मोहिनी सुंदर है. मोहिनी सुभग है. वह आज रेल के डिब्बे में सवार है. डिब्बा वातानुकूलित है.
मोहिनी नवयौवना है. नवविवाहिता है. उसके आभूषण कभी तीनताल तो कभी झपताल में मधुर संगीत उत्पन्न कर रहे हैं.पूरा डिब्बा उसके सुगम संगीत से गूंज रहा है.
मोहिनी सुवामा है. सुनन्दा है. एक बुभुक्षु याचक युवा खुले मुँह से मोहिनी को निरन्तर देख रहा है. आज पहली बार यकायक उसके अंदर सेवा का भाव उत्पन्न हुआ है.
वह मोहिनी की अटैची को शायिका के नीचे रखवाता है. बैग को मोहिनी से लेकर टाँगता है. युवक की दन्तावली बार-2 उसके ओष्ठों से बाहर आ रही है. छुपाये नहीं छुपती है.
मोहिनी अनुभा है. पर मोहिनी अबला भी है. मोहिनी की शायिका ऊपर वाली है. युवक अपनी नीचे वाली शायिका को बलिदान करने के लिये स्वयं को प्रस्तुत करता है. आज उसके भीतर समाज सेवा का भाव प्रबल है. वह लपक कर ऊपर वाली शायिका पर चढ़ जाता है. जहाँ से दृष्टि का विस्तार क्षेत्र और विस्तृत हो जाता है. अब वह अपनी चक्षु क्षुधा मिटाने के सर्वाधिक उपयुक्त स्थान पर है.
मोहिनी ‘लोअर’ शायिका पर बैठ चुकी है. बगल वाली बर्थ पर लेटे सज्जन ने भी करवट बदल ली है. अब उनका मुँह मोहिनी की ओर है और आँखें मिची हुईं है. कुछ इस तरह से की वे झीना-झीना देख सकते हैं.
मोहिनी माता है. मातृका है. मोहिनी के अंक में शिशु है. मोहिनी के बैठते ही वह शिशु डिब्बे में विचरण करने लगता है. मोहिनी शिशु के पीछे ससांक! ससांक! करती उसे बुलाने चली आती है. सभी ईश्वर से कामना कर रहे हैं की शिशु उन तक चल कर आये.
सुंदर स्त्री की गोद में शिशु देख कर पुरुषों में भी मातृत्व उमड़ आता है.
तो आज डिब्बे में मातृत्व की नदी बह रही है. आज किसी को भी ‘विंडो सीट’ की वांछा नहीं है. सभी गलियारे वाली सीट पर बैठना चाहते हैं. जहाँ से वे निश्चिंत होकर मोहिनी को देख सकते हैं. सभी शिशु को तरह-2 के इशारों से अपनी ओर बुला रहे हैं. डिब्बा अब नन्द गाँव का उपवन बन गया है. जहाँ शिशु ठुमक चलत धीरे-2 आगे बढ़ता है. गलियारे में ह्रदयों के स्पंदन स्पष्ट सुने जा सकते हैं.
अचानक ही शिशु रुकता है और पीछे लौट जाता है. शेष डिब्बे में निराशा छा जाती है. यही क्रम पुनः दोहराया जाता है. इस बार शिशु कुछ और आगे तक आता है. सभी शिशु को रिझाते हैं.
फिर जैसे ईश्वर ने उनकी याचना स्वीकार कर ली हो पीछे से मोहिनी ससांक! ससांक! करती उसे गोद में लेने आ जाती है.
डिब्बा अब जरा-मरण से मुक्त हो चुका है. प्रौढ़ों को अपना यौवन लौटता दिखता है. वृद्ध आज इसी क्षण मोहिनी से सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य प्राप्त कर मुक्त हो जाना चाहते हैं. भारतीय रेल के बी-थ्री नामक इस उपवन में आज बहार आई हुई है. आज मोहिनी वह कल्लोलिनी है जिसके कल्लोल से सभी के हृदय कल्लोलित हैं.
अचानक ही शशांक धम्म से गिरता है. सभी का कलेजा मुँह को आ जाता है. शशांक के गिरने से बड़ी दुर्घटना उनके जीवन में कोई नहीं हुई. सभी शशांक को उठाने के लिये लपकते हैं. परन्तु साठ नम्बर सीट वाले बब्बा के हाथों यह चल वैजयंती लगती है. बब्बा अब सभी की ईर्ष्या के केंद्र बिंदु बन गये हैं.
जिनका गन्तव्य आ जाता है वे निराश हो जाते हैं. उन्हें दुख है कि वे इस नगर में क्यों रहते हैं, इसके अगले में क्यों नहीं! वे कामना कर रहे हैं कि ट्रेन यूँ ही आउटर पर अनन्तकाल तक खड़ी रहे.
फिर वो घटना होती है जिसके बारे में किसी ने कल्पना ही नहीं की थी.
मोहिनी का गन्तव्य आ जाता है. विदाई की बेला आ गई है. पुरुषों के दिल भारी है. वे शशांक को गोदी में ले कर मोहिनी को प्लेटफॉर्म तक विदा करना चाहते हैं. पर तभी वहां मोहिनी के दो महाभट्ट भुजंग भ्राता आ जाते हैं.
डिब्बे के पुरुषों को अपनी इस आख़िरी समाज सेवा करने का विचार त्यागना पड़ता है. मोहिनी उतर जाती है.
डिब्बा एक रेगिस्तान है जिसमें गर्म हवा चल रही है. सभी अब जल्दी घर पहुँचना चाहते हैं
प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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