क्रिकेट को विश्व भर में मशहूर करने का श्रेय इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया को जाता है. इंग्लैंड ख़ुद को क्रिकेट का जनक मानता है और जाहिर है उसे इस बात पर गुमान भी है. आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पहला क्रिकेट मैच 1866 में खेला गया. इसके बाद हर साल दोनों देश एक दूसरे के घर जाकर अक्सर क्रिकेट खेला करते. इंग्लैंड अपने घर से बाहर तो कभी-कभार कुछ मैच हार जाता लेकिन वह कभी भी कोई मैच अपने देश में नहीं हारा. लेकिन 1882 में ओवल के मैदान पर आस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने इंग्लैंड का यह गुमान तोड़ दिया.
29 नवम्बर 1882 को इंग्लैंड में दोनों टीम के बीच एक टेस्ट मैच खेला जाना था. मैदान खचाखच भरा था. इंग्लैंड के लोगों को अपनी टीम के हमेशा जीतने की आदत से पूरी उम्मीद थी कि उनकी टीम जीत जायेगी. लेकिन इंग्लैंड की कमजोर साबित हुई और उसने अपने घरेलू दर्शकों को निराश किया.
इंग्लैंड की इस हार से वहां की मीडिया टीम से इतनी खफ़ा हुई की उसने घोषित कर दिया कि इंग्लैंड में क्रिकेट मर गया है. उस समय इंग्लैंड के एक बड़े अख़बार द स्पोर्टिंग टाइम्स ने एक श्रध्दांजलि पत्र छापते हुये खबर छापी कि 29 नवम्बर 1882 को ओवल के मैदान पर इंग्लिश क्रिकेट मर चुका है, उसका अंतिम संस्कार किया जायेगा और उसकी राख आस्ट्रेलियाई टीम अपने साथ आस्ट्रेलिया ले जायेगी.
इसके कुछ समय बाद ही इवो ब्लिग की कप्तानी में इंग्लैंड की टीम तीन टेस्ट मैच की एक सीरीज खेलने आस्ट्रेलिया रवाना हुई. इस टेस्ट सीरिज से पहले द स्पोर्टिंग टाइम्स ने पुरानी ख़बर को जारी रखते हुए लिखा की इंग्लैंड की टीम राख को वापस ला पायेगी?
तीन टेस्ट मैच की सीरीज को इंग्लैंड दो एक से जीत गया. कहा जाता है कि आस्ट्रेलिया से लौटते समय जब इंग्लिश कप्तान इवो ब्लाग अपने जहाज की ओर जा रहे थे तभी एक समाज सेविका लेडी जेनेट क्लार्क के नेतृत्व में महिलाओं के एक समूह ने उन्हें मजाक में एक छोटा सा कलश दिया जिसमें तीसरे टेस्ट मैच की बेल्स (गिल्लीयों) की राख रखी थी. यहीं से एशेज सीरीज की शुरुआत हो गयी. यानी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के बीच खेली जाने वाली टेस्ट सीरीज को एशेज कहा जाने लगा. यह परम्परा आज तक जारी है.
एशेज का यह कलश आज भी लार्ड्स के क्रिकेट ग्राउंड में रखा गया है. एशेज जीतने पर दिया जाने वाला कप इसी का एक प्रतिरूप है. असली कप हमेशा लार्ड्स में ही रहता है.
– गिरीश लोहनी
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