उत्तराखण्ड राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में से एक हैं. यह 2-5 हजार मीटर ऊंचे हिम शिखरों में पाया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम मास्कस कइसोगास्टर (Moschus Chrysogaster) है. इसे ‘हिमालयन मस्क डिअर’ के नाम से भी जाना जाता है. कस्तूरी मृग अपने अप्रतिम सौन्दर्य के साथ-साथ अपनी नाभि में पायी जाने वाली कस्तूरी के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह खुशबूदार कस्तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो इसके पेट के निचले हिस्से में एक थैली में मौजूद होती है. एक नर मृग की थैली में लगभग 30 से 50 ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है. इस कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाएं बनाने में होता है. कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी मदहोश कर देने वाली खुशबू के लिए प्रसिद्ध है.
कस्तूरी मृग का रंग भूरा होता है. इस भूरी त्वचा पर रंगीन धब्बे होते हैं. इस मृग के सींग नहीं होते. नर की बिना बालों वाली पूंछ भी होती है. इसके पिछले पैर अगले पैरों की तुलना में लम्बे होते हैं. इसके जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं. इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है.
कस्तूरीमृग नामक पशु मृगों के कुल खुर वाले अंग्युलेटा (Ungulata) की मॉस्कस मॉस्किफ़रस (Moschus Moschiferus) प्रजाति का जुगाली करने वाला स्तनपायी चौपाया है. प्राय: हिमालय पर्वत के 2500 से 3600 मीटर तक की ऊँचाई पर तिब्बत, नेपाल, भूटान, चीन, साइबेरिया, कोरिया इत्यादि के पहाड़ों में पाया जाता है. शारीरिक बनावट में यह बहुत छोटा होता है. नर मृग की नाममात्र की छोटी सी बालविहीन पूँछ हुआ करती है. मादा मृग की पूँछ पर घने बाल पाए जाते हैं.
इनके मुंह में जुगाली करनेवाले चौड़ा दाँत इनसिज़र (incisor) नहीं होता, केवल चबाने वाले सहायक दाँत हुआ करते हैं. इन मृगों के दो बड़े दाँत कैनाइन (canine) ऊपर से ठुड्डी के बाहर निकले रहते हैं. इसकी पिछली टाँगें अगली टाँगों से अधिक लंबी होती हैं. इसके खुरों और नाखूनों की विशेष छोटी, नुकीली बनावट फुर्ती से भागने में काफी मददगार होती है. इनकी मदद से भागते समय भी इसकी टाँगें खड़ी चट्टानों के मामूली किनारों पर टिकी रह सकती हैं. इसके भीतर से खोखले खुर होते हैं. इसी वजह से रुई जैसी हल्की बर्फ में भी ये नहीं धँसते और जमी हुई ठोस बर्फ की सतह पर भी नहीं फिसलते. इसके शानदार पैर इसे एक ही बार में 15 से 20 मीटर तक लम्बी छलांग लगाने में सक्षम बनाते हैं. उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष बुरांश
इसके कानों की जबरदस्त श्रवणशक्ति इन्हें विश्व के सबसे चौकन्ने जीवों में से एक बनाती है. इनके शरीर के रंग में बहुत विविधता पायी जाती है. पेट और कमर का निचला किस्सा अमूमन सफ़ेद ही होता है, शेष हिस्सा कत्थई भूरे रंग का होता है. शरीर का ऊपरी हिस्सा सुनहरा, हल्का पीला या नारंगी रंग का भी हुआ करता है. इन मृगों की कमर और पीठ पर रंगीन धब्बे होते हैं. इनके शरीर पर घने बाल रहते हैं. इन बालों का निचला आधा भाग सफेद होता है. सीधे और कठोर बाल छूने में बहुत मुलायम महसूस होते हैं. उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी मोनाल
कस्तूरीमृग उच्च हिमालयी पहाड़ी जंगलों की चट्टानों के दर्रों और गुफाओं में रहता है. यह अपने निवास स्थान को कड़क ठण्ड के मौसम में भी नहीं त्यागता. चरने के लिए बहुत लम्बी दूरी तय करने के बाद भी यह लौटकर अपनी गुफा में ही आता है. हिमालयी घास-पात, फूल, जड़ें, झाड़ियाँ और जड़ी-बूटियाँ ही इसका प्रमुख भोजन हैं. ये एकांतवासी जीव हैं, ऋतुकाल के अलावा सामान्यतः समूह में रहना पसंद नहीं करते. कस्तूरी मृग की सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है. कस्तूरी मृग तेज गति से दौड़ने वाला जानवर है, लेकिन दौड़ते समय 50 मीटर दौड़ने के बाद मुड़कर देखने की प्रवृत्ति ही इसके लिये जानलेवा बन जाती है. कस्तूरी मृग की प्रजाति संकट में है. कस्तूरी मृग के शरीर पर मौजूद कस्तूरी ही उसकी मौत का कारण बनी हुई है. पैसा कमाने की हवस में अँधा इंसान उसकी थैली में मौजूद कस्तूरी को निकालकर बेच डालने के लिए उसकी हत्या करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता. उत्तराखण्ड सरकार द्वारा इसके संरक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
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