उत्तराखंड में पत्रकारिता की शुरूआत
-विनीता यशस्वी
पहले अखबार
उत्तराखंड के कुमाऊनी व गढ़वाली दोनों इलाकों में पत्रकारिता का इतिहास बेहद प्राचीन और रोचक रहा है. कहा जा सकता है कि 1842 में जॉन मैकिनन ने मसूरी से ‘द हिल्स’ निकाला और इसे ही उत्तराखंड से निकलने वाला अखबार माना जा सकता है. यह अखबार शुरू हुआ और चला भी पर सन् 1850 के आने-आने तक कुछ समय के लिये बंद हो गया. 1860 में सह नये कलेवर और नये साइज के साथ फिर शुरू हुआ पर 1865 में बंद ही हो गया.
‘द हिल्स’ अखबार तो बंद हो गया पर इसने दूसरे अखबारों को जन्म दिया और इसी की तर्ज पर सन् 1870 में ‘द मसूरी एक्सचेंज एडवर्टाइजर’ और सन् 1872 में कोलमैन द्वारा ‘द मसूरी सीजन’ शुरू किया गया. कोलमैन जब भारत छोड़ कर गया तो उसके जाने के साथ ही ‘द मसूरी सीजन’ अखबार भी बंद हो गया.
सन् 1875 में जॉन नार्थम ने मसूरी से नये अखबार ‘द हिमालयन क्रोनिकल’ की शुरूआत की. इस अखबार के बाद 1884 में ‘द हिमालयन क्रोनिकल’ अखबार निकालने वाली प्रेस से ही दूसरे अखबार ‘द कैमेलियन’ निकलना भी शुरू हुआ जो एक तरह का क्लासीफाइड विज्ञापनों वाला अखबार था.
1 जुलाई 1875 को देहरादून से एक नये तरह के अखबार की शुरूआत हुई जिसका नाम था ‘द इंडियन फॉरेस्टर’. यह अखबार वानिकी अनुसंधानों पर आधारित था. इस के कुछ वर्ष बाद ही सन् 1878 में देहरादून में ‘इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल’ की शुरूआत हुई. इसका नाम बाद में बदल कर ‘फॉरेस्ट रिसर्च इन्टीट्यूट’ कर दिया गया. इसकी स्थापना देहरादून में 1906 में हुई थी. तब से आज तक यह इंस्टीट्यूट अपने नाम और काम दोनों के लिये विश्वप्रसिद्ध है.
पहले स्वदेशी अखबार
पहला स्वदेशी अखबार नैनीताल से निकलने वाला ‘समय विनोद’ था जो उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाओं में प्रकाशित होता था. 1867 में पहली बार उत्तराखंड में प्रेस आई जिसके माध्यम से ‘समय विनोद’ निकला. ‘समय विनोद’ जब शुरू में निकला था तब इसके पाठकों की संख्या मात्र 32 थी जिसमें 17 भारतीय और 15 यूरोपीय थे. बाद के समय में इसके ग्राहकों की संख्या 225 तक पहुंच गयी परन्तु 1877 में यह अखबार बंद हो गया. इस पत्र में ब्रिटिश शासन के दौरान होने वाली राजकीय चोरियों, भारतीय के शोषण आदि मुख्य विषयों को छापा गया था. इस अखबार के निकलने के दो साल बाद ‘अल्मोड़ा अखबार’ निकला. इसको 1868 में पं जय दत्त जोशी ने शुरू किया. वे ही इसके मुद्रक, प्रकाशक और सम्पादक थे. अखबार पाक्षिक था और इसे भी हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में निकाला गया.
