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सादगी और सामूहिक उत्सवधर्मिता विशेषता है उत्तराखंड में कृष्ण जन्माष्टमी की

भारत की सड़कों पर आज पहले से ही बस्ते के बोझ तले दबे स्कूली बच्चे कृष्ण और राधा के अवतार में अवतरित पाये गये. पहले जन्माष्टमी के दिन यह दृश्य मैदानी इलाकों में सामान्य था अब पहाड़ों के स्कूल में भी यह चलन सामान्य हो चुका है. पहाड़ में स्कूली बच्चों के लिए कृष्ण की वेश-भूषा में स्कूल जाना अपने आप में एक चैलेन्ज है बावजूद इसके पहाड़ी कस्बों की सड़कों पर आप जन्माष्टमी के पहले दिन अनेकों कृष्ण राधा को स्कूल जाते देख सकते हैं. गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली में उठाने वाले कृष्ण के बस्ते का बोझ आज के दिन वासुदेव या देवकी के कंधों में लदा दिखता है.

ख़ैर उत्तराखंड में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पहले से सादगी से मनाया जाने वाला पर्व है. जन्माष्टमी के पूरे दिन उपवास के बाद रात्रि में पूरा गाँव इकठ्ठा होकर रात्रि बारह बजे तक भजन-कीर्तन करता है. घरों में पंजीरी बनाई जाती है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किये जाने के बाद अगले दिन आस-पड़ोस में प्रसाद के तौर पर बांटी जाती है. इस दिन उपवास करने वालों द्वारा रात्रि में भी फलाहार ही किया जाता है.

छोटी-छोटी गईयां, छोटे-छोटे ग्वाल-बाल, छोटे से हमरो मदन-गोपाल जैसे भजनों के बीच ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और शक्ति या देवी की सांकेतिक आकृति दीवार में बनाकर पंडित जी 108 बार जौ और तिल से पूजते थे जो बाद में कागज़ में छप कर आने लगा. लगभग ए-4 साईज से दोगुने इस नीले रंग के कागज़ में बाद में अनेकों देवी-देवता छपने लगे. जिसे जन्माष्टमी के दिन परिवार अपने घर के मंदिरों पर लगाकर पूजते हैं.

दरसल उत्तराखंड में स्मार्त समुदाय के लोग हैं. स्मार्त समुदाय का अर्थ उस समुदाय से है जो विष्णु के अतिरिक्त शिव, ब्रह्मा, गणेश और शक्ति या देवी को भी पूजता है. यही कारण है कि उत्तराखंड में कृष्ण के जन्मोत्सव को रात्रि में ही भजन-कीर्तन के साथ मनाते हैं उसके अगले दिन कृष्ण को पालने में झुलाने, माखन खिलाने, दही हांडी फोड़ने जैसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता. भाद्रपद कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते है. इसी तिथि को श्रीकृष्ण जन्म मथुरा नगरी में असुराज कंस के कारागार में हुआ था. इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन शनिवार दिनांक 24 अगस्त को मनाया जायेगा हालांकि उत्तराखंड में स्मार्त समुदाय की बहुलता के कारण शुक्रवार 23 सितंबर को ही मनाया जाना तय है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व का उपवास आज के दिन ही रखा जायेगा.

मान्यता है कि श्रीकृष्ण वासुदेव तथा देवकी की आठवी संतान थे. जन्म के तुरंत बाद वासुदेव को उन्हें अपने मित्र बाबा नन्द के घर छोड़ने जाना पड़ा क्योंकि वे उन्हें कंस के प्रकोप से बचाना चाहते थे. इस कारण बालक कृष्ण का लालन पोषण नन्द तथा यशोदा ने किया. उनका सारा बचपन गोकुल मे बीता जहाँ उन्होने अपनी सारी लीलाएं रचाईं और बाद में अपने मामा कंस का वध किया. चूंकि माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण मध्यरात्रि में हुआ था, समूचे भारत में कृष्ण जन्माष्टमी इसीलिये मध्यरात्रि में मनाई जाती है.

उत्तराखंड में त्यौहारों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उनकी सादगी और सामूहिक उत्सवधर्मिता है. यहाँ आयोजित किये जाने वाले स्थानीय त्यौहारों में अवाम के रोज़मर्रा जीवन की झलक दिखती है. हिन्दू धर्म के लगभग सभी त्यौहार उत्तराखंड में बिना किसी आडम्बर के मनाये जाते हैं.

-काफल ट्री डेस्क

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Girish Lohani

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