कुमाऊं में होली की चार विधाएं हैं – खड़ी होली, बैठकी होली, महिलाओं के होली, ठेठर और स्वांग. खड़ी होली का अभ्यास आमतौर पर पटांगण (गांव के मुखिया के आंगन) में होता है. यह होली अर्ध-शास्त्रीय परंपरा में गाई जाती है जहां मुख्य होल्यार होली के मुखड़े को गाते हैं और बाकी होल्यार उसके चारों ओर एक बड़े घेरे में उस मुखड़े को दोहराते हैं. ढोल नगाड़े नरसिंग उसमें संगीत देते हैं. घेरे में कदमों को मिलाकर नृत्य भी चलता रहता है कुल मिलाकर यह एक अलग और स्थानीय शैली है. Holi traditions in Kumaon
जिसकी लय अलग-अलग घाटियों में अपनी अलग विशेषता और विभिन्नता लिए है. खड़ी होली ही सही मायनों में गांव की संस्कृति की प्रतीक है. यह आंवला एकादशी के दिन प्रधान के आंगन में अथवा मंदिर में चीर बंधन के साथ प्रारंभ होती है. द्वादशी और त्रयोदशी को यह होली अपने गांव के निशाण अर्थात विजय ध्वज ढोल नगाड़े और नरसिंग जैसे वाद्य यंत्रों के साथ गांव के हर मवास के आंगन में होली का गीत गाने पहुंचकर शुभ आशीष देती हैं. उस घर का स्वामी अपनी श्रद्धा और हैसियत के अनुसार होली में सभी गांव वालों का गुड़, आलू तथा अन्य मिष्ठान के साथ स्वागत करता है.
चतुर्दशी के दिन क्षेत्र के मंदिरो में होली पहुंचती है, खेली जाती है. चतुर्दशी और पूर्णिमा के संधिकाल जबकि मैदानी क्षेत्र में होलिका का दहन किया जाता है यहां कुमाऊं अंचल के गांव में, गांव के सार्वजनिक स्थान में चीर दहन होता है. अगले दिन छलड़ी यानी गिले रंगो और पानी की होली के साथ होली संपन्न होती है.
हारमोनियम और तबला के साथ शास्त्रीय संगीत की विधा में बैठकर होली गायन की परंपरा अद्भुत है. स्थानीय परंपराओं में यहां हर शहर और गांव में दो-चार अद्भुत होल्यार हुए हैं. जो न केवल होली के गीत बनाते हैं बल्कि उसकी डायरी तैयार रखते हैं और इस शानदार परंपरा को रियाज के जरिए अगली पीढ़ी तक भी पहुंचाते हैं.
महिलाओं की होली बसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ होकर रंग के दूसरे दिन टीके तक प्रचलित रहती है यह आमतौर पर बैठकर ही होती है. ढोलक और मजीरा इसके प्रमुख वाद्य यंत्र होते हैं. महिलाओं की होली शास्त्रीय, स्थानीय और फिल्मी गानों को समेट कर उनके फ्यूजन से लगातार नया स्वरूप प्राप्त करती रहती है. 25- 30 वर्ष पूर्व जब समाज में होली के प्रति पुरुषों का आकर्षण कम हो रहा था और तमाम मैदानी क्षेत्र की बुराइयां पर्वतीय होली में शामिल हो रही थी. तब महिलाओं ने इस सांस्कृतिक त्यौहार को न केवल बचाया बल्कि आगे भी बढ़ाया. Holi traditions in Kumaon
स्वांग और ठेठर होली में मनोरंजन की सहायक विधा है, इसके बगैर होली अधूरी है. यह विधा खासतौर पर महिलाओं की बैठकी होली में ज्यादा प्रचलित है. जिसमें समाज के अलग-अलग किरदारों और उनके संदेश को अपनी जोकरनुमा पोशाक और प्रभावशाली व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. संगीत के मध्य विराम के समय यह स्वांग और ठेठर होली को अलग ऊंचाई प्रदान करता है. कालांतर में होली के ठेठर और स्वांग की विधा ने कुछ बड़े कलाकारों को भी जन्म दिया.
यूं तो कुमाऊं अंचल के गांव-गांव में होली का त्यौहार बढ़-चढ़कर परम्परागत रूप से ही मनाया जाता है. लेकिन मुख्य रूप से अल्मोड़ा, द्वाराहाट, बागेश्वर, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, पाटी, चंपावत, नैनीताल कुमाऊं की संस्कृति के केंद्र रहे हैं. यहां के सामाजिक ताने-बाने में वह तत्व मौजूद हैं जो संस्कृति और उसके महत्व को समझते हैं. वह जानता है कि संस्कृति ही समाज को स्थाई रूप से समृद्ध करती है. इन कस्बों में न केवल होली का रंग बल्कि रामलीला, दिवाली जैसे त्यौहार भी बड़ी संजीदगी और पारंपरिक रूप से मनाए जाते हैं और यह कस्बे हमारी संस्कृति के मुख्य केंद्र है. Holi traditions in Kumaon
-प्रमोद साह
प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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