इस यात्रा में हमें सेना का निरंकुश शासन भी देखने को मिला. एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी. इतने में कुछ सैनिकों ने डिब्बे में प्रवेश किया तथा यात्रियों को डिब्बा खाली करने का हुक्म दिया. डिब्बे में भगदड़ मच गयी. कुछ तो डर कर शीघ्र उतर गये और जिन्होंने प्रतिरोघ किया उनको सैनिकों ने अपनी-अपनी कमर पेटियां खोलकर पीटा और सामान सहित बाहर फेंक दिया. पर हमारे साथ सभी सैनिकों का व्यवहार शालीन रहा. अब जब दोबारा ट्रेन चली तो डिब्बे का वातावरण कुछ और ही था. सैनिक गा रहे थे, नाच रहे थे तथा हमें हर तरह से खुश करने का प्रयास कर रहे थे. सफर आराम से गुजर गया. वरना ट्रेन तो लगभग सात घण्टे देरी से लक्सर पहुंची थी.
लक्सर शहर पहुंच कर, यहां हमने किराये पर साइकिल लेकर शहर से दूर-दूर तक घुमकर ऐतिहासिक स्थानों का अवलोकन किया तथा मिश्र की उस महान प्राचीन सभ्यता के दर्शन किय, जिसे संसार में नील नदी की सभ्यता के नाम से जाना जाता है. नील नदी में नौका विहार एवं तैरने का आनन्द लेकर हम लोग एलेक्जेलेन्ड्रिया लौट गये.
एलेक्जेलेन्ड्रिया मिश्र का एक महत्वपूर्ण शहर है. यहा एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर एवं आधुनिक बन्दरगाह है. भूमध्य सागर के किनारे बसे होने के कारण यहां की जलवायु बहुत अच्छी है. पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव यहां पर मिश्र के अन्य शहरों की अपेक्षाकृत बहुत अधिक है. समुद्र के तट पर आधुनिक होटल एवं रेस्ट्रां हैं जिनमें सर्विस करने वालों में अधिकांश लड़कियां हैं, जो कि मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण कुछ अजीब सा लगता है. बन्दरगाह होने के कारण इस शहर में भी एक बन्दरगाह की सभी अच्छाइयां एवं बुराइयां देखने को मिलती है.
एलेक्जेलेन्ड्रिया में हम लोग यूथ हॉस्टल में ठहरे हुए थे. यहीं पर एक मिश्री लड़कियों की पार्टी भी घूमने आयी हुई थी. जिनके सम्पर्क में आकर हमने महसूस किया कि मिश्री लड़कियां अन्य मुस्लिम राष्ट्रों से अधिक स्वछन्द विचारों की है. हमारे देश की लड़कियों की तरह उनमें सामाजिक भय नहीं दिखाई दिया. ऐसी परिस्थिति में जब तक कोई गंभीर समस्या जन्म लेती, हम अफ्रिका महाद्वीप को प्रणाम कर मिश्री जहाज पर बैठ गये.
सांय पांच बजे जहाज का भोंपू बजा और जहाज धीरे-धीरे जमीन से दूर होता चला जा रहा था. एलेक्जेलेन्ड्रिया शहर धीरे-धीरे नजरों से ओझल हो गया. अब चारों और पानी ही पानी था. समुद्र भयानक रूप से डरावना सा दिखाई दे रहा था. अधिकांश यात्रियों को चक्कर आने लगा, कोई उल्टी करता और, कोई सर पकड़कर बैठे दिखाई दे रहे थे. कुछ ऐसे भी लोग थे कि बाररूम में बैठकर शराब पी रहे थे, तथा कुछ ताश खेलने में मस्त दिखाई दे रहे थे. तबियत इतनी खराब थी कि रात को खाना भी नहीं खाया.
जहाज में बिजली जल चुकी थी, पर चारों और अन्धकार दिखाई दे रहा था. डेक के प्रकाश का कोई प्रबन्ध नहीं था, तेज हवाओं एवं जहाज की मशीनों की आवाज से वातावरण कुछ डरावना सा लग रहा था, पर फिर भी कुछ योरोपियन युवक-युवतियां एक स्लीपिंग बैग में निश्चिन्त पड़े हुए दिखाई दे रहे थे. शायद अफ्रीका के जंगलों से यहां का वातावरण उन्हें कम डरावना लग रहा था. ठंड से बचने का उनका यह तरीका भी कम रोचक नहीं था. पर हमारे लिए यह संभव नहीं था अतः जहाज के अन्दर ही एक आरामदायक जगह देखकर हम वहां सो गये. रात को नींद अच्छी आयी. सुबह हम तीनों अपने को स्वस्थ अनुभव कर रहे थे.