शक्ति और अन्य अखबार
1871 में पण्डित बुद्धि बल्लभ पंत के संपादन में ‘अल्मोड़ा अखबार’ छपना शुरू हुआ. शुरूआती दौर में इसके पाठकों की संख्या मात्र 10 थी जो बाद में 150 तक पहुँची. ‘समय विनोद’ के बंद हो जाने के कारण लोगों ने ‘अल्मोड़ा अखबार’ को हाथों-हाथ लिया. सन् 1871 से सन् 1888 तक ‘अल्मोड़ा अखबार’ लिथो प्रेस में छपता था उसके बाद ट्रेडल प्रेस में छपने लगा और फिर यह साप्ताहिक भी हो गया. यह अखबार लगभग 48 वर्षों तक प्रकाशित होता रहा और इसके सम्पादन से बुद्धि बल्लभ पंत, मुंशी इम्तियाज अली, जीवानन्द जोशी, सदानन्द सनवाल, विष्णुदत्त जोशी तथा 1913 के बाद बदरीदत्त पांडे जैसे लोग जुड़े रहे. इस अखबार में कुली बेगार, जंगल बंदोबस्त, बाल शिक्षा, शराब बंदी, स्त्रियों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर खुल कर लिखा जाता रहा. सदानन्द सनवाल ने इस अखबार के काफी ऊँचाइयों तक ला दिया था.
कहा जाता है कि एक बार जब डिप्टी कमिश्नर लोमस की एक पार्टी के बारे में ‘अल्मोड़ा अखबार’ में लिखा गया तो उन्होंने जबरन अखबार के प्रकाशक सदानन्द सनवाल का इस्तीफा ले लिया और फिर इस अखबार को भी बंद करवा दिया.
‘अल्मोड़ा अखबार’ के बंद होते ही 15 अक्टूबर 1918 को लोगों से पैसा इकट्ठा कर बद्री दत्त पांडे ने नया अखबार ‘शक्ति’ शुरू कर दिया. ‘शक्ति’ अभी भी निकल रहा है. ‘शक्ति’ कांग्रेस का मुख पत्र भी बना. ‘शक्ति’ ने स्थानीय समस्याओं को अखबार में उठाने के साथ-साथ इन समस्याओं को उठाने वाले आंदोलनों में भी सहयोग किया. ‘शक्ति’ ने बेगार, जंगलात, डोला-पालकी, नायक सुधार, अछूतोधार तथा गाड़ी-सड़क जैसे आंदोलनों में सहयोग किया तो वहीं राष्ट्रवादी आंदोलनों असहयोग, स्वराज, सविनय अवज्ञा, व्यक्तिगत सत्याग्रह, भारत छोड़ों आंदोलन में भी बढ़-चढ़ कर भागीदारी की. इन्हीं कारणों से कई बार ‘शक्ति’ के प्रकाशन को बंद करना पड़ा. ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत के चलते इस अखबार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर होती चली गयी. जून 1921 में अखबार से जमानत के तौर पर 2 हजार रुपये मांगे गये और इसे तीन सप्ताह के लिये बंद भी कर दिया गया.
भवानी दत्त जोशी ने 1919 में ‘ज्योति’ और जय दत्त तिवारी ने 1924 में ‘कूर्माचल मित्र’ अखबार भी शुरू किये. अल्मोड़ा से ही पूरन चन्द ने 15 अप्रेल 1923 को ‘जिला गजट’ अखबार निकाला जो विन्ध्यावासिनी प्रेस में छपता था. सन् 1925 में बसन्त कुमार जोशी ने ‘जिला समाचार’ नाम से एक अखबार निकाला जिसका नाम बाद में बदल कर ‘कुमाऊँ कुमुद’ रख दिया गया. इसका वार्षिक मूल्य उस समय में 2 रुपये 8 आना था. यह अखबार साहित्यिक अधिक था. 1948 में यह अखबार बंद हो गया. 1930 में विक्टर जोजफ मोहन जोशी ने अपना एक अलग अखबार निकाला जिसका नाम था ‘स्वाधीन प्रजा’. इस अखबार के शुरू होने पर पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपना शुभकामना संदेश भेजा था.
1935 में हरिप्रसाद टम्टा ने ‘समता’ अखबार भी शुरू किया जो कि दलित जागृति का पर्याय बना. इसके सम्पादक सक्रिय समाज सुधारक थे. 1939 में पीताम्बर पांडे ने हल्द्वानी से ‘जागृत जनता’ नाम से एक अखबार निकाला. इस अखबार ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ काफी कुछ लिखा जिस कारण 1940 में इसके सम्पादक को सजा के साथ 300 रुपये का जुर्माना भी पड़ा.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शोभन सिंह जीना ने ‘’पताका’ अखबार का प्रकाशन शुरू किया. इस अखबार के सम्पादक तारादत्त पांडे थे. सन् 1940 में नैनीताल, काशीपुर और मुरादाबाद से ‘अरुण’ अखबार का प्रकाशन भी शुरू हुआ. 1936 में नैनीताल से ‘हादी-ए-आजम’ अखबार निकला जिसके सम्पादक वकील निसार अहमद अंसारी थे. यह नैनीताल का दूसरा अखबार थो जो ‘विनोद समय’ के बाद उर्दू में निकला. 1930 से 1980 के बीच अल्मोड़ा से लगभग 30 पत्र-पत्रिकायें निकली.
