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मॉरिशस में युवाओं को हिंदी में आनंदित होते देखा

सविता तिवारी
स्वतंत्र पत्रकार, मॉरीशस

विश्व हिन्दी सम्मेलन में जाने का यह मेरा पहला मौका था. लोगों की बातें, उम्मीदों और अपेक्षाओं को थोड़ी देर के लिए अलग कर दिया जाए तो मुझे निजी रूप से इस तीन दिवसीय सम्मेलन में जाकर बहुत अच्छा लगा. कई लोगों से परिचय हुआ. कई ऐसे लेखकों से मिलने का मौका मिला जिन्हें केवल पढ़ा है. लम्बे समय से फेसबुक मित्रों से आमने-सामने मुलाकात से स्नेह में वृद्धि हुई. और भी कई निजी उपलब्धियां रही जिनकी चर्चा फिर कभी. फिलहाल सम्मेलन से मॉरीशस को क्या प्राप्त हुआ इस पर चर्चा करना उचित भी है और आवश्यक भी.

मॉरीशस में पहले भी दो बार सम्मेलन हो चुके हैं. वर्ष 1976 और वर्ष 1993 में. 76 के सम्मेलन के बाद सरकारी नजरिए में हिन्दी के प्रति काफी बदलाव आया था. साथ ही भारत से हिन्दी को लेकर काफी सहयोग मिलने लगा था. भारतीय प्राध्यापकों द्वारा स्थानीय शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था हुई. कुछ हिन्दी पत्रिकाओं के भी प्रकाशन प्रारंभ हुए. सम्मेलन के बाद भारत से हिन्दी भाषा को लेकर उच्च स्तरीय संबंध स्थापित हुए जो समय के साथ गहरे होते गए.

93 के सम्मेलन तक आते-आते मॉरीशस में हिन्दी, बोलने से अधिक, पढ़ने-पढ़ाने, सभाओं, लेखकों, विद्वानो, विशेष लोगों की भाषा बनती चली गई. लेकिन इस सम्मेलन के बाद मॉरीशस में लेखकों की संख्या में वृद्धि हुई थी. यहां से नियमित हिन्दी में पुस्तकें प्रकाशित होने लगी और विश्व बाजार में मॉरीशस के हिन्दी साहित्य ने खुलकर प्रवेश किया. मॉरीशस के लेखकों के भारत के लेखकों से संबंध स्थापित होने लगे. दोनों देशों के लेखकों का एक-दूसरे के यहां आना जाना होने लगा जो आज भी सस्नेह जारी है.

अब बात करते हैं 2018 यानी दो दिन पहले सम्पन्न हुए सम्मेलन की. हालांकि इस सम्मेलन से मॉरीशस को क्या प्राप्त होगा यह तस्वीर तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पाएगी. लेकिन जो युवा हिन्दी पढ़ रहे हैं और जो सम्मेलन में प्रतिभागी भी बने उनमें मुझे काफी उत्साह और खुशी नजर आई. यह पहली बार है जब मॉरीशस के हिन्दी पढ़ने वाले युवाओं को मैंने हिन्दी से आनंदित होते हुए देखा, अन्यथा हिन्दी के कार्यक्रम बहुत भारी और गंभीर होते हैं, बामुश्किल कोई मुस्कुराते नजर आते हैं.

मॉरीशस में आज हिन्दी को आनंद से जोड़ने की आवश्यकता है. ऐसा माहौल दिया जाए जहां सब आकर हिन्दी का उत्सव मनाए. अब हिन्दी को सभाओं से निकालकर उत्सवों की तरफ ले जाने की जरूरत है. अब अधिकारियों और हिन्दी के संरक्षकों पर जिम्मेदारी है कि मॉरीशस में ऐसे आयोजन नियमित रूप से होते रहे. भले ही छोटे स्तर पर हो पर उनका रूप उत्सव का हो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

(नीचे कुछ आंकड़े दे रही हूं जो जनगणना वर्ष में मॉरीशस में हिन्दी बोलने वालों की संख्या इंगित करते हैं, ताकी मॉरीशस में हिन्दी की स्थिति स्पष्ट हो सके. यह ब्यौरा जनगणना के आधार पर है. इस विषय पर मेरा एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ है केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की पत्रिका “प्रवासी जगत” के 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन विशेषांक में)

वर्ष 1972 में – 2,62,191 लोग घर में हिन्दी बोलते थे. 1983 में 1,11,134 लोग, 1990 में 12,848 लोग, 2000 में 7,250 लोग और 2011 में 8,690 लोग हिंदी बोलने वाले रह गए.