सुबह आकाश में हल्के-हल्के बादल थे. जहाज छोटे-छोटे टापुओं के बीच से होकर गुजर रहा था. तीसरे दिन हम लोग क्रीट आयर लैन्ड के बगल से गुजर रहे थे, याद आ गयी बचपन की वह कहानी-क्रीट आयरलैण्ड में एक आदमी रहता था, जिसे आकाश में उड़ने का बहुत शौक था. एक दिन वह उड़ने के लिए एक चोटी पर चढ़ गया तथा पक्षियों की तरह अपने पंख लगाकर चोटी से कूद गया. बेचारा उड़ नहीं पाया और मौत का शिकार हो गया. मैं सोचता हूं कि इतने सुन्दर टापू से नीले आकाश एवं नीले समुद्र को देखकर नीले गगन में उड़ने की इच्छा होना स्वाभाविक है.
नेपल्स का ‘जीसस कल्ट’
समुद्र यात्रा के रोमांचक क्षणों में सांयकाल जहाज का माहौल बहुत रंगीन हो जाता था. सभी यात्री अपनी रंग बिरंगी पोशाकें पहन कर जहाज में फैशन परेड सा वातावरण पैदा कर देते थे. मिश्री उच्च घरानों के नवयुवक एवं नवयुवतियां एक दूसरे को आकर्षित करते दिखाई देते थे. वैसे भी दो तीन दिन से साथ सफर करने के कारण जहाज के यात्रियों में मित्रता हो जाना स्वाभाविक है.
एक दिन जहाज में सुबह-सुबह समाचार था कि आज हम लोग दिन के 1 बजे करीब यूनान के बन्दरगाह पिरेस पहुंच जायेंगे. सभी यात्री बहुत खुश थे कि यूनान देखने को मिलेगा. पर हम तीनों को चिन्ता सताने लगी कि अगर यूनान का वीसा नहीं मिला तो क्या होगा. सोचते-सोचते वह समय भी आज गया कि यूनान की भूमि दिखाई देने लगी.
इस बात को नहीं झुठलाया जा सकता है कि योरोप सचमुच सुन्दर है. जीवन स्तर भी योरोप के लोगों का काफी ऊॅचा है, जिसका कारण उनकी प्रगति है. मैं सोचता हूं कि उनकी प्रगति के मूल कारण हैं उनकी शिक्षा एवं संस्कार. हमें भी प्रगति के लिए अपनी सामाजिक मान्यताओं को परिवर्तित करना होगा. हम जानते हैं कि दुनिया में सबसे अधिक आस्तिक हमारे देश में हैं, फिर भी हमारा देश विश्व में सबसे अधिक पिछड़े देशों में से है. लगता है, जैसे हम मानसिक रूप से विकलांग हो गये हैं तथा आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को समझने में असमर्थ है.
पिरेस में कस्टम अधिकारियों ने हजार मिन्नत करने पर भी यूनान का वीसा नहीं दिया, सिर्फ चार घण्टे पिरेस शहर घूमने की आज्ञा मिली. मन बहुत कर रहा था कि एथेन्स देखते, जो कि यहां से सौ किमी दूर था. पर भारतीय पासपोर्ट कभी-कभी अभिशाप हो जाता है. विदेशों में हमने यह धारणा अधिकांशतः देखी कि भारतीयों को नौकरी की तलाश में घूमते हुए यात्री से अधिक कुछ नहीं समझा जाता है. इस कारण आज के उन्नत राष्ट्र भारतीयों को वीसा देने में थोड़ा परेशान अवश्य करते हैं.
टूटे हुए दिल लेकर वापस हम तीनों फिर से अपने उसी जहाज में आ गये. सांयकाल हमारा जहाज यूनान से इटली के लिए चल पड़ा. यह जहाज एक ऐसी नहर से गुजर रहा था, जिसके दोनों ओर से यूनानी लोग हमें देखकर हाथ हिला रहे थे. एक स्थान पर तो जहाज के ऊपर से पुल भी दिखाई दिया. पुल पर भी भीड़ थी. चारों और ऐसा रोमांचक वातावरण था, जिस मैं आज भी नहीं भूल पाता हूं.
