मंदिर स्थापत्य की विभिन्न श्रेणियां इतिहास की पुस्तकों में, सिविल सेवा की तैयारियों के दौरान किए गए अध्ययन में पढ़ी थीं. नागर, बेसर, द्रविड, यूनानी, मुस्लिम, तुर्क आदि-आदि निर्माण श्रेणियां. (Khamsil Bubu Temple Almora Market)
नौकरी में आने के बाद एक श्रेणी और पता चली – मंदिर निर्माण की अतिक्रमण शैली. मैदानी भागों में अक्सर शनि देवता, काली माई और भैरव आदि लोकल देवताओं के मंदिर अतिक्रमण शैली में ही बनाए जाते हैं. यह तो रही भूमिका. (Khamsil Bubu Temple Almora Market)
अल्मोड़ा में गंगोला मोहल्ले में ऑफिस जाते समय दो मकानों की दीवारों के बीच पैदा हुए स्पेस में एक मंदिर नुमा आकृति की ओर एक दिन ध्यान गया तो उस पर लिखा पाया खमसिल बुबू मंदिर. किसी अज्ञात और अवचेतनात्मक बल के कारण हाथ जुड़ गए. प्रथम दृष्टया यह आपके नोटिस में न आने वाला मंदिर है क्योंकि बगल में पूरी मजबूती के साथ खड़ा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का एटीएम मंदिर से अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित है.
अल्मोड़े में एक साहित्यकार मित्र के द्वारा किलक कर बताये जाने पर कि आज उन्हें खमसिल बुबू की कृपा से पव्वा खरीदने के पैसे मिल गए, तब जाकर उनकी ओर ध्यान आकर्षित हुआ. मुद्रा के भौतिक और अभौतिक प्रदाता गंगोला मोहल्ले में शान से एक साथ खड़े हुए थे.
थोड़ा खोजने पर काफी कुछ पता चला.
पहाड़ में आत्माओं की पूजन और उनके प्रति श्रद्धा भाव की सदियों पुरानी परंपरा है. यह परंपरा जनता के सुरक्षा, आरोग्य, कल्याण के भाव को एक साथ प्रकट करती है. कुछ कष्टकारी आत्माओं की चिरौरी, उन्हें मना कर, बहला-फुसलाकर तथा एक छोटे से स्थान उनकी पूजा करके की जाती है ताकि वह अपने शांति प्रदाता स्वरूप में जनपीड़ा के स्थान पर जनकल्याण कर सकें और उनसे वांछित कल्याण का कार्य कराया भी जा सके.
इन्हीं में एक खमसिल बुबू भी रहे हैं. पहाड़ पर हर बड़े बुजुर्ग, जो कि दादा परदादा की उम्र का होता है, उसे बुबू कहने की परंपरा है. तो इससे सिद्ध होता है कि खमसिल बुबू कोई पुराने लहीम शहीम लोक नेता रहे होंगे.
कहा जाता है कि खमसिल बुबू तराई के किसी स्थान के व्यापारी, यात्री, पर्यटक अथवा यायावर थे जो कि अपनी किसी यात्रा के दौरान अल्मोड़ा आए और यहां के चक्कर में फंस कर यही रम गए. सुना है कि बुबू को हुक्का गुड़गुड़ाने और चिलम पीने का शौक था, सो कई स्थानीय नागरिक, शोहदे मुफ्त की चिलम के चक्कर में उनके यार अहबाब बन बैठे.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुबू सिद्ध पुरुष तो होंगे ही साथ ही खुशमिजाज और बातूनी भी रहे होंगे. हुक्का और चिलम फूंकने वालों के लिये जगह का जुगाड़ भी रहा होगा. थोड़े पैसे वाले भी होंगे जो वक्त बेवक्त एक-आध आना आदमी को बिना ब्याज के दिया करते होंगे.
अल्मोड़ा और यहां के बाशिन्दों के लिये खमसिल बुबू की जानिब से दो सुभीते रहे होंगे. दो नहीं तीन. नंबर एक तराई में पाई जाने वाली गुड़ाखू (तंबाकू की एक किस्म जिसका शोधन शीरे से होता है) से भरा हुक्का गुड़गुड़ाने को मिलता, नंबर दो अगर कुछ टके पैसे की जरूरत हो तो वह भी मिल जाते, तीसरा उनको घेर कर बैठने वाली जमात, जो कि उनकी पुरानी बड़ी-बड़ी आंखों से झांकती दयामूर्ति की बातों, आशीर्वाद की मुरीद होती में, से ही कोई काम का आदमी निकल आता.
खमसिल बुबू माफ करें यह उस लहीम-शहीम, रहीम-क़रीम बुजुर्ग के बारे में मेरी कल्पना है, श्रद्धापूर्वक कल्पना.
कुछ का कहना है कि यह बुजुर्ग अपनी मृत्यु के बाद आत्मा बनकर भटकने लगे और लोगों को परेशान करने लगे तब से उनके स्थान को लोगों ने पूजना आरंभ कर दिया.
ऊपर की पंक्तियां अपने आप में कितनी सच हैं कितनी गप्प, यह कोई नहीं जानता. पर इतना सच अवश्य है कि लोक कल्याणकारी देव के स्थान की पूजा आज भी श्रद्धा पूर्वक होती है, जो आरोग्य, कल्याण, शांति के साथ-साथ व्यापार में वृद्धि करते हैं.
खमसिल बुबू निस्संदेह अपने बंदों की हर वक़्ती-बेवक़्ती, रस्मी-बेरस्मी जरूरतों को समझते होंगे. एक ऐसा लोकदेव जो अपने भक्तों की हरेक अच्छी बुरी इच्छा को समान रूप से पूर्ण करने का आशीर्वाद देता था, फिर चाहे वह मेरे साहित्यकार मित्र के पव्वे के पैसे ही क्यों ना हों.
-विवेक सौनकिया
विवेक सौनकिया युवा लेखक हैं, सरकारी नौकरी करते हैं और फिलहाल कुमाऊँ के बागेश्वर नगर में तैनात हैं. विवेक इसके पहले अल्मोड़ा में थे. अल्मोड़ा शहर और उसकी अल्मोड़िया चाल का ऐसा महात्म्य बताया गया है कि वहां जाने वाले हर दिल-दिमाग वाले इंसान पर उसकी रगड़ के निशान पड़ना लाजिमी है. विवेक पर पड़े ये निशान रगड़ से कुछ ज़्यादा गिने जाने चाहिए क्योंकि अल्मोड़ा में कुछ ही माह रहकर वे तकरीबन अल्मोड़िया हो गए हैं. वे अपने अल्मोड़ा-मेमोयर्स लिख रहे हैं.
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ये कुछ अलग ही है। पढ़ते पढ़ते मुझे भी लगा कि बुबू गुड आदमी थे और अल्मोड़ा में उनका हिसाब किताब बढिया था और रहेगा..