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अलीबाबा और चालीस चोर में एक चोर थे महबूब खां

1939 में महबूब खां को अरेबियन नाइट्स की मशहूर कहानी पर आधारित अलीबाबा फिल्म का निर्देशन सौंपा गया. वह अपनी हर फिल्म को चुनौती की तरह लेते थे. लेकिन इस फिल्म के साथ एक ख़ास बात थी. बंबई आने के बाद उन्होंने इंपीरियल फिल्म कंपनी की 1927 में प्रदर्शित मूक फिल्म अलीबाबा और चालीस चोर में बतौर एक्स्ट्रा काम किया था. वह चालीसा चोरों में से एक थे, जहां उनकी शक्ल तक नहीं दिखाई देती थी और आज वह खुद एक यशस्वी निर्देशक की हैसियत से उसी कहानी पर फिल्म बना रहे थे, तो उन्हें एक विचित्र-सी अनुभूति हो रही थी. वह बहुत भावुक हो उठे और उन्होंने अलीबाबा का मुहूरत शॉट उसी इंपीरियल स्टूडियो में लेने का फैसला किया, जहाँ से उन्होंने अपना न-कुछ कैरियर शुरू किया था.

इंपीरियल कंपनी के आर्देशिर सेठ को महबूब खां के इस फैसले से बहुत खुशी हुई. उन्हें ख़ुशी इस बात की थी कि महबूब खां एक सफल निर्देशक बनने के बाद भी अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं. सेठ ने आग्रह किया कि पूरी फिल्म यहीं शूट की जाए. महबूब साहब उनके इस आग्रह को टाल नहीं सके और उन्होंने पूरी फिल्म इंपीरियल के स्टूडियों में ही शूट की.

जिन दिनों में इस फिल्म की शूटिंग हुई, वह रमजान का महीना था और महबूब खां पक्के मजहबी होने के कारण रोजे से रहते थे. नतीजन पूरी शूटिंग सिर्फ रातों में हुई.

अलीबाबा के साथ-साथ महबूब खां ने अपनी अगली फिल्म औरत पर भी काम शुरू कर दिया था. लेकिन इसी बीच द्वितीय महायुद्ध शुरू होने से सागर मूवीटोन बिखर गया और उसके स्थान पर नेशनल स्टूडियोज नामक एक कंपनी खड़ी की गई. एक तरह से यह नाम का बदलाव ही था, कर्माचारी सारे सागर मूवीटोन वाले ही थे. नतीजतन औरत फिल्म का निर्माण नेशनल स्टूडियोज के बैनर से किया गया.

औरत फिल्म के मूल में पर्ल एस. बक नोबुल पुरस्कार विजेता उपन्यास ‘ द गुड अर्थ ‘ की प्रेरणा थी, जिस पर आधारित अंग्रेजी फिल्म उन दिनों बंबई के एक सिनेमाघर में चल रही थी. बस, उन्होंने कहानी का भारतीय रूपांतरण कराया और इस तरह औरत का कथानक तैयार हुआ.

सत्रह साल बाद 1957 में, इसी फिल्म को लेकर अपने कैरियर की सर्वाधिक चर्चित एवं कालजयी फिल्म मदर इण्डिया का निर्माण किया. वह इस फिल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्व अंग्रेजी नाम रखा. फिल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ.

वसुधा के हिन्दी सिनेमा बीसवीं से इक्कसवीं सदी तक में शरद दत्त के छपे लेख के आधार पर

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Girish Lohani

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