जहाज एक छोटे से शहर की तरह होता है, जहां यात्रियों के मनोरंजन का भी ख्याल रखा जाता है. इसमें सिनेमाघर, रेस्ट्रा एवं नाइट क्लब होता है. हमारे इस जहाज में सबसे अधिक आकर्षण का केन्द्र ‘नाइट क्लब’ का रंगीन वातावरण रहता था. एक दिन जब हम नाइट क्लब के अन्दर पहुंचे, उस समय वहां बहुत रौनक थी. संगीता की मधुर ध्वनि के साथ मिश्री दुबली-पतली सुन्दर लड़कियां कमर हिला-हिलाकर नाच रही थी कुछ हमारे मिश्री मित्रों ने हमसे फिल्म ‘संगम’ का एक गीत तेरे मन की गंगा मेरे मन की जमुना का अनुरोध किया, हम अस्वीकार न कर सके. रात के करीब 2 बज चुके थे, पर क्लब में फिर भी रौनक थी और किसी की आंखांे में नींद का नामोनिशान नहीं था. हम तीनों सोने चले गये.
एक और दिन जहाज में बिताने के बाद, हम लोग इटली के शहर नेपल्स पहुंचे. हम तीनों अपने सहयात्रियों से विदाई लेकर नेपल्स की सड़कों पर अपने-अपने पिट्ठू लेकर निकल पड़े. हल्की-हल्की वर्षा हो रही थी और सड़कों पर दूध से धुले हुए, फूल से खिले हुए सुन्दर स्वस्थ बच्चे चहल कदमी करते दिखाई दे रहे थे. हर कोई हंसता हुआ दिखाई दे रहा था. सब की आंखें प्रेम की उस भाषा को बोल रही थी, जिसको समझने के लिए सोचने की जरूरत नहीं होती है. मै सोचने लगा-सचमुच कितना सुन्दर वातावरण है योरोप का, फिर भी क्या कारण है कि यहां कुछ लोग जीवन में नैराश्य अनुभव करते हैं. शायद योरोप की असीम भोगवादी विचारधारा ही इसका मूल कारण है.
हमारे लिए तो एक नया और अजीब सा वातावरण था. लड़के-लड़कियों को इतनी स्वतन्त्रता से बेफिक्र कंधे में हाथ डालकर घूमते हुए देखकर अपने देश की याद आ गयी, जहां के समाज में इसे उच्छृंखलता माना जाता है. क्या भला है क्या बुरा है, हमें इससे क्या लेना था, क्योंकि हम तो यात्री थे, पर हमको यह सब कुछ बड़ा स्वस्थ लग रहा था.
सभी योरोपीय शहरों का अपना-अपना रूप है, अपनी-अपनी विशिष्टतायें. मन पर भी सभी शहरों की अलग-अलग तरह की छापें पड़ती हैं. जीवन और उसकी मूल समस्याओं के प्रति पश्चिमी देशों के लोगों के दृष्टिकोण, उनकी सहज प्रतिक्रियाओं और उनके तौर तरीके में काफी हद तक समानता है. लगता है कि उनके संस्कारों की बुनियाद एक ही है.
घूमते हुए हम लोग नेपल्स के रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे. एक सुन्दर व साफ रेलवे स्टेशन देखने को मिला. सामान एक कोने पर रखकर स्टेशन की रौनक देख रहे थे, कि इसी बीच लड़के-लड़कियों के समूह ने घेर लिया. उनका हमसे कहना था कि तुम तीनों को जीसस बुला रहे हैं. पता लगा कि हमारे देश के ‘हरे राम, हरे कृष्ण’ कल्ट की तरह पश्चिम में एक ‘जीसस क्लट’ भी है. ये लोग हमें अपने कैम्प में ले गये एवं भोजन इत्यादि का हमारा प्रबन्ध किया. कुछ अजीब सा लग रहा था, क्योंकि हमें जरूरत से अधिक महत्व दिया जा रहा था. सांयकाल को हमें प्रवचन हेतु आमन्त्रित किया गया जो कि अंग्रेजी एवं इतावली भाषा में हुआ. प्रवचन का सार यह था जीवन में मानसिक शक्ति के लिए जीसस के पास आ जाओ.
