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खड़ महराज और शिवजी की कथा

गीता गैरोला लेकर आई हैं एक और गढ़वाली लोक कथा.

लम्बी अनुपस्थिति फागुन बीत गया. सूरज की गर्मी ने अपनी तपस को बढ़ा दिया. जाड़ों के ठंडक की सीलन भाप बनकर आसमान की तरफ दौड़ लगाने लगी. सारी प्रकृति खिलखिलाने लगी. खेतों की मेड़ नन्हे-नन्हे हलके बैगनी बनफशा, पीले प्योंली और हजारों रंगबिरंगे फूलों से भर गयी. ये महीना हमारे गाँवों में खड़े गीत लगने लगते थे.

रात को गांव की सब महिलाएं, लडकियां किसी एक घर में जमा हो जातीं. गोल घेरा बना कर एक दूसरे के कंधों में हाथ बांध कर एक लय, एक ताल, एक सुर में गीत लगातीं. पहली पंक्तियाँ कुछ महिलाएं उठातीं, बाकी सब उसी पंक्ति को सुर से दोहरातीं.

सेरा की मिडोली नै डाली पैयाँ जामी
इक पत्ती ह्वे ग्याई नै डाली पैयाँ जामी
जामी पैयाँ डाली नै डाली पैयाँ जामी

इन्ही थडया गीतों के साथ चौन्फुला खेला जाता:

सरर जल्वाटा क्य धार बौ ये, सरर जल्वाटा क्य धार बौ ये
त्यार दादा कु पटूडी धार, टुकड़ी चूंडी मै थै बी दे दे

(एक नन्द अपनी भाभी को कहती है तूने जल्दी से आले में चुपके से क्या रखा है. भाभी कहती है तेरे दादा के लिए पकौड़ी रखी है. नन्द कहती है एक टुकड़ी तोड़ के मुझे भी दे दे)

और फिर आखिर में सबसे मजेदार खेल होता. एक ताल में पैरों को रखते पूरा गोल घेरा उछलता:

हे बूड़डी ढकै सौं, त्यारू बुढया ढकै सौं
ढकरा जाँदा ढकै सौं, क्य क्य लांदा ढकै सौं

इस खेल को देर तक खेलना आसान नहीं होता. पल-पल में घेरे से लोग छूटते जाते और घेरा छोटा होता जाता. उस उछल कूद में हमारी बड़ी मस्ती रहती. हम जैसी छोटी छोरियों का अलग से एक गोला बन जाता और हम बड़े लोगों के साथ सुर ताल मिलाने के चक्कर में पूरा घाल मेल कर सब बिगाड़ देते.

गाँवों के अपने रिवाज होते हैं. जिस थोक (कई परिवारों का समूह जो पिछली पीढ़ियों से साथ जुड़े हों) में किसी की मृत्यु हो जाती, उस थोक में आवाजा (अशुद्धि) माना जाता. वो लोग एक साल तक कोई तीज त्यौहार नहीं मनाते थे.

इस बरस हमारे थोक में अवाजा था इसलिये हमारे खोला में गीत लगने वाले नहीं है, इस बात से हम बच्चे मरने वाले पर बहुत गुस्सा करते. पर हमारी नाराजी से कुछ बनने वाला नहीं था.

अब गांव के हर घर में रातों को इतने मजेदार गीत लगते हों और हम लोग उस मजे को लेने से छूट जाते. एक महीने तक रोज हमें ऊपर गाँव में कौन लेकर जाता. एक दिन हमने दोपहरी से रात के गीतों में जाने के लिए हिंगर (बच्चों की जिद) डाल दी.

पैर घिसे, बाल फोल (खोल) के फैला दिए. सारे दिन हूँ-हूँ करते दादी के पीछे घूमते रहे. जब दादी ने रात को दो कथा एक के बाद एक लगाने की बात कबूली तब सोचा आज के लिए इतना ही बहुत है. मान जाना चाहिए.

