हिन्दू परिवारों में कोई उत्सव हो अथवा पारिवारिक रस्म, पिठ्या (रोली) के बिना रस्म पूरी नहीं होती. अमूमन लोग बाजार से लाये गये पिठ्या का ही उपयोग करते हैं. बाजार से खरीदे जाने वाले पिठ्या में या तो इंगूर अथवा अन्य कोई रंग मिश्रित कर इसे तैयार किया जाता है, जो गुणवत्ता में अच्छा नहीं होता. एक बार घर में तैयार किये गये पिठ्या का उपयोग करने वाला कभी बाजार के पिठ्या को पसन्द ही नहीं करता. घर में भी पिठ्या बड़ी आसानी से तैयार किया जा सकता है. (How to Make Uttarakhandi Pithyan at Home)
आइये ! जानते हैं, घर में पिठ्या कैसे तैयार करें? इसके लिए आवश्यकता होती है – कच्ची हल्दी की , नीबू के रस और सुहागा की. पहाड़ के गांवों के हर घर में ज्यादा नहीं तो कम से कम अपने उपयोग लायक हल्दी हर घर में बोई जाती है. ताजी खुदी हल्दी की गांठों को धोकर मिट्टी साफ कर लें तथा प्रत्येक गांठ को चार हिस्सों में खड़ा काटकर किसी बड़े बर्तन में पानी के साथ खूब पका लें. जब हल्दी पक जाय तो उसको पानी से निकालकर अलग कर लें. अब एक तौली (पतेली) लें, यदि आपके पास उपलब्ध हो तो तांबे की तौली (पतेली) इसके लिए ज्यादा मुफीद मानी जाती है. पकाई गयी हल्दी के टुकड़ों को तांबे की तौली (पतेली) डाल दें तथा ऊपर से बड़े नींबू का रस निचोड़ कर इतना रस भर दें कि हल्दी के सारे टुकड़े नींबू के रस में डूब जायें. यदि आपने 2 किग्रा हल्दी पकायी है तो 100 ग्राम सुहागा इसमें डालकर करछी की सहायता से नींबू रस में सुहागा अच्छी तरह घोल लें और इस तौली (पतेली) को किसी बर्तन से ढककर घर के अंधेरे कोने में रख दें. माना जाता है कि अंधेरे में रखने से लाल रंग ज्यादा सुर्ख होता है.
कुछ दिन बाद जब नींबू के रस को हल्दी अच्छी तरह सोख ले, तो बाहर निकालकर हल्दी के टुकडों को धूप में ( यदि छाया में सुखायें तो परिणाम ज्यादा बेहतर होगा) तब तक रोज सुखाते रहें, जब तक हल्दी की नमी पूरी तरह सूख न जाय और पीसने लायक हो जायें. सूखी हल्दी के टुकड़ो को चाहें तो सिलबट्टे में अथवा ग्राइण्डर में बारीक पीस लें. यदि आप ग्राइण्डर का इस्तेमाल करते हों तो ज्यादा बारीक पीसने के लिए सिलबट्टे का ही उपयोग करें, तो बेहतर होगा. क्योंकि जितनी बारीक आप पीसेंगे, उतना ही बढ़िया पिठ्या तैयार होगा. चाहें तो चलनी से छान लें तथा जो टुकड़े चलनी में रह जायें उनको दुबारा सिलबट्टे पर पीस लें. इस प्रकार जो पिठ्या आपका तैयार होगा , वह सुर्ख होने के साथ-साथ शुद्ध तथा त्वचा के लिए भी हानिकारक नहीं होगा.
पिठ शब्द मूलतः मराठी है, जो बारीक पिसे हुए पाउडर के लिए इस्तेमाल किया जाता है. कुमाऊॅ में अधिकांश शब्द मराठी के हैं , कारण कि कुमाऊॅ में कई लोगों के पूर्वज महाराष्ट्र से आकर यहाॅ बसे. कुमाऊॅ में भी पिठ शब्द खूब चलन में है. जैसे धान को कूटने से जो बारीक पाउडर भूसी के अलावा निकलता है, उसे भी पिठा बोला जाता है. संभवतः पिठ्या शब्द का उद्भव इसी पिठ शब्द से हुआ हो. (How to Make Uttarakhandi Pithyan at Home)
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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