कई लड़के-लड़कियों ने अपने-अपने जीवन के अनुभव सुनाये. एक लगभग बीस वर्षीय लड़की ने कहा कि ‘‘मैं जीवन में कुछ खालीपन अनुभव करती थी और कुछ पाने के लिए देश-विदेश में घूमती रही. मैं जीन्स पहनती थी, पीठ पर पिट्ठू होता था एवं वह सब कुछ करती थी जो आज के हिप्पी समाज में हेाता है. छोटी ही उम्र में मां बन गयी थी. पर फिर भी शान्ति नहीं मिल पायी. आज जब मैं जीसस के चरणों में हूं तो मुझे असीम शान्ति मिलती है’’. इस कल्ट के सदस्य विभिन्न पश्चिमी राष्ट्रों के युवा लोग थे, जो पश्चिम के टूटते हुए परिवारों की कहानियां कह रहे थे.
हम तीनों रात को कैम्प में ही रहे और सुबह होते हुए, उस सड़क पर पहुंच गये जो रोम को जाती थी. योरोप में ‘हिच हाइकर्स’ हाथ में एक बोर्ड लेकर हाइवे पर खड़े हो जाते हैं. बोर्ड पर उस शहर का नाम लिखा होता है जहां के लिए लिफ्ट मांगनी होती है. हमारे जैसे दर्जनों ‘हिच हाइकर्स’ हाइवे पर खड़े थे. सांयकाल तक हमें रोम के लिए कोई ऐसी लिफ्ट नहीं मिल पायी, जो हम तीनों को साथ ले जाती. रोम शहर में हम अकेले-अकेले पहुंचने का साहस नहीं कर पाये. अब तो भूख से बुरा हाल होता जा रहा था. वर्षा भी होने लगी, खाने को कुछ भी नहीं था. हां, पीने को पिट्ठू में स्कॉच जरूर थी. अतः पास के एक घर से एक डबलरोटी मांग लाये. उसी को खाकर, पास की एक खड़े ट्रक के नीचे सो गये. थकान होने के कारण नींद अच्छी आयी. सुबह तब उठे जब एक भयानक कुत्ता हमारे स्लीपिंग बैग खीचने लगा और इतना भौंकने लगा कि जैसे उसने हमसे विचित्र कोई चीज अपने जीवन में कभी देखा ही न हो.
सुबह पांच किमी पैदल चलकर नेपल्स पहुंचे. शायद हम नेपल्स के गरीब मुहल्ले में पहूंच गये थे. बच्चे हमें घेर कर घूर-घूर कर देख रहे थे. औरतें हमें देखकर इण्डियाना! इण्डियाना! कह रही थी. इस इतावली महिला ने हमें लाकर कुछ खाने की सामग्री दी, तथा दूसरी एक महिला ने कुछ फल दिये. उनकी आंखों में हमारे लिए जो भाव थे, ऐसे ही भाव हमें यात्रा करने की प्ररेणा देते थे. हम तीनों ने सीधे रेलवे स्टेशन पहुंचकर रोम का टिकट लिया और डिब्बे में बैठ गये. सामने की सीट पर दो स्वीडिस लड़कियां बैठी थीं. वे हमसे पूछने लगीं कि कहां के रहने वाले हो.
रोम की ऐतिहासिक आधुनिकता
जब हम लोगों ने बताया कि हम भारतीय हैं, न जाने उनमें से एक को क्यों इतनी खुशी हुई कि वह हमसे यकायक सिमट गयी. हम तीनों का योरोप की लड़कियों की सरलता से पहला परिचय था.
नेपल्स से रोम पहुंचने की खुशी में हमारा रोम-रोम पुल्कित हो रहा था, रोम के प्रति बहुत कुछ सुना था, आज वहीं पहॅुंचना था.
रोम एक दिन में नहीं बना, विश्व की सारी सडकें रोम पहुँचती हैं. रोम वैसा ही करो जैसा रोमन करते हैं. आदि-आदि बातें मस्तिष्क में आ रही थी.
रोम इसाई धर्म के कैथोलिक मत का तीर्थ है जो टाइबर नदी के किनारे बसा हुआ है. सारा पाश्चात्य जगत इसाई है. अतः हम सोचते थे कि यहां का वातावरण भी उतना धार्मिक होगा, जिला इलाहाबाद और काशी का है. पर रोम पहुंचकर वातावरण एकदम आधुनिक लगा. रोम की पहली बस्ती ईसा पूर्व आठवीं सदी में बसी थी. आज तक पता नहीं हो पाया कि इस मायापुरी के आदिवासी कौन थे. ऐसा कहा जाता है कि पहले कुछ लोग एशिया माइनर से आकर यहां बसे थे.