रात हुई. हमने दादी के दोनों तरफ घेरा बनाया. चल लगा कथा. दिक्कत ये थी कि दादी का मुँह अपनी तरफ करती रीता कहती तू मेरी तरफ देख के कथा लगा और मैं अपनी तरफ करके कहती अब लगा तू कथा. ऐसा करने में दादी के गुस्सा हो जाने का डर भी लगा रहता पर यहाँ पर दादी के ऊपर कब्ज़ा जमाने की होड़ तो लगती ही थी.

किसी तरह बीच बचाव के बाद कथा लगनी शुरू हुई.

त सुनो छोरियो बहुत पुराने बगत की बात है. जब जंगल में सब मेल जोल से रहते थे. बड़े पराणी छोटे पराणियों को खाते तो थे ही पर बहुत रीझ-बूझ के. जिससे सारे प्राणियों के बीच में सेवा-सौंली बनी रहे. एक दिन सुबेर झुटपुटे की बात है. एक स्याल इधर उधर जुलमुंडी (ताका झांकी) देता अपने खाने के लिये मरे जानवर की खोज कर रहा था.

रास्ते में किसी आदमी ने लीसा भर के एक बर्तन रखा था. उसी रास्ते में स्याल अपने खाने की जुगाड़ देख रहा था. अँधेरे में गीदड़ को लीसे का भांडा तो दिखा नहीं और गलदम से उसके अंदर गिर गया. अब जितना स्याल निकलने की कोशिश करता लीसा और चिपक जाता.

जब उस रास्ते में लोग आने जाने लगे तब जा कर बड़ी मुश्किल से स्याल को लीसे के बर्तन से बाहर निकाल पाये. लीसे से स्याल के कुछ बाल खड़े हो गए, कुछ एकदम चिपक गए. जब वो बाहर निकलने के लिए चिल्ला रहा था उसके दोनों जबड़े आधे चिपक गए.

द बाबा अब न वो स्याल जैसा लग रहा था अर न उसका रोना ही स्याल जैसा था. हुआँ-हुआँ की जगह ह्या-ह्या कर सारे लोगों के बीच बताने लगा की वो स्याल है. पर बन में किसी ने उसे पहचाना ही नहीं. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सारे जानबर उसे पहचान क्यों नहीं पा रहे हैं.

थका उदास हो कर बेचारा गीदड़ नदी किनारे पानी पी रहा था तभी पानी में अपनी सूरत देख के डर गया. वो चट समझ गया की लीसे ने उसकी शक्ल सूरत बिगाड़ दी है. ठंडा पानी पीते ही उसकी स्याल बुद्धि काम करने लगी.

उसने सोचा मैं अपनी शकल और अकल से सारे जानवरो को बस में कर सकता हूँ. दो चार दिन तो जिंदगी बैठे-बैठे चैन से कट जायेगी. चिपके जबड़े से जैसा-तैसा तो खाया नहीं जा रहा. रौब दाब से कुछ मुलायम मिल जाये तो पेट भरे. बाद की बाद में देखी जायेगी.

वहाँ पर दो मेंढक घाम ताप रहे थे. स्याल दबे पैर मेंढकों के पास गया और झपा-झप दोनों को मार कर अपने कानों में कुंडल जैसे लटका दिए. अपने बदन पर लगे लीसे से चौड़े पत्तों को चिपकाया और सर पर ताज जैसा लगा के अकड़-अकड़ कर ह्या-ह्या करता जंगल के बीच एक चौन्तरे पर बैठ गया.

जंगल के छोटे-मोटे जानबर आश्चर्य के साथ डर के मारे थोड़ी दूरी बना कर चौन्तरे के चारों तरफ जमा होने लगे. जानबरों की भीड़ देख कर स्याल एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रख कर और अकड़ के बैठ गया. किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी कि पूछे महराज तुम हो कौन? तभी भेड़िये ने जरा हिम्मत जुटाई और स्याल के पास जाने लगा तो स्याल डर के मारे कांपते ह्या-ह्या करने लगा.

