कैलाश मानसरोवर यात्रा भारत की सबसे कठिन और पवित्र धार्मिक यात्राओं में एक है. भारत के लोग कैलाश मानसरोवर की यात्रा तीन जगहों से करते हैं. एक नेपाल, दूसरा सिक्किम और तीसरा उत्तराखंड से. तीनों ही रास्ते लम्बे और कठिन हैं.
(Inaugurataion of Link Road to Kailash Mansarovar Yatra)
उत्तराखंड से की जाने वाली यह यात्रा दिल्ली-पिथौरागढ़-तवाघाट-घट्टाबगड़-लिपुलेख से होते हुये कैलाश मानसरोवर तक की जाती है. वर्तमान में घट्टाबगड़ से लेकर लिपुलेख तक का सफ़र पैदल तय करना होता था. 80 किमी की इस दूरी को तय करने में करीब 5 दिन लगते थे.
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज ट्वीटर पर यह जानकारी दी की लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क तैयार हो चुकी है. 80 किमी में 76 किमी तक की सड़क बना दी गयी है. भारत चीन सीमा से कैलाश तक की पैदल दूरी 5 किमी रह गयी है. जिसके बाद 93 किमी की बस से यात्रा और फिर 43 किमी परिक्रमा यात्रा बचती है.
(Inaugurataion of Link Road to Kailash Mansarovar Yatra)
2005 में इस सड़क के लिये 80.76 करोड़ रुपया आवंटित था जो 2018 तक 439.40 करोड़ हो गया. चीन की निगरानी में बनी यह सड़क भारत चीन बार्डर रोड द्वारा वित्त पोषित है. पिछले दो वर्षों में इस सड़क के पर सरकार की ओर से तेजी से काम किया गया है.
कुल मिलाकर इस सड़क के बनने से यह मार्ग यात्रा मार्ग भारतीयों के लिये कैलाश यात्रा के लिए सबसे सुगम मार्ग होगा. सड़क के बनने से इस क्षेत्र में मौजूद गाँवों में लोगों के लौटने की संभावना भी बड़ गयी है. इसके अलावा इस मार्ग पर पड़ने वाली व्यांस घाटी में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी तथा होमस्टे को प्रोत्साहन मिलेगा. उल्लेखनीय है कि घाटी के सुदूर नाबी गाँव में कैलाश मानसरोवर यात्रा में जाने वाले तीर्थालुओं को एक रात्री के लिए होमस्टे कराया जाता था.
सड़क बनने के बाद पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ेंगे. जरूरत है कि सरकार इस ओर अपना विशेष ध्यान दे. स्थानीय निवासी व हमारे साथी कुंदन भंडारी द्वारा भेजी इस सड़क निर्माण की कुछ तस्वीरें देखिये :
(Inaugurataion of Link Road to Kailash Mansarovar Yatra)
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