गढवाल के अखबार
गढ़वाल में हिन्दी पत्रकारिता की शुरूआत करने का श्रेय महाराजा कीर्ति शाह को जाता है. कहा जाता है कि 1901 में यूरोप की यात्रा से लौटने के बाद कीर्तिशाह ने टिहरी में मुद्रणालय स्थापित किये और गढ़वाल के पहले पाक्षिक अखबार ‘रियासत टिहरी गढ़वाल’ का प्रकाशन शुरू किया. यह अखबार ज्यादा समय तक नहीं चल पाया. 1901 में गढ़वाल से ‘गढ़वाल यूनियन’ की शुरूआत हुई जिसका हिन्दी नाम ‘गढ़वाल हितकारिणी’ था. 1902 में गिरीजा दत्त नैथाणी के संपादन में ‘गढ़वाल समाचार’ की शुरूआत हुई. इसका वार्षिक शुल्क उस समय सवा रुपया था. और इसका आकार 17×25 सेमी का था जिसमें 16 पृष्ठ होते थे. सबसे पहले यह अखबार आर्य भास्कर प्रेस, मुरादाबाद में छपा. पर यह भी जल्दी ही बंद हो गया. 1905 में ‘गढ़वाली’ नाम से एक अखबार फिर शुरू हुआ और इसका सम्पादन भी गिरिजा दत्त नैथाणी ने किया.
1913 में ब्रह्मानन्द थपलियाल ने पौड़ी में ‘बदरी केदार प्रेस’ की स्थापना की जिसके बाद सदानन्द कुकरेती ने अपने संपादन में ‘विशाल कीर्ति’ नाम से अखबार निकालना शुरू किया. पर आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह अखबार दो साल में ही बंद हो गया. 1914 में राजा महेन्द्र सिंह ने देहरादून से ‘निर्बल सेवक’ नाम से हिन्दी साप्ताहिक निकाला तो मानवेन्द्र नाथ राय ने 1937 में अग्रेजी मासिक पत्रिका ‘रेडिकल ह्यूमनिस्ट’ और साप्ताहिक ‘इण्डिपेंडेंट इंडिया’ का प्रकाशन शुरू किया. 1926 में देहरादून से ही ठाकुर चंद सिंह ने नेपाली अखबार ‘गोर्खा संसार’ निकालना शुरू किया. 1940 में विजय राम रतूड़ी ने ‘हिमालय केशरी’ और आचार्य गोपेश्वर कोठियाल ने हस्तलिखित अखबार ‘रणभेरी’ का प्रकाशन शुरू किया पर ये जल्द ही बंद भी हो गये. 1942 में कांग्रसियों ने साइक्लोस्टाइल्ड भूमिगत अखबार ‘ढिंढोरा’ का प्रकाशन शुरू किया. इस अखबार ने ब्रिटिश हुकूमत को काफी परेशान किया.
नोट: यह आलेख जयसिंह रावत की पुस्तक ‘स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता’ के आधार पर लिखा गया है.
उत्तराखण्ड में ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने का काल
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
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इस अखबार के निकलने के दो साल बाद ‘अल्मोड़ा अखबार’ निकला. इसको 1968 में पं जय दत्त जोशी ने शुरू किया. वे ही इसके मुद्रक, प्रकाशक और सम्पादक थे. अखबार पाक्षिक था और इसे भी हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में निकाला गया.
धन्यवाद रिस्की पाठक जी गलती बताने के लिए। इसमें तारिख़ की गलती हो गयी थी उसे मैंने सुधार दिया है।
Bahut ache or upyogi baton ko samil kiya gya h.
bahut bahut dhanyabad.
अत्यन्त उपयोगी एवं ऐतिहासिक जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं साधुवाद।