कुमाऊं के ब्राह्मण यहां के चन्द्रवंशी राजाओं के गुरु पुरोहित, उपाध्याय, आचार्य, वैद्य, ज्योतिषी, मंत्री, दरबारी हुए, इन्हीं की सन्तान कुमाऊं की ब्राह्मण जाति हुई वे पंत, पांडे, जोशी, भट्ट, उप्रेती, पाठक, मिश्र इत्यादि कहलाते हैं. कुछ इनकी सन्तान आदिम ब्राह्मणों से मिल गई. उनके आचार विचार सम्बन्ध उन्हीं के तुल्य हो गये हैं. कुमाऊं की कुछ ब्राह्मण जातियों का इतिहास इस तरह है.
(Kumaoni Brahman History)
भारद्वाजगोत्री ( भारद्वाजांगिरस वार्हस्पत्येति त्रिमवर – माध्यन्दिनी शाखी ) महाराष्ट्र जाति के पं. जयदेव पन्त दक्षिण कोंकण (कोतवान ) देश से 10वीं शताब्दी में कालीजी के दर्शनार्थ गंगोली में आये. सामयिक मणकोटी राजा ने रिवाड़ी ग्राम जागीर में दिया और ठहरा दिया पीछे उप्रड़ा ग्राम दिया दस पीढियों के बाद सरम, श्रीनाथ, नाथू, भौदास ये चार घराने हुए. तीन घराने के मांस नहीं खाते चौथे (भौदास ) घराने के खाते हैं. सर्वत्र कुमाऊ में पन्थ या पन्त कहलाते हैं. कुमाऊं के राजा के गुरु राजवैद्य, पौराणिक हुए अब नोकरी पेशा है.
पन्त (पाराशरगोत्री) जयदेव पन्त के साथ उनके बहनोई दिनकरराव पाराशरगोत्री दक्षिण कोंकण देश से आये. मणकोटी राजा ने (कोटचूडा ) ग्राम जागीर दिया. गंगोली के चिटगल, कालीशिला ग्रामों में पाराशरी पन्त रहते हैं.
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भारद्वाजगोत्री पांडे. अवध से श्रीवल्लभ उपाध्याय बदरीनाथ यात्रा को आये, गणनाथ में अनुष्ठान किया, उनकी विद्वत्ता और यांत्रिक सिद्धियां देखकर कुमाऊं के राजा ने सत्रह आली जमीन जागीर दी, और विनयपूर्वक ठहरा लिया, गुरुपद भी दिया. पाटिया, पिलखा, भौंसोडी, कसून, त्यूनरा आदि के पांडे कहलाते हैं उक्त ग्रामों में रहते हैं. कांडे लोहना में रहनेवाले काण्डपाल या कन्याल तथा लोहनी कहलाते हैं. लोहे का हवन करने से लोहहोत्री या लोहनी कहलाये.
गौतमगोत्री पांडे. सारस्वत ब्राह्मण पं. बालराज पांडे ज्वालामुखी ज्वालामुखी कांगडा पंजाब प्रांत से यात्रार्थ आये. काली कुमाऊं दरबार में पहुंचने पर राजा ने रोक लिया “धोली” ग्राम जागीर दिया. पुरोहित भी बनाया. इनके 4 पुत्र हुए बड़े भाई की सन्तान धोली के पांडे, दूसरे भाई दाना ग्राम के पांडे, तीसरे पल्यूंके पांडे हैं. महादेव की सन्तान नेपाल राज्य में है. पांडे खोला, संग्रोली, दौताई जिला मेरठ में भी यही पांडे हैं.
वत्सभार्गव गोत्री पांडे और मिश्र. पघिमिश्र-कोट कांगडे से राजा संसारचन्द्र के समय आये, राजा के वैद्य हुए इनकी सन्तति में अनूप शहर के मिश्र हैं. सीराके और मझेड़ा के पांडे भी इसी कुल में हैं.
काश्यपगोत्री बरखोरा पांडे. महनी पांडे कन्नौज से आये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे इनके सिंह और नृसिंह दो पुत्र हुए. पांडे ग्राम सिलौटी में सिंह की सन्तान हैं – बेडती पान में नृसिंह की सन्तान है. राजा ने बरखोरा ग्राम जागीर दिया, बरखोरा पांडे इस हेतु कहलाये.
