एक काज़ी साहब दिए की रोशनी में कोई पुरानी किताब पढ़ रहे थे. उसमें उन्होंने एक जगह पढ़ा “लंबी दाढ़ी वाले अक्सर बेवकूफ होते हैं”
काज़ी साहब को बड़ी ख्वाहिश थी कि लोग उनकी अक्लमंदी का लोहा मानें, हरेक की जुबान पर उनकी दानिशमंदी के चर्चे हों. और उनकी दाढ़ी शहर में सबसे लंबी है, सो उनको तो सब जाहिल और बेवकूफ समझते होंगे! यह सोचकर उन्हें बड़ा दुःख हुआ.
अचानक दिए पर उनकी नज़र पड़ी. बिना आगा पीछा देखे उन्होंने अपनी दाढ़ी को मुट्ठी में पकड़ा और उसका निचला सिरा लौ से छुआ दिया दाढ़ी छोटी हो सके.
मुलायम चिकनी दाढ़ी ने तुरंत आग पकड़ ली. आग दाढ़ी से फैलती हुई मूंछों, भौं और फिर सिर के बालों को भी जला गयी. बड़ी मुश्किल से आग बुझाने के बाद जान बची.
काज़ी साहब को अब लगने लगा कि लंबी दाढ़ी वाले वाकई बेवकूफ होते हैं.
डिस्क्लेमर: यह मात्र लोककथा है इसका वास्तविक जीवन से सम्बंध ढूंढने में काज़ी साहब सी बेवकूफी न करें.
(इस लोक कथा को शब्द दिए हैं कमलेश उप्रेती ने. कमलेश पिथौरागढ़ ज़िले के डीडीहाट में एक अध्यापक हैं. वे सरकारी अध्यापकों की उस खेप में शामिल हैं जो बेहद रचनात्मक है और विचारवान है.)
(तस्वीर इंटरनेट से मात्र प्रतीकात्मक है.)
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