Featured

अराजक होने से कैसे बचे कांवड़ यात्रा

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

कुमाऊं के विभिन्न डिपो से दिल्ली जाने-आने वाली बसों का कांवड़ यात्रा के आगामी 28 अगस्त को अंतिम सोमवार होने के चलते गत 24 अगस्त 2023 से सोमवार 28 अगस्त 2023 तक रूट बदल दिया गया है. अब बसें रामपुर-मुरादाबाद-गजरौला मार्ग से दिल्ली न जाकर रुद्रपुर-काशीपुर-धामपुर-मीरपुर-मवाना-मेरठ होते हुए दिल्ली जा रही हैं. इसके अलावा एक दूसरा मार्ग रुद्रपुर-रामपुर-शाहबाद-बिल्लारी-अनूपशहर-बुलंदशहर होते हुए दिल्ली जाने वाला और वहां से आने वाला भी है. कांवड़ यात्रा में बढ़ती भीड़ के कारण हमेशा इस तरह की दिक्कतें आती रहती हैं. जिससे आमजन को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
(Avoid Chaos in Kanwar Yatra)

इसी कारण से हर साल सावन के महीने में अधिकारिक तौर पर 10 दिन से लेकर 2 हफ्ते तक होने वाले कांवड़ यात्रा अब उत्तराखण्ड के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है. हर साल कांवड़ यात्रा में शामिल होने वाले लोगों की संख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है. हरिद्वार प्रशासन के अनुसार, कांवड़ यात्रा में इस साल लगभग 5 करोड़ लोग हरिद्वार पहुंचे. इस बार कांवड़ यात्रा 12 दिन चली. इन 12 दिनों में 5 करोड़ लोगों का हरिद्वार आना बहुत आश्चर्यचकित करता है. इस हिसाब से देखें तो इन 12 दिनों में औसतन 40 लाख कांवड़िए हर रोज हरिद्वार पहुंचे. इस से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि 40 लाख लोगों के हरिद्वार पहुंचने पर हरिद्वार और उसके आसपास लगभग 30-40 किलोमीटर के एरिया में कैसी स्थिति रही होगी?

इस यात्रा के दौरान आखिर के 1 हफ्तों में कांवड़ियों की भीड़ तीन-चार गुना तक बढ़ जाती है. कांवड़ियों की बेतहाशा भीड़ के कारण तब प्रशासन को आंगनबाड़ी से लेकर इंटर तक के सभी सरकारी व प्राइवेट स्कूलों को बंद करना पड़ता है. उन दिनों स्थानीय लोगों को एक तरह से अघोषित कर्फ्यू का सामना करना पड़ता है. वे अपने आवश्यक कार्यों के लिए भी घर से बाहर निकलने से पहले 10 बार सोचते हैं. एक तो स्थानीय स्तर पर आने-जाने के लिए सवारी गाड़ी मिलना तक मुश्किल हो जाता है. दूसरी ओर हर सड़क में कावड़ियों का हुजूम उमड़ा हुआ रहता है. जिससे उन्हें अपने गंतव्य तक जाने में मुश्किलों का सामना करना होता है. वह तय समय पर गंतव्य पर नहीं पहुंच पाते.
(Avoid Chaos in Kanwar Yatra)

हरिद्वार प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 2010 में सवा करोड़ कांवड़िए हरिद्वार पहुंचे थे. लगभग एक दशक बाद 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 3 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गया. गत वर्ष 2022 में हरिद्वार प्रशासन के अनुसार, तीन करोड़ 80 लाख कांवड़िए हरिद्वार पहुंचे. इस साल गत वर्ष की अपेक्षा एक करोड़ अधिक कांवड़िए हरिद्वार आए. इन आंकड़ों से पता चलता है कि कांवड़ यात्रा में हरिद्वार आने वाले कांवड़ियों की संख्या किस तेजी के साथ बढ़ रही है. ऐसा नहीं है कि कांवड़ यात्रा में हरिद्वार की हरकी पैड़ी से कांवड़ कंधे में रखकर गंगाजल लेकर जाने वाले लोग केवल पैदल ही चलते हैं.

