कुमाऊनी भाषा उत्तराखंड के कुमाऊँ मण्डल के छह जनपदों में बोली जाती है. इसके अलावा देश के विभिन्न भागों में जहां-जहां भी प्रवासी कुमाऊनी रहते हैं, वे भी सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं. इस तरह वर्तमान में कुमाऊनी बोलने वालों की संख्या लाखों में है. (Kumaoni Language)
भाषा विज्ञानी अन्य पहाड़ी भाषाओं की ही कुमाऊनी भाषा का उद्गम भी शौरसेनी अपभ्रंश से मानते हैं. लेकिन जब से कुमाऊँ में कुमाऊनी समाज अस्तित्व में आया होगा, तभी से कुमाऊनी भाषा भी अस्तित्व में रही होगी, क्योंकि भाषा के बिना समाज और समाज के बिना भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती. इस तरह कुमाऊनी भाषा ने एक लम्बी विकास यात्रा तय की है. अतीत से लेकर वर्तमान तक कुमाऊनी भाषा का कई सन्दर्भ में प्रयोग होता रहा है. वर्तमान में कुमाऊनी भाषा का जिन-जिन सन्दर्भों में प्रयोग हो रहा है, उनमें प्रमुख हैं —
भौगौलिक संदर्भों में उसका प्रयोग कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली लगभग 10 बोलियों के समूह के रूप में होता है. ये 10 बोलियां हैं —
इनमें प्रारंभिक छः बोलियां पश्चिमी कुमाऊनी के अंतर्गत तथा बाद की चार बोलियां पूर्वी कुमाऊनी के अंतर्गत आती हैं. लेकिन मानकीकरण के संदर्भ में खसपर्जिया को ही कुमाऊनी का मानक रूप माना जाता है.
इतिहास में कुमाऊनी का लिखित रूप हमें दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी से तत्कालीन ताम्रपत्रों एवं शिलालेखों से प्राप्त होता है. कुमाऊँ में चंद शासनकाल में कुमाऊनी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त था, जिसकी पुष्टि तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों, दानपत्रों, ताम्रपत्रों, सनदों एवं शिलालेखों आदि से होती है, लेकिन यह कुमाऊनी संस्कृत मिश्रित थी. लिखित तौर पर कुमाऊनी का यह संस्कृतनिष्ठ रूप बहुत बाद तक भी चला. कत्यूरी शासनकाल में राजभाषा संस्कृत मानी जाती है, लेकिन लोकभाषा संस्कृत नहीं रही होगी, क्योंकि यहां तब के अनपढ़ समाज से संस्कृत सीखने की उम्मीद नहीं की जा सकती. कुमाऊँ में आर्यों एवं आर्येत्तर जातियों के आगमन से पूर्व भी लोकभाषा कुमाऊनी ही रही होगी, जिसकी पुष्टि तब के लोकसाहित्य से होती है. (Kumaoni Language)
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(प्रो. शेरसिंह बिष्ट के लेख का यह अंश श्री लक्ष्मी भण्डार (हुक्का क्लब), अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘पुरवासी’ से साभार लिया गया है)
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"लेकिन लोकभाषा संस्कृत नहीं रही होगी, क्योंकि यहां तब के अनपढ़ समाज से संस्कृत सीखने की उम्मीद नहीं की जा सकती"