रोम के खण्डहरों को देखकर हमारा ध्यान यकायक अतीत की ओर चला गया, जो कि राजवंशों और जनतंत्रों के उत्थान-पतन, रोमन एम्पायर के उगने और डूबने की कहानियां कहते प्रतीत होते हैं.
योरोप में व्याप्त मुद्रा प्रसार से हमारा परिचय इसी मायापुरी रोम में हुआ. योरोप में पर्यटन के लिए सुख-सुविधाएं आवश्य हैं, पर हम जैसे पर्यटकों के लिए कठिन समय है, क्योंकि भारतीय स्तर पर सब कुछ काफी अधिक महंगा है. एक व्यक्ति के लिए एक रात यूथ हास्टल का किराया 16 रुपये देना पड़ा. एक प्लेट इटालियन पिजा या मैक्रानी का मूल्य लगभग 12 रुपये एक कप चाय 5-6 रुपये से कम नहीं. ऐसी संकट कालीन परिस्थिति में हमने खाना शुरू किया चीज, ब्रैड और कच्चे टमाटर कभी-कभी स्वाद बदलने के लिए एक हरी मिर्च और वीनू (इटालियन वाइन) भी साथ लेते थे. ऐसे अवसर पर हमारा स्टोव बहुत काम आया क्योंकि उससे हमें इस महंगाई में भी काली चाय मिलती रही. रातें हम दूसरे ही दिन से सड़कों में बिताने लगे. रोम में एम्पायर के पतन का कारण चाहे कुछ भी रहा हो, हमारे हौसले पस्त होने का कारण तो योरोप का मुद्रा प्रसार रहा.
रोम के खंडहरों में रोम के प्रसिद्ध कोलोसियर (एम्फी थियेटर) को देखा. कैसा होगा यह सम्राट नीरो जिसने ईसा मतावलम्बियों को एक जगह खड़ाकर उन पर भूखे शेर छोड़े थे. आश्चर्य हुआ कि क्या वही जूलियस सीजर के सुरम्य देश की संस्कृति थी, जिसने विश्व को कानून से अवगत कराया.
रोम के खंडहरों और प्राचीन भवनों को देखकर बीती शताब्दियों का परिचय मिल जाता है और इन्हीं खंडहरों के आसपास आधुनिक रोम में कल के लिए इतिहास का निर्माण हो रहा है, विचित्र है यह नगरी जहां अपने-अपने समय की छाप अंकित होती जा रही है.
रोम शहर देखने के लिए हर दिन हजारों पर्यटक आते हैं वैसे भी योरोप में छुट्टियों के दिन में आसपास के शहरों या देशों की यात्रा पर निकल जाना एक सामान्य बात है. छृट्टियां हुई नहीं कि पकड़ा अपनी गर्लफ्रेंड का हाथ और चल दिये अपनी कार या मिनीबस (हाउस कार) लेकर, यह प्रवृत्ति योरोप के लगभग सभी देशों में है. पर्यटन के प्रति इनके रूझान का प्रमाण यूथ हास्टल में मिल जाता है, जो कि लगभग हर मौसम में भरे रहते हैं. रोम में हमने देखा कि कई युवक-युवतियों को यूथ हास्टल में रहने को जगह नहीं मिल पायी, और रात को बाहर सोना पड़ा.
(जारी)
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कभी 'नैनीताल समाचार' में इन यात्रा संस्मरणों को बड़े मन से पढ़ा करता था। वे दिन याद हो आए। यों भी, विजय मोहन खाती तो हमारे नैनीताल के दिनों के साथी ही हुए। ये संस्मरण पढ़ कर मन में हसरत जागती थी कि काश कभी मैं भी ऐसी यात्रा कर सकता! लेकिन, कई बार जीवन यात्रा ही इतनी कठिन होती है कि दूसरी राह पकड़ नहीं पाते। काफलट्री पर ये शानदार संस्मरण पढ़ कर इन साथियों के साथ दुनिया की सैर कर ले रहा हूं। बहुत रोचक हैं ये।