उपमन्यु गोत्री श्रीनिवास द्विवेदी प्रयाग से काली कुमाऊं में आये. पांडे कहलाये, राजा के वैद्य हुए मिश्र और वैद्य पांडे कहलाते हैं. दिवतिया के मिश्र कुज्ज के वैद्य हैं, छखाता में भी यही वैद्य हैं. शिमलटिया पांडे. राजा सोमचन्द्र के समय राजगुरू पांडे कुमाऊं अवध से आये. शिमला, सालम, ढोलीग्राम अल्मोडा के चम्फनौला मोहल्ले में रहते हैं. कुमाऊं के सब लोग इनका बनाया भोजन खा सकते हैं. पांडे कहलाने वाले और भी कुछ ब्राह्मण हैं उनका ठीक-ठीक परिचय नहीं मिला.
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ज्योतिषी का अपभ्रंश जोशी है. गर्गगोत्री सुधानिधि चौबे अवध देश के उन्नाव जिले में दधियाखेड़ा के रहने वाले राजा सोमचन्द्र के साथ दशवीं शताब्दी में झूसी से कुमाऊं में आये, राजज्योतिषी और राजमन्त्री चतुर्वेदीजी हुए. ज्योतिषी होने से जोशी कहलाये. सेलाखोला, झिजाड़ कलौन कोतवाल ग्राम आदि के जोशी इसी कुल में हैं. यह घराना कुमाऊं का मुख्य राजमन्त्री रहा. यह दीवान जोशी कहलाते हैं, अनेक विद्वान् राजनैतिक नेता इनमें हुए, वर्तमान समय में भी अनेक उच्च राजपदों में हैं अंग्रेजी के अनेक ग्रेजुएट हैं. चौबे गर्ग गोत्री वंश में हैं, यह कान्यकुब्ज चौबे हैं.
आंगिरसगोत्री जोशी. अवध से नाथूराज विजयराज दो भाई कत्युरी राजा के समय यात्रार्थ आये. राजा ने दरबार का ज्योतिषी नियत किया. सेडीग्राम जागीर दी, माला सर्प और गल्ली जोशी इसी कुल में है. इनमें नामी 2 ज्योतिषी हुए. अब भी अनेक अच्छे- अच्छे ज्योतिर्विद इस कुल में हैं. सन् 1626 से गल्ली के जोशी दीवान कहलाये.
माला के जोशियों का तिथिपत्र प्रसिद्ध रहा. कौशिकगोत्री जोशी – पंडित कृष्णानंद जोशी कौशिकगोत्री डोटी नेपाल राज्य से देवदर्शनार्थ आये. गंगोली माणकोटी राजा ने भेरंग में पुष्करी (पोखरी) ग्राम दिया, राज्य का ज्योतिषी बनाया. राजा राजबहादुर चंद्र के समय से चन्द्र राजाओं के ज्योतिषी हुए. भेरंग के जोशी कहलाते हैं दरवाना के शिलोटी ग्राम में भी रहते हैं. अच्छे- अच्छे नामी ज्योतिषी इस कुल में हुए, इनका पंचांग भी कुमाऊं में मुख्य है. यह ज्योतिषी कृष्णानंदजी बंगदेशी नदिया के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे.
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उपमन्युगोत्री जोशी – प्रयागराज के समीप जयराज मकाऊ ग्राम के रहने वाले श्रीनिवास द्विवेदी 14वीं शताब्दी में राजा थोहर चन्द्र के समय कुमाऊं में आये, राजा ने चौकी गांव दिया. काशी से ज्योतिष पढ आये जोशी कहलाये, चन्द्र राजाओं के मंत्री हुए, यह कुल भी दीवान कहलाता है, इनमें अनेक विद्वान् और उच्च राजकर्मचारी हुए, दन्या में रहने से दन्या के जोशी कहे जाते हैं, ललोटा जोशी. पचारद दुबे कान्यकुब्ज सकुटुम्ब बदरीनाथ यात्रा को आये, मणकोटी राजा से ज्योतिष की वृत्ति मिली, लटोली प्रभृति 5 ग्राम जागीर मिले ललोटा जोशी कहलाते हैं, ज्योतिष की वृत्ति करते हैं. अनेक नामी विद्वान् ज्योतिर्विद इनमें हुए हैं. भारद्वाजगोत्री जोशी – कन्नौज के निकट असनी ग्राम के निवासी त्रिवेदी लंकराज शुक्ल यात्रार्थ इधर आये, कुमाऊं के राजा ने शिलग्राम जागीर देकर रोक लिया, ज्योतिष के विद्वान थे, अल्मोड़ा और निसोत्त में रहते हैं, चीनाखाण के जोशी उच्च राज पदों में हैं. मकेड़ी, खेर्द-जोशी खोला में रहते हैं ज्योतिष वृत्ति और नौकरी वृत्ति करते हैं.