भेड़िये ने सोचा महराज गुस्सा हो गए तो हाथ जोड़ के बोला महराज तुम हो कौन? कहाँ से आये? स्याल समझ गया कि तीर तुक्के पर लगा है. चारों तरफ देखता बोला हम हैं खड़ महराज, इस जंगल के नए राजा. पूरे जंगल में डौन्डी पिटवा दो. बाबा शिव ने सीधे कैलाश पर्वत से इस जंगल के लिए नया राजा भेजा है.

शिवजी बिचारा गरीबों को द्यब्ता हुआ बाबा. सबके ऊपर अहसान हैं बाबा के. द सारे जानबर हाथ जोड़ कर शिबौ शिब करने लगे. स्याल ने जोर से ठहाका लगाने की कोशिश की पर जबड़े जुड़े होने के कारण स्याल के मुँह से अजीब सी आवाज निकल कर आस पास फ़ैल गयी.

कहीं इन्हें मेरी असलियत समझ तो नहीं आ गयी ये देखने के लिए स्याल ने लीसे से जुड़ी अँगुलियों वाले हाथ हवा में उछाले और बोला मै सबकी दया माया रखने वाला राजा हूँ. आज से इस जंगल में जानबरों का शिकार करना बंद. जो जानबर अपनी मौत मरेगा उसी का शिकार खाया जायेगा.

स्याल ही हुआ बाबा, उसने तो मरे हुए जानबर ही खाये हमेशा. फिर बोला हमारे लिए भी केवल उसी जानबर के शिकार लाया जाये जो अपनी मौत मरा हो. ये बात सुनकर जानबरों के बीच खलबली मच गयी. किसी ने धीरे से ताली बजाई और फिर चारों तरफ से धन हो महराज, धन हो महराज की आवाजें आने लगी.

क्या जु बाबा जानबर लोग शेर राजा से बहुत तंग आ गए थे. एक तो उसकी दहाड़ इतनी भयंकर डराने वाली. ऊपर से जब चाहे, जितने चाहे जानबरो को मार देता था. हर जानबर को अपनी मौत दिखाई देती. चैन अमन सब राजा के डर के सामने ख़तम हो गए थे. पर डर इतना था कि बोले तो बोले कौन.

जंगल की सारी परजा जमा हो गयी. बड़ी बात ये थी की ये शिव बाबा का भेजा राजा है. इधर शिव पार्वती भी बहुत दिनों से दिखाई नहीं दे रहे थे जो पूछ ताछ कर लेते. परजा के बीच गुप चुप बातें होने लगी. भाई लोगो देखो हम सब शेर राजा के राज में डरे, सताये दुखी लोग है. जब भी फरियाद ले कर गए झूट बोल कर भगा देता है. डरा देता है. हमारे बीच से दो चार फरियादी को चट कर जाता है.

तभी तोते ने अपनी टेंट लगाई – देखो भाइयो जरूर इसे शिवजी ने अपने भूतों में से छाँट कर हमारे दुखों को दूर करने भेजा है. सबसे अलग दीखता है ये राजा. शंकर के गणों जैसा ही दीखता है. तोते की बात सबको समझ आ गयी. सबने अपनी मुंडी हिला कर कहा अब से हमारे राजा खड़ महराज हुये.

भालू हाथ जोड़ कर बोला महराज आज से आप हमारे राजा हुए. स्याल तो इतना चौड़ा हो गया कि फूटने को तैयार. हुर्र-हुर्र की आवाज करते बोला, तो जाओ और शेर राजा को बाल बच्चों समेत मेरे सामने हाजिर करो. हाथी, भालू, बाघ जैसे बड़े जानबर लगे खड़बड़ खड़बड़ बाट.

इस बीच बन में खड़ राजा की खबर फैल ही गयी थी. डौन्डी भी पिट गयी थी, सुनो, सुनो, सुनो शिवजी मादेव ने हमारे लिए नया राजा भेजा है. शेर राजा थोडा डरा घबराया था. जब परजा शेर राजा के पास पंहुची तो अपनी नकली अकड़ दिखाता बोला, ये कौन नया राजा आ गया. जंगल का राजा तो हमेशा शेर होता है.

