Featured

कुमाऊँ रेजिमेंट : असाधारण शौर्य और पराक्रम का प्रतीक

वर्तमान में अपने शौर्य और पराक्रम के लिए पहचानी जाने वाली कुमाऊँ रेजिमेंट की 21 बटालियनें हिन्दुस्तान की सीमाओं की सुरक्षा में जुटी हैं. 1788 में नवाब सलावत खां की सैन्य टुकड़ी के रूप में स्थापित हुई कुमाऊँ रेजिमेंट का इतिहास और वर्तमान बहुत ही गौरवशाली है. (Kumaon Regiment: A symbol of extraordinary valor)

कुमाऊँ रेजिमेंट ने जनरल एसएम श्रीनागेश, जनरल केएस थिम्मैया और जनरल टीएस रैना के रूप में भारतीय सेना को अब तक 3 थल सेना अध्यक्ष दिए हैं.

पदक कहते हैं असाधारण वीरता की कहानी

कुमाऊँ रेजिमेंट को अब तक 2 बार सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा जा चुका है. आज़ाद भारत का पहला परमवीर चक्र कुमाऊँ रेजिमेंट के ही मेजर सोमनाथ शर्मा को 1947 के भारत-पाक युद्ध में उनकी असाधारण वीरता के लिए प्रदान किया गया था. इसके अलावा 1962 के भारत चीन युद्ध में मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.  इसके अलावा रेजिमेंट को 13 महावीर चक्र, 82 वीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 10 कीर्ति चक्र, 43 शौर्य चक्र, 6 युद्ध सेवा पदक, 14 से ज्यादा परम विशिष्ट सेवा पदक मिल चुके हैं. इसके अतिरिक्त 700 से ज्यादा मेंशन इन डिस्पेच और इतने ही अन्य सम्मान भी रेजिमेंट को मिल चुके हैं.

कुमाऊँ रेजीमेंट के सैनिक थे आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ

आज नेपाल और गढ़वाल के पहाड़ों के बीच कुमाऊँ रेजिमेंट का घर है और रेजिमेंट को पूरी दुनिया में जाना जाता है. लेकिन ये हमेशा से इस रूप में अस्तित्व में नहीं थी. देश-दुनिया में शौर्य और पराक्रम की मिसाल कायम करने वाली कुमाऊँ रेजिमेंट की नींव नवाब सलावत खां की रेजिमेंट के रूप में दक्षिण में पड़ी. बाद में इसे रेमंट कोर, फिर निजाम कांटिजेंट कहा गया. बाद के दिनों में इसके साथ बरार इन्फेंट्री, निजाम आर्मी और रसेल ब्रिगेड का विलय कर हैदराबाद कांटिजेंट का गठन हुआ. हैदराबाद कांटिजेंट अब हैदराबाद के निजाम की सेना न होकर ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा बन गयी.

प्रथम विश्वयुद्ध के लिए बेहतरीन लड़कों ने कुमाऊँ बटालियन को जन्म दिया. 23 अक्टूबर 1917 को रानीखेत में कुमाऊँ बटालियन की स्थापना हुई. इसका नाम 4/39th कुमाऊँ रायफल्स. 1918 में 58th कुमाऊँ रायफल्स का गठन किया गया. 1922 में हैदराबाद की 6 रेजिमेंटों को एकीकृत कर एक रेजिमेंट बना दी गयी, इसे ‘19th हैदराबाद रेजिमेंट’ कहा गया.  1923 में कुमाऊँ रायफल्स की दोनों बटालियनों और हैदराबाद रेजिमेंट में जोड़ दी गयी. को भी 27 अक्टूबर 1945 को इसे ‘द कुमाऊँ रेजिमेंट’ नाम दिया गया और रानीखेत में इसकी छावनी बनायी गयी. इसके बाद कई तकनीकी बदलावों के बाद आखिरकार 1942 हैदराबाद रेजिमेंट कुमाऊँ रेजिमेंट में तब्दील हो गयी. 27 अक्टूबर 1945 में इसे ‘19 कुमाऊँ रेजिमेंट’ कहा जाने लगा. तभी से 27 अक्टूबर को रेजिमेंट ‘कुमाऊँ डे’ के रूप में मनाती आ रही है.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

‘गया’ का दान ऐसे गया

साल 1846 ईसवी. अवध के कैंसर से जूझते नवाब अमजद अली शाह अपने अंतिम दिन…

4 hours ago

कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी

इस पहाड़ से निकल उस पहाड़कभी गुमसुम सी कभी दहाड़यूं गिरते-उठते, चलते मिल समंदर से…

3 days ago

यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…

मुनस्यारी में एक छोटा सा गांव है सुरिंग. गांव से कुछ तीन किलोमीटर की खड़ी…

5 days ago

कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध

हिलजात्रा एक ऐसी परंपरा जो पिछले 500 सालों से पिथौरागढ़ के कुमौड़ गाँव में चली…

6 days ago

शो मस्ट गो ऑन

मुझ जैसा आदमी... जिसके पास करने को कुछ नहीं है... जो बिलकुल अकेला हो और…

2 weeks ago

सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल

किसी भी समाज के निर्माण से लेकर उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में शिक्षा की …

2 weeks ago