्या बताऊं? जाति ‘दास’ हुई, हमसे पहले, अब तो वो जाति-हाति खतम कर दी. उन्होंने सब एक कर दिये नाम हम, लोहार, भूल, कोली वगैरा, दर्जी-फर्जी, सब एक कर दिये, ‘राम’ कर दिया सबको.)
कोनराड माइजनर: चौद बरस बटि गैण सुरु कर हाल छि न ? (चौदह साल से गाना शुरू कर दिया था न)
गोपीदास: चौद, हाँ (चौदह, हाँ)
कोनराड माइजनर: चौदह बरस बटि तू मालूशाही शुरू बै आखिर तक कौण फैट गो छिये? (चौदह साल से आप मालूशाही शुरू से आखिर तक गाने लग गए थे?)
गोपीदास: हाँ संपूरण मालूशाही … नौ बरस बटि मि सिखण फै गऊँ. रात दिन हुनेर भय हमर घर में, रात दिन … मालूशाही. (हां सम्पूर्ण मालूशाही… नौ साल से मैं सिखने लग गया था. रात दिन होने वाली हुई हमारे घर में, रात दिन … मालूशाही)
कोनराड माइजनर: तुमर मुख्य रोजगार कै भै? (आपका मुख्य रोजगार क्या हुआ?)
गोपीदास: मुख्य रोजगार य भय. सिणण … सुई से और दूसरा काम नहीं ठहरा हमारा. (मुख्य रोजगार हुआ सिलाई… सुई से और दूसरा काम नहीं ठहरा हमारा)
कोनराड माइजनर: तेर बड़बौज्यू दोतारि या हुड़क, कै में गां छी? (आपके दादाजी दोतारे या हुड़के, किसमें गाते थे? )
गोपीदास: हुड़क में. उ त क बखत कि बात भे दोतारि में गानेर भय जै बखत कोई लै नि भय. उ जब बेराग ज हरय … पैलिया लोग- बाग बैराग ज हरय… तबै दोतारि में गानेर भय ऊँ, दोतारि में. झोड़ा-चांचरी लै दोतारि में गानेर भै लोग बाग. (हुड़के में. वो तो उस समय की बात हुई तब लोग दोतारे के साथ में गाते थे,आज के समय कोई नहीं हुआ दो तारे में गाने वाला. जब वह बेराग से हो जाने वाले हुये – मतलब पहले के लोग तभी गाने वाले हुये दोतारे में, झोड़ा चांचरी भी दोतारे में गाने वाले हुये लोग.)
कोनराड माइजनर: तेर बौज्यू लै दगड़ भगार धर छिया? (आपके पिता भी साथ में संगतकार रखते थे?)
गोपीदास: हो, हो, बिगर भाग लागुणिये मालूशाही हुनेर नि. बहुत होशियार चैनी भाग लगूणी. मालूशाही गानैर हैबेर लै होशियार हुनी उ लोग. तब मालूशाही हुनेर भै. बिगर भगार है कई मालूशाही हई नी. (हां, हां. बिना भाग लगाये मालूशाही होती ही नहीं है. भाग लगाने वाला बहुत होशियार चाहिये. मालूशाही गाने वाले से भी होशियार होना चाहिये उन्हें. तब मालूशाही होने वाली हुई. बिना संगतकार के मालूशाही हो ही नहीं सकती.)
कोनराड माइजनर: तेर दिल में कभै यस विचार ऊनी, नि ऊन कि अगर हमर नानतिनान में बटि अगर कोई मालूशाही नी कौल. त फिर कस होल, खतमै है जाल यो राग या…? (आपके दिल में कभी ऐसा विचार आता है या नहीं कि अगर हमारे बच्चों में कोई मालूशाही नहीं कहेगा. तो फिर कैसे होगा, ख़त्म हो जायेगा यह राग या…?)
गोपीदास: डाड़ मार दिनूं मी, गल बुजि जा मेर, हा … सब समझू मि. दादाल कौ, बाबाल कौ, मील कौ – आब जब मि मर जानूं, यो बच्चा नी कूना, ये मालूशाही हमूथै है छुट गै. (रोना आ जाता है मुझे, गला भर आता है मेरा, हां … सब समझाता हूँ मैं. बड़े भाई ने कहा, पिताजी ने कहा, मैंने कहा – अब जब मैं मर जाऊंगा, ये बच्चे नहीं कहेंगे, यह मालूशाही हमसे छूट गयी है.)
कोनराड माइजनर: कान पर हाथ किलै लगूं छै गैन बखत? (गाते समय कान में हाथ क्यों लगाते हो?)
गोपीदास: यो, ज आवाज छ, य पै हाथ लगैबेर गोल है जैं … (यह जो आवाज है, यहाँ पर हाथ लगाने से गोल हो जाती है…)
(‘पहाड़’ पुस्तिका ‘गोपी-मोहन’ से साभार)
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