भालू बोला महराज नया राजा शिवजी मादेव ने सीधे कैलाश से भेजा है. इसमें हमारा कोई कसूर नहीं है. जंगल के कुछ दुखी जानबरों की पुकार सुन के शिवजी ने ऐसा किया होगा. हमारे लिए तो आज तक आप ही राजा हुए. अब शिवजी की बात तो आपको भी माननी पड़ेगी. नए राजा का हुकुम है आप फ़ौरन उनके सामने हाजिर हो जाएं.

मरता क्या ना करता. शेर परिवार के साथ परजा के बीच आ गया. उधर स्याल ने सोचा, बेटा अब तक तो तेरा रौब चल गया. अपने भागने का रास्ता भी देख ले. कहीं शेर पहचान गया तो जान के लाले पड़ जायेंगे. अर वो चढ़ गया सबसे ऊपर चोटी पर. मौका देखते ही सरपट होने के लिए.

अर शेर अपने बाल बच्चों के साथ नीचे परजा के साथ खड़ा हो गया. कुछ जानबरो के चेहरों से हंसी छूटने को तैयार थी. बेटे शेर सिंग अब तक तूने बहुत सताया अब मिला तेरा गुरु.

शेर राजा के डर से खड़ महराज की खड़खड़ाहट तब कम हुई जब शेर हाथ बाँध के खड़ा हो गया. बगल में जवान चिफलपट शेरनी को देख कर स्याल ने सोचा अगर ये शेरनी मेरी रानी बन जाये तो रौब दाब और बढ़ जाएगा. बस फिर क्या स्याल बोला हे अन्यायी शेर तू मेरे राज से अपने बच्चे लेकर फ़ौरन निकल जा.

अर हाँ इस शेरनी को ले जाने की हिम्मत मत करना. आज से ये खड़ महराज की जनानी हुई. सारी परजा को नए राजा के साथ खड़े देख कर शेर अपने बच्चों के साथ चुपचाप जंगल छोड़ के चला गया. स्याल ने सोचा आज तो तू बचा बेटे, और गहरी सांस लेता शेरनी से बोला आज से मेरे खाने पीने का इंतजाम तेरा.

सारी परजा उसी जानबर का शिकार खाती जो मरा होता और खड़ राजा के लिए भी वही शिकार मिल जाता. गीदड़ के दिन मस्ती से गुजरने लगे. पर शेरनी को तो मरे जानबर का शिकार कभी पसन्द नहीं आता था. जंगल में सब अमन चैन से रहने लगे. परजा की संख्या भी बढ़ने लगी.

एक दिन प्रेम प्यार से शेरनी ने स्याल को पटाया. देखो जी मुझे खुद ताजा शिकार मार के खाने का मन हो रहा है. तुम कहो तो तुम्हारे लिए भी ले आऊं. ताजे शिकार के नाम से ही स्याल की लार टपकने लगी. बोला देख भई तू सबसे छुपकर मार करना. अगर कोई देख लेगा तो मै सम्हाल लूंगा.

उस दिन के बाद शेरनी चुपके से एक जानबर को मार लाती और दोनों जने चपट कर जाते. जानबर इतने हो गए थे कि दो चार की गिनती ही नहीं हो पाती. होते करते स्याल के दिल से शेरनी का डर भी जाता रहा.

एक दिन शिव पार्वती नारद जी के साथ घूमने निकले. नारद बोले, भगवन सुना है आपने इस जंगल में शेर की जगह नया राजा भेजा है.
शिवजी बोले, क्या कहते हो नारद, कौन राजा, कैसा राजा, मैंने तो कोई राजा नहीं भेजा. मै क्यों जंगल के कानून को तोड़ूंगा.

नारद मुल से हंसे. बोले, भगवन सारे जंगल में तो यही हाम (अफवाह) है कि आपने सीधे कैलाश से राजा भेजा है. पार्वती की बुद्धि चसकी. कुछ सोचते बोली स्वामी कहीं किसी स्याल ने तो आपको फिर से नहीं ठग लिया. आपका नाम ले कर मौज कर रहा हो. चलो जरा देखा जाये.