मॉरिशस के तुलसीनगर में हुआ आयोजन
11वे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आगाज मॉरीशस में 18अगस्त 2018 को बड़े जोश के साथ हुआ. तिन दिवसीय सम्मेलन में देश विदेश के करीब तीन हजार प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. सम्मेलन का उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीन कुमार जगन्नाथ ने भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की उपस्थिति में हुआ. सम्मेलन का आयोजन पाई स्थित स्वामी विवेकानंद अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक केन्द्र में किया गया. स्थल को विभिन्न कार्यों के लिए लगाए टैंट भारत मॉरीशस के झंडों से सजे एक गांव में तब्दील कर दिया गया था जिसका नाम गोस्वामी तुलसीदास नगर रखा गया.

स्वागत भाषण मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुक्कन लछमन ने सबको सुखद आश्चर्य चकित करते हुए हिन्दी में दियाण् शिक्षा मंत्री ने कहा उनके मंत्रालय के लिए इस सम्मेलन का आयोजन करना एक बहुत बड़ी चुनौती रहीण् लेकिन आज सभी का स्वागत करते हुए उन्हें काफी संतोष का अनुभव हो रहा है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस में होना उनके लिए गौरव की बात है. इस मौके के लिए वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आभारी हैं. उन्होंने दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों पर भी चर्चा की.
सुषमा स्वराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषा एवं संस्कृति दोनों एक दूसरे से जुड़ी हुई है इसलिए इस बार सम्मेलन विषय विश्व हिन्दी एवं भारतीय संस्कृति रखा गया है. स्वराज ने भारत सरकार द्वारा हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं की सुची में शामिल किए जाने के लिए किए जा रहे प्रयासो की चर्चा की. उन्होंने बताया कि हर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र द्वारा हिन्दी में एक साप्ताहिक न्यूज बुलेटिन का प्रसारण पाइलेट प्रोजेक्ट के तहत शुरु हुआ है.

स्वराज ने सम्मेलन के प्रतीक चिन्ह भारतीय मोर और मॉरीशस के राष्ट्रीय पक्षी डोडो जो लुप्त हो चुका है. को चुनने का कारण बताते हुए कहा कि डोडो मॉरीशन घरों से लुप्त हो रही हिन्दी का प्रतीक है और मोर भारत की सहायता से हिन्दी को पुनः स्थापित करने का प्रतीक है.
उद्घाटन सत्र की शुरुआत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजली देकर की गई. इसके लिए सभागार में उपस्थित सभी ने दो मिनट का मौन धारण किया. प्रधानमंत्री जगन्नाथ ने कहा कि वाजेपयी जी भारत के महान बेटे और मॉरीशस के मित्र थे. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वाजपेयी जी की सहायता से मॉरीशस में निर्मित साइबर टॉवर का नाम बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी टॉवर रखा जाएगा. इस घोषणा पर सभागार और मंच पर उपस्थित सभी ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ प्रसन्नता जताई.
सम्मेलन के पहले दिन दोपहर के भोजन के बाद सत्रों का सिलसिला शुरु हुआ. कुल आठ विषयों पर सत्रों का आयोजन हुआ. पहले दिन चार व दूसरे दिन चार सत्र आयोजित हुए.

सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत चार समानांतर सत्रों के आयोजन से हुई. जिसमें विद्वानों के पैनल ने दिए गए विषय पर अपने विचार व्यक्त किए. यह चर्चा दोपहर के भोजन तक चली. दोपहर के भोजन के बाद पुनः सत्र स्थल पर प्रतिभागियों द्वारा विद्वानों ने दिए विषय पर परिचर्चा के लिए जुटाव हुआ. परिचर्चा के अंत में अनुशंसाए प्रस्तावित की गई. सम्मेलन प्रातः 10 से शाम 5 बजे तक चला, जिसके बाद शाम को मॉरीशस के शिक्षामंत्री द्वारा रात्रि भोज का आयोजन तत्पश्चात कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया.

आयोजन स्थल पर 25 विभिन्न प्रदर्शनियां भी लगाई गई जिसमें विभिन्न हिन्दी सेवी संस्थाओं, प्रकाशकों एवं हिन्दी से जुड़े सरकारी विभागों ने हिस्सा लिया.

दूसरे दिन दोपहर में मॉरीशस स्थित महात्मा गांधी संस्थान में पाणिनी भाषा प्रयोग शाला का उद्घाटन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा मॉरीशस की शिक्षा मंत्री की उपस्थिति में किया गया. यह प्रयोगशाला मॉरीशस को भारतीय सरकार द्वारा उपहार स्वरूप दी गई है. इस मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा इस प्रयोगशाला के जरिये युवा पीढ़ी में हिंदी के पठन-पाठन के प्रति रुचि और अधिक विकसित की जा सकेगी. सुषमा ने कहा, मुझे इस बात की बेहद खुशी और गर्व है कि मॉरीशस में हिंदी भाषा का भविष्य पूरी तरह सुरक्षित है.
गौरतलब है कि पाणिनी भाषा प्रयोगशाला भारतीय विदेश मंत्रालय के सहयोग से स्थापित की गई है. इसमें 35 कंप्यूटर के साथ-साथ भाषा प्रयोगशाला से संबंधित अन्य तमाम आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं, भारत से आए तकनीकी विशेषज्ञों ने इसमें भारतीय भाषाओं के आधुनिक सॉफ्टवेयर लगाए हैं, जिनके माध्यम से प्राथमिकए माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शिक्षा की नवीनतम प्रविधियों और वैज्ञानिक तरीकों से भाषा के चारों कौशल अर्थात सुनना बोलना, पढ़ना और लिखना सिखाए जाएंगे.

मॉरीशस में हिन्दी में विद्यालय एवं उच्च स्तर पर शिक्षा पा रहे कई विद्यार्थियों ने भी सम्मेलन में प्रतिभागिता की. उन्हें कई विद्वानों को आमने-सामने सुनने का एवं चर्चा करने का मौका मिला, वे हिन्दी को आगे करियर के तौर पर चुनने को लेकर भी काफी उत्साहित नजर आए, युवाओं की उपस्थित से पूरा सम्मेलन स्थल काफी जोश भरा नजर आया. साथ ही ऐसा भी महसूस हुआ कि यह एक सेल्फी पॉइंट बन गया हो, सत्रों में हिस्सा लेने एवं विद्वानों को सुनने से अधिक लोगों में उनके साथ सेल्फी खिचवाने के प्रति रूची देखी गई.

समापन सत्र की शुरुआत आठों सत्रों में निर्धारित अनुशंसाओं की प्रस्तुति से हुई. विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि सभी अनुशंसाओं पर गंभीर कार्यवाही की जाएगी एवं अनुशंसा कमेटी का गठन होगा जो हर तीन महीने पर कार्यों का मूल्यांकन करेंगी. कई अनुशंसाओं में से एक अनुशंसा यह भी दी गई कि 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन फिजी में किया जाए.

समापन भाषण में मॉरीशस के अंतरिम राष्ट्रपति परमशिवम पिल्लै वायापुरी ने कहा कि भारत से बाहर मॉरीशस एक मात्र ऐसा देश है जिसे यह सम्मेलन तीन बार आयोजित करने का गौरव प्राप्त है. और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि मॉरीशस की 70 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है. उन्होंने उपस्थित लोगों का ध्यान इस ओर दिलाया कि एक बड़ा समाज है जो हिन्दी बोल नहीं सकता लेकिन हिन्दी के कार्यक्रम देखने और हिन्दी संगीत सुनने का शौकीन है. इन्हें भी हिन्दी प्रेमियों की श्रेणी में शामिल किया जाए और इनकी तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है.
वायापुरी ने यह कहते हुए सम्मेलन का समापन किया किए मॉरीशस के लिए हिन्दी केवल भाषा नहीं है अपितु यह हमारी संस्कृति और पहचान का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि मॉरीशस हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के प्रयास में मॉरीशस के साथ है.

सम्मेलन में मॉरीशन सरकार के अनेक मंत्रियों ने हिस्सा लिया. साथ ही भारत की ओर से गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, वीके सिंह, एमजे अकबर आदि ने हिस्सा लिया.

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