अब पिछले लगभग एक दशक से डाक कांवड़ियों की संख्या पैदल वालों की अपेक्षा कई गुना बढ़ गई है. डाक कांवड़ वह होती है, जो गाड़ियों में चलती है. इसमें कांवड़ में गंगाजल रखकर नहीं ले जाया जाता. यानी कि कांवड़िए दोपहिया और चौपहिया गाड़ियों में बैठकर हरिद्वार आते हैं और गंगाजल अपने गंतव्य तक ले जाते हैं. एक दशक पहले डाक कांवड़ियों की संख्या बहुत कम होती थी. तब कांवड़ यात्रा अराजक व बेलगाम नहीं दिखाई देती थी. जब से डाक कांवड़ियों के संख्या में हर साल इजाफा होता जा रहा है, तब से कांवड़ यात्रा श्रद्धा का कम बल्कि मौज-मस्ती, हुड़दंग, गुंडागर्दी, अराजकता और मारपीट करने का प्रतीक अधिक बनता जा रहा है.
(Avoid Chaos in Kanwar Yatra)

ऐसा लगता है जैसे कांवड़ यात्रा के नाम पर अराजक युवाओं का एक समूह सड़क पर हुड़दंग मचाते, गाड़ियों में बहुत जोर-जोर से डीजे बजाते हुए सड़क दौड़ रहा हो. उन लोगों को किसी बात की कोई चिंता नहीं होती. उनका मकसद केवल कांवड़ यात्रा के नाम पर हुड़दंग मचाना और अराजकता फैलाना होता है और कुछ नहीं. इससे हर साल मारपीट और गुंडागर्दी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. इस साल भी इस तरह की कई घटनाएं हुई. जिसने एक बार फिर से आमजन को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या कावड़ यात्रा को इसी स्वरूप में आगे के लिए सरकार की ओर से मान्यता दिया जाना सही होगा? या इसके स्वरूप पर किसी ना किसी स्तर पर लगाम लगाई जानी चाहिए. विशेष तौर पर डाक कांवड़ियों की बेतहाशा बेलगाम बढ़ती भीड़ को देखकर.

अराजक कांवड़ियों के कारण गत 10 जुलाई 2023 को हरिद्वार सांप्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ते-चढ़ते बचा. हरिद्वार के मंगलौर क्षेत्र में प्रताप सिंह नामक व्यक्ति की कार कांवड़ियों की गाड़ी से टकरा गई. टक्कर भी बहुत मामूली सी थी. जिसमें किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. बस इसी बात को लेकर कार सवार व्यक्ति से कांवड़ियों ने उलझना शुरू कर दिया. कार सवार व्यक्ति के बराबर की सीट पर बुर्का पहने एक महिला बैठी हुई थी. बस फिर क्या था! कांवड़ियों ने इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करते हुए कार में जमकर तोड़फोड़ ही नहीं की, बल्कि प्रताप सिंह की पिटाई तक दी. जब कांवड़िए कार चला रहे व्यक्ति से उलझ रहे थे तो उसी दौरान वह बुर्का धारी महिला गायब हो गई. पुलिस ने समय पर वहां पहुंचकर स्थिति को संभाल लिया अन्यथा बुर्का धारी महिला के कारण हरिद्वार का मंगलौर क्षेत्र सांप्रदायिक दंगे की आग में झुलस गया था. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि जिसकी पिटाई हुई वह उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का सक्रिय, निष्ठावान नेता निकला. जिसके बाद इस तरह की घटनाओं में अचानक से सक्रिय हो जाने वाले सांप्रदायिक तत्वों को चुप्पी साध लेनी पड़ी.