अब बारी शिवजी की थी,उन्होंने सोचा ये साला स्याल हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता है. अगर इसने नारद और पार्वती के सामने ही मुझे बेवकूफ बना दिया तो क्या इज्जत रह जायेगी. स्याल तो धत्त तेरी ,बोल के भाग जाएगा. इस समय समझदारी इसी में है कि चुपचाप निकल जाऊं. बाद में देख लूंगा.

शिवजी बोले अरे नारद और पार्वती तुम लोग भी एक गीदड़ के पीछे कहाँ लगे हो. हमें मृत्यु लोक में और बहुत से काम निबटाने हैं. छोड़ो उसे,

नारद को सब समझ में आ रहा था पर बोले ठीक है प्रभु, चलिये मौसम भी खराब हो रहा है. जल्दी कैलाश पहुँचना है. ये सुनते ही शिवजी ने सरासर दौड़ लगा दी.

उस दिन रात को आंधी तूफ़ान के साथ बहुत बारिस हुई. जंगल के बड़े-बड़े पेड़ उखड़ गए. पहाड़ टूट गए. बहुत से जानबर मर गए. जंगल में हाय-हाय मच गयी. स्याल आराम से सोता रहा. शेरनी ने स्याल को झकझोरा, तुम कैसे राजा हो. तुम्हारी परजा हाय-हाय कर रही है और तुम सो रहे हो.

द स्याल ही हुआ बाबा. आराम से करबट लेता बोला, मजा आ गया. कई दिनों के खाने का जुगाड़ हो गया. पर शेरनी तो शेरनी थी. बोली चलो अपने राज में देखभाल करके आना जरूरी है.

मृत्यु लोक में हाहाकार देख कर शिवजी भी भ्रमण पर निकल गए. देखते क्या है कि एक जगह में पूरा पहाड़ टूट गया, सारे रास्ते खत्म हो गए. शेरनी के पीछे खड़े चिपके बालों वाला लूथी सा खड़ी पूँछ लिए एक अजीब सा जानवर चल रहा है.

शिवजी महराज समझ गए अच्छा तो ये है नया स्याल राजा. प्रभु ने सोचा अच्छा मौका है, आज इसकी पोलपट्टी खोल दूंगा जरूर. मेरा नाम लेकर मौज ले रहा है.

टूटा रास्ता देख कर स्याल राजा के तो हालात ख़राब हो गए. कभी ऊपर देखे, कभी नीचे, कभी दायें, कभी बाएं. शेरनी ने रास्ते को देखा और एक लंबी छलांग लगा के पार हो गयी. उधर से बोली तुम भी ऐसे ही छलांग मारो न.

बेचारा खड़ राजा की तो आज राज पाट के छीन जाने की नौबत थी. क्या करे, क्या न करे. शिवजी ने एक गांव के आदमी का रूप धरा और स्याल के सामने आ कर बोले, लै अब मार फाल. चलके बलके क्या लगा रहा है. रूप बदलने से कोई राजा नहीं बन जाता. उधर शेरनी बुलाने पर लगी थी.

स्याल की बुद्धि जागी. उसने घुर्र करके शेरनी को डांटा. अरे तू तो है बेवकूफ. तू राजा है क्या. तेरा क्या है बस देखा और लम्म से लपाक मार दी. मै राजा हूँ, सारी परजा का भला देखूंगा. मै इस रवाड़े (टूटा पहाड़)में ये देख रहा हूँ ये टूटा तो टूटा कहाँ से. बनवाना भी तो है बाकी परजा के लिए.

ऐसा बोलते स्याल नीचे उतरा और धीरे धीरे पार कर गया. पार जाते ही बोला धत्त तेरे भगवान की और सरपट भाग लिया.

हमने कथा सुनके ताली बजाई और दादी से बोली, चुप दूसरी कहानी नई सुननी तेरी. कल गीत लगाने जाना ही है हमने. गीत गीत है और कथा कथा.

 

-गीता गैरोला

देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.

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