बीते रविवार से पूरे कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो चुकी है. सुनने में बड़ा अटपटा है क्योंकि देश और दुनिया के लिये अभी होली आने में पूरे तीन महीने बाकि हैं. लेकिन बीते हुए कल से या यानि पौष माह के पहले रविवार से कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो चुकी है. Holi Begin from Yesterday in Kumaon
सायंकाल में होने वाली यह होली अब निरंतर छलड़ी तक चलेगी. हर शाम को पहले दिन से ही गुड़ की भेली तोड़कर सभी उपस्थित कलाकारों व श्रोताओं के बीच बांटी जाती है.
अब से छलड़ी के बीच में कभी-कभी या विशेष अवसरों पर जैसे बसन्त या शिवरात्रि को या फिर रंगभरी एकादशी, विशेष बैठकों का आयोजन किया जाता है जो सुबह तक चलती है.
पौष माह के प्रथम रविवार से बसंत तक निर्वाण और भक्ति प्रधान होलियों का ही गायन किया जाता है. बसंत पंचमी से शिवरात्रि तक रंग भरी हांलियां गाई जाती हैं.
शिवरात्रि से छलड़ी तक श्रृंगार रस से ओत-प्रोत रंगीन गीतों का ही बोलबाला रहता है. टीके के दिन होली के विदाई-गीतों का गायन किया जाता है और भजनों के माध्यम से भी होली को विदाई दी जाती है.
अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर, हल्द्वानी समेत पूरे कुमाऊं में कल से होली का आयोजन शुरू हो चुका है. इस सांस्कृतिक उत्सव का एक अन्य पहलू यह है कि वर्तमान में कुमाऊं में बैठकी होली की यह परम्परा अभी कुछ संस्थानों, विशिष्ट व्यक्तियों और विशेष गावों तक सीमित रह चुकी है.
वर्तमान में आमजन बैठकी होली से काफ़ी दूर है. भागदौड़ से भरे इस जीवन में लोगों के पास इतना समय कहां कि तीन महीना साथ बैठ सकें. इसके बावजूद जिन संस्थाओं और व्यक्तियों ने इसे जिन्दा रखने का ज़िम्मा उठाया है वह काबिले तारीफ़ है.
आज इनकी ही बदौलत हम तीन महीने पहले से ही कुमाऊं की संगीतमय होली सुन सकते हैं. अपनी विरासत को संजोकर रखने के लिए इन संस्थाओं का शुक्रगुजार होना चाहिये.
-काफल ट्री डेस्क
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