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गौतमगोत्री त्रिपाठी. दक्षिण गुजरात देश “अमलावार” बडनगर के निवासी सामवेदी श्रीचन्द्र त्रिपाठी गौतमगोत्री चन्द राज्य के आरंभ में बदरिकाश्रम की यात्रा को आये, कत्युरी राजा ने इनकी अनेक सिद्धियां देखकर रोक लिया, आल्मोडा की भूमि जागीर में दी. कुमाऊं के अनेक ग्रामों में और अल्मोडा में यह त्रिपाठी रहते हैं अनेक विद्वान, कर्मकाण्डी, वैदिक, पौराणिक, पंडित इनमें होते रहे.
विश्वामित्र गोत्री अच्युत भद्र दक्षिण तैलंग देश से मणकोटी राजा के समय कुमाऊं में यात्रार्थ आये इनको शास्त्रज्ञ देखकर राजा ने रोक लिया यह विसाड़ पल्यूं, खेती ग्राम सेर में रहते हैं. अच्छे विद्वान् इस कुल में होते रहे है. कुछ लोग डोटी नैपाल को गये. भट्ट तीन प्रकार के यहां बसे हैं. उपरोक्त वंश के अतिरिक्त दो प्रकार के भट्ट और भी हैं इनके भिन्न-भिन्न गोत्र हैं. पञ्च द्राविड ब्राह्मण भट्ट- दक्षिण द्रविड देश से राजा भीष्म चन्द्र के समय कुमाऊं में आये, दर्वारने हलवाई नियुक्त किया, यह कुल हलवाई का पेशा करते हैं. मध्य देश के आये हुए भट्ट ब्राह्मण बागेश्वरादि तीर्थ के तटों में रहे, वे ग्रहण तथा शनिका दान लेने की वृत्ति करते रहे.
दक्षिण द्रविड देश के महाराष्ट्र ब्राह्मण शिवप्रसाद मणकोटी राजा के समय यात्रार्थ आये, काली देवी के दर्शन को गंगौली गये, राजा ने उप्रेडा ग्राम देकर विनय पूर्वक रोक लिया. राजा के मंत्री हुए. चन्द्र और गोर्खा राजा ने भी अनेक ग्राम दिये. खेती, सुपाकोट, वांक बिण्डा इत्यादि ग्रामों में रहते हैं, उपरेती व उप्रेती कहे जाते हैं.
शांडिल्य गोत्री कान्यकुब्ज पाठक आस्पद नरोत्तम वेदपाठी अवध से शांडीपाली ग्राम के रहने वाले यात्रार्थ आये. राजा ने मणिकानली ग्राम दिया फिर पठक्यूड़ा ग्राम चन्द राजाओं ने दिया.
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अवध से – कान्यकुब्ज ब्राह्मण मिश्र आस्पद के कुमाऊं सोर में वंस राजा के समय आये, चन्द राजाओं ने पीछे पाटण ग्राम दिया, यह पाटणी कहे जाते हैं.
अवस्थी – मैथिल ब्राह्मण कत्यूर राजा के समय अस्कोट में आये. यह रजवार दरबार के पुरोहित हैं.
झा वा – ओझा-तिर्हुत मिथिला से नैपाल होते हुए अस्कोट में पहुंचे रजवार में वृत्ति मिली.
उपाध्याय – नैपाल से आये, यह कर्मकांडी ब्राह्मण हैं.
कोठारी – कोंकण दक्षिण देश से सूर्यप्रसाद दीक्षित आये, कुठार का काम राजा ने दिया, कुठारी कहे जाते हैं.
कर्नाटक – कृष्णात्रिगोत्री वसिष्ठ कर्नाटक दक्षिण कर्नाटक देश से आये, कुमाऊं में रहे उनके कुल में कर्नाटक हैं. बिष्ट, मनटीनया, पनेरु दक्षिणसे आये, बडुवा शंकराचार्य स्वामी के साथ आये.
ब्राह्मणों की अनेक जातियां पेशे के और ग्राम के नाम से प्रसिद्ध हैं. रानी का गुरु, गुरुरानी, मठरक्षक, मठपाल, दुर्गापाल, हरी बोला, बेल्वाल हैडिया सनवाल इत्यादि पेशे के और ग्राम के नामकी संज्ञा कई सैकड़ों है. अधिकांश कान्यकुब्ज, महाराष्ट्र, सास्वत, मैथिल, गौड़, द्रविड यहां पाये जाते हैं.
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