कुमाऊँ (Kumaon) के बारे में 1905 में छपी ई. शर्मन ओकले (E. Sherman Oakley) की किताब ‘होली हिमालयाज: द रिलीजन, ट्रेडिशन्स, एंड सीनरी ऑफ़ हिमालयन प्रोविन्स’ (Holy Himalaya; The Religion, Traditions, and Scenery of Himalayan Province) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. लन्दन मिशनरी सोसाइटी से जुड़े ओकले 1888 से अपनी मृत्यु के साल यानी 1934 तक अल्मोड़ा के इलाके में कार्यरत रहे थे. वे रैमजे कॉलेज में अध्यापक थे.
ओकले ने गढ़वाली कविता और संस्कृति के पुरोधा माने जाने वाले तारा दत्त गैरोला के साथ मिल कर एक और महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी ‘हिमालयन फोकलोर : गोस्ट्स एंड डीमन्स फ्रॉम वेस्ट नेपाल’ (Himalayan Folklore: Ghosts & Demons from West Nepal).
‘होली हिमालयाज’ में ओकले ने बरेली से अल्मोड़ा की अपनी यात्रा का दिलचस्प और विस्तृत विवरण दिया है. एक कुशल यात्रावृत्त लेखक की तरह वे रास्ते में पड़ने वाली हर बसासत और हर दिलचस्प तफसील पर ठहरते हैं और पर्याप्त सूचनाएं उपलब्ध करवाते हैं. वे बरेली से चलने वाली सुस्त-रफ़्तार रेलगाड़ी का भी ज़िक्र करते हैं और हल्द्वानी के समीप स्थित चोरगलिया नामक जगह के नामकरण का भी.
चूंकि ओकले अल्मोड़ा में काफी समय तक रहे, जाहिर है इस किताब में अल्मोड़ा के बारे में बहुत मन से लिखा गया है.
ओकले ने कुमाऊँ में लगने वाले मेलों और उनके समाजशास्त्र पर लिखा है तो उच्च हिमालयी यात्रा-मार्गों पर भी. बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्राओं पर किताब में एक पूरा अध्याय है. पूरे उत्तराखंड और विशेषतः कुमाऊं के देवी-देवताओं को भी जगह मिली है और अनेक प्रकार के भूत-प्रेत संबंधी लोक-मान्यताओं को भी. पहाड़ के इतिहास के अलावा यहाँ हिन्दू धर्म के आगमन और प्रचार-प्रसार पर भी काफी सामग्री है.
अपनी जड़ों को पहचानने में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक आवश्यक पुस्तक है.
‘होली हिमालयाज’ में बहुत सारे दुर्लभ फोटोग्राफ्स भी पिरोये गए हैं. इन तस्वीरों में तत्कालीन कुमाऊँ की अनदेखी झलक देखने को मिलती है. आइये देखें इन में से कुछ तस्वीरों को.
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