एक अन्य घटना में नरेंद्र नगर के पूर्व विधायक ओमगोपाल रावत की मोटरसाइकिल में मोटरसाइकिल सवार कांवड़ियों के हुजूम ने टक्कर मार दी. वह किसी परिचित की मौत पर अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए मुनि की रेती के पूर्णानंद घाट अपने साथी के साथ जा रहे थे और मोटरसाइकिल में पीछे बैठे हुए थे. पूर्व विधायक के घटना में घायल होते ही पुलिस अचानक से सक्रिय हुई और तुरंत घायल पूर्व विधायक रावत को ऋषिकेश के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. जहां से वह देहरादून चले गए और जांच में पता चला कि उनकी रीढ़ की हड्डी में क्रैक आया है. ऐसा नहीं है कि अराजक कांवड़ियों की भीड़ स्थानीय लोगों को ही नुकसान पहुंचा रही हो. तेज रफ्तार से गाड़ियां चलाने के कारण हर साल रोड एक्सीडेंट में 2 दर्जन से अधिक कांवड़िए मारे जाते हैं और लगभग इतने ही गंगा में लापरवाही से नहाने पर डूब जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि वह लोग गंगा में नहाने के लिए पुलिस-प्रशासन द्वारा जारी की गई चेतावनी को नजरअंदाज करते हैं. पर किसी को भी इस पर नियंत्रण लगाने का ख्याल नहीं आता.

इस तरह की अराजकता के अलावा कांवड़ियों की बेतहाशा बढ़ती भीड़ अब हरिद्वार, ऋषिकेश और दूसरे स्थानों में गंदगी का ढेर भी लगाने लगी है. जिसे निस्तारित करना कांवड़ यात्रा के बाद स्थानीय प्रशासन के लिए सिरदर्द साबित होता है. केवल हरिद्वार में ही 12 दिन की कावड़ यात्रा के दौरान लगभग 30 हजार मीट्रिक टन कूड़ा पैदा हुआ. हरिद्वार नगर निगम के अनुसार, शहर में हर रोज औसतन 210 से 230 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. जो स्नान पर्वों पर 250 से 280 मीट्रिक टन तक हो जाता है.
(Avoid Chaos in Kanwar Yatra)

इस बार 4 जुलाई से शुरू हुई श्रावण कांवड़ यात्रा में हरकी पैड़ी क्षेत्र के गंगा घाटों से लेकर पार्किंग, हाईवे, संपर्क मार्गों में गंदगी और प्लास्टिक की पन्नी फैली हुई थी. जगह-जगह जलभराव से कूड़े के ढेर लग गए. हरिद्वार प्रशासन का कहना है कि कांवड़ यात्रा के दौरान 600 अतिरिक्त सफाई कर्मी लगाए गए थे, लेकिन कांवड़ियों की बढ़ती भीड़ के कारण कूड़ा वाहन शहर में इधर से उधर नहीं आ जा सके. जिसकी वजह से हरिद्वार क्षेत्र में जगह-जगह कूड़े के ढेर लग गए.

जब केवल हरिद्वार में ही 30 हजार मीट्रिक टन कूड़ा 12 दिनों में एकत्र हो गया तो ऋषिकेश, नीलकण्ठ, स्वर्गाश्रम, मुनिकी रेती, गंगोत्तरी, देहरादून, मसूरी और दूसरे स्थानों पर जहां-जहां कांवड़िए पूरे दलबल के साथ दौड़ते और घूमते हैं, वहां कितना कूड़ा एकत्र हुआ होगा? इससे यह तो पता चलता ही है कि कांवड़ यात्रा अराजकता के साथ-साथ कूड़े का ढेर भी इन जगहों में फैलाते हुए चलती है.

कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले प्रशासन इसके लिए कई तरह के नियम लागू करने की घोषणा करता है. जिनमें बहुत जोर से डीजे न बजाने, हर कांवड़िए को पहचान पत्र साथ रखने, पुलिस द्वारा उनकी नियमित जांच करने, चौपहिया वाहनों में बनाए जाने वाले कांवड़ की ऊंचाई एक निर्धारित सीमा से अधिक ऊंचा न होने जैसे कई नियम बनाए जाते हैं और दावा किया जाता है कि इनका सख्ती से पालन किया जाएगा. पर जैसे-जैसे कांवड़ यात्रा में डाक कांवड़ियों  की संख्या तेजी के साथ बढ़ने लगती है तो पुलिस-प्रशासन एक तरह से मूकदर्शक बनकर खड़ा हो जाता है. और उसका पूरा खामियाजा स्थानीय जनता को भोगना पड़ता है.
(Avoid Chaos in Kanwar Yatra)

जगमोहन रौतेला

जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.

यह लेख भी पढ़ें : आज बिरुड़ पंचमी है

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

20 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago