Featured

किन्नौर, स्पीति और लाहौल यात्रा 1

बहुत दिनों से जिस यात्रा को मैं करना चाह रहा था उसका मुहूर्त सितम्बर 18 के तीसरे सप्ताह में निकल पाया. किन्नौर, जिसके बारे में जानने की बहुत पहले से जिज्ञासा थी, का भृमण देर से ही सही लेकिन आखिरकार हो ही गया.

14 की सुबह बहुत जल्दी निकलने के बाद हम लोग नाहन, सोलन, शिमला, नारकंडा से रामपुर होते हुए एक छोटे से लेकिन बेहद खूबसूरत कस्बे टापरी में जाकर रुके. बीच मे कई शानदार मनमोहक प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले. खासकर कुफरी से रामपुर के बीच लगाए हुए शानदार सेब के बागान और बेहतरिन डिजाइन के बने हुए भवन बेहद आकर्षक थे.

मैने कोटगढ़ के सेबों के बारे में पहले काफी सुना था इस बार इस जगह को देख के लगा कि यहां के लोग कितने मेहनतकश और जीवट होंगे जिन्होंने इतने दूरस्थ स्थान पर मेहनत करके इतने शानदार और व्यवस्थित बगीचों को लगाया है. इसी रास्ते मे नाकपा झाकड़ी बांध की डैम साइट भी देखने को मिली. आने वाले समय मे यह बांध बेहद विशाल और दर्शनीय स्थान होगा.

अगले दिन प्रातः उठकर हमारा दल यहां से सांगला घाटी की ओर बढ़ा. यह घाटी शुरुआत में बेहद संकरी और ढाल वाली है. जिसमे बने हुए मोटरमार्ग से नीचे देखकर आंखें चकरा रही थी. हम लोग यहां पर भारत तिब्बत सीमा पर स्थित अंतिम गांव छितकुल तक पहुंचे. यहगांव समुद्र तल से लगभग 10000 फ़ीट पर मौजूद है. यहां पर उत्तराखंड के हर्षिल, हर की दून, रूपिन आदि क्षेत्रों से ट्रेकिंग रूट्स हैं जिसमे साहसिक यात्रा करने वाले लोग अक्सर ट्रेक करते रहते हैं.

यह घाटी किन्नौर क्षेत्र में है. नेगी जाति के ये लोग मूलतः हिन्दू हैं लेकिन ये देखकर सुखद अहसास हुआ कि ये लोग बोध धर्म को भी मानते हैं और उसके कई रीति रिवाजों को मनाते भी हैं. ये घाटी बेहद खूबसूरत है और आपको स्वर्ग का सा अहसास कराती है. इसी दिन हम लोग यहां से वापस लौटकर किन्नौर जिले कब मुख्यालय रिकोंग पीओ और इससे लगे कल्पा भी गए जहां पर बेहत खतरनाक सुसाइड पॉइंट मौजूद है और यहां से किन्नर कैलाश के शानदार दर्शन होते हैं.

कल्पा में सेब के बेहद शानदार बगीचे हैं. चारों ओर लगे हुए छोटे -2 सेबों से भरे हुए बागान बहुत शानदार लग रहे थे. अमूमन किन्नौर के हर क्षेत्र में सेबों के बेहद शानदार बगीचे हैं. चूंकि इस समय ये बिल्कुल तैयार स्थिति में थे जिस कारण हर ओर इनकी ही महक थी.

कल्पा से रिकोंग पीओ होकर टीम फिर से मुख्य रास्ते पर आ गई और लगभग 40 किमी चलने के बाद स्पीलो नामक एक कस्बा जो सतलुज नदी के किनारे था में रात्रि विश्राम के लिए रुकी. किन्नौर के रास्ते चट्टानों से होकर निकलते हैं इसलिए बेहद रोमांचक और सांस रोक देने वाले रास्तों से गुजरना एक अलग ही अहसास दिलाता है. चूंकि आजकल यह रास्ता निर्माणाधीन है इसलिए आने वाले समय मे ये एक शानदार और दर्शनीय मार्ग होगा.

अगले प्रातः टीम यहां से आगे बढ़ी. रास्ते मे ख़ाब नामक स्थान पर सतलुज और स्पीति का संगम है. यह स्थान बेहद संकरा और चट्टानी होने के कारण कुछ अलग सा नजर आता है. संकरी घाटी में यह अहसास ही नही होता कि यहां पर दो बड़ी नदियों का सगम हो सकता है. दाईं ओर को एक रास्ता जो सतलुज के साथ -2 जाता है वो सम्भवतः तिब्बत से लगे आखिरी गांवों के लिए सम्पर्क मार्ग होगा. हमारी यात्रा यहां से बाईँ ओर के मार्ग पर स्पीति नदी के साथ आगे बढ़ी. यहां पर कुछ दूर तक सड़क बेहद संकरी और चट्टानी है. आगे जाने पर घाटी खुलती जाती है और ऊपर चढ़ने के साथ इसका विस्तार और व्यापक होता चला जाता है.

यहां पर वनस्पति न के बराबर है इस क्षेत्र की टोपोग्राफी बिल्कुल भिन्न होने के कारण सुखी पहाड़ियां और रेतीले मैदान बेहद रोमांचक लगते हैं. ऐसा अपने देश मे यहां पर और लद्धाख में ही है. मैं कई बार सोचता हूँ कि हमारा देश कितनी विविधताओं को समेटे हुए है और हम कितने भाग्यशाली हैं जो इन्हें बेहद आसानी से एक्स्प्लोर कर पाते हैं.

स्पीति घाटी में आगे बढ़ते रहने के साथ नाको, समुदो, ताबो और धनकर गांव पड़ते हैं. इन गांवों में स्थापित मोनेस्ट्रीज़ बेहद शानदार और ऐतिहासिक हैं. खासकर धनकर की पुरानी मोनेस्ट्री जो उनके रेतीले पहाड़ पर अवस्थित है, बेहद दिलकश है. ऊपर पहाड़ से स्पीति नदी का फैलाव रोमांचित करता है. पूरी घाटी में चौड़े फैलाव के बीच बहती हुई छोटी -2 जलधाराएं आकर्षक लगती हैं. मन करता है यहां कहीं रुक के कुछ दिन सुकून ढूंढा जाए। इस दिन याने 16 सितम्बर 2018 की शाम को हम लोग स्पीति के मुख्य केंद्र काजा पहुंच गए.

जारी…..

लेखक देहरादून निवासी सत्या रावत है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago