मेरी पढ़ाई-लिखाई का माध्यम हिंदी था. ज़ाहिर है विचार-प्रक्रिया भी हिंदी में ही चलती है. साहित्य भी सर्वाधिक हिंदी का ही पढ़ा है तो अभिव्यक्ति की भी सबसे सहज भाषा हिंदी ही है. किंतु मेरे हिंदी-लगाव ने किसी और भाषा से दूरी पैदा नहीं की. दूसरी भाषाओं को इसकी शाखाएँ जहाँ-जहाँ भी स्पर्श करती हुई देखी वहीं से उनके अंतःस्थल में झांकने का प्रयास हमेशा बना रहा.
(Hindi Divas 2020)
हिंदी भाषा की भले ही कोई एक सर्वमान्य परिभाषा हो पर व्यवहार में हिंदी के अनेक रूप देखे जाते हैं. फिल्मों की हिंदी और विश्वविद्यालयों की हिंदी में दूर-दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं दिखता. आँचलिक बोलियों से समृद्ध हिंदी (जिसमें सूर और तुलसी ने क्लासिक्स लिखे) और महानगरों में व्यवहृत हिंदी में भी बहुत-बड़ा फासला दिखता है. दूसरे वाले पहली को गंवारू कहने से नहीं चूकते तो पहले वालों के लिए भी दूसरी परदेशिया-सी ही रहती है. एक हिंदी शुद्धतावादियों की है जिसमें कदम-कदम पर संस्कृत हो जाने की अनुभूति होती है तो एक हिंदी हिंदुस्तानी समर्थकों की है जिनके यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, किसी शब्द और मुहावरे के लिए दरवाजे बंद नहीं हैं.
दरअसल भाषा किसी आदमी को नहीं बनाती, आदमी भाषा को बनाता है. हर हिंदीभाषी चाहता है कि उसकी भाषा में संस्कृत का लालित्य हो, अंग्रेजी की समृद्धि हो और उर्दू का अंदाज़े-बयां भी. ये भाषा, हर भाषा से प्रेम करके पनपती है. हर भाषा की बुनियादी खूबसूरती को समझ कर विकसित होती है. इस भाषा को पाने के लिए जीते-जागते इंसानों को बोलते हुए सुनना पड़ता है. उनके लिखे हुए को पढ़ना पड़ता है. पढ़े हुए और सुने हुए को जज़्ब भी करना होता है.
मातृभाषा सबसे महत्वपूर्ण इसलिए होती है कि वो संप्रेषण का हमारा पहला हथियार होती है. आगे चल कर इस हथियार को धार भी दी जाती है और बहुभाषिकता के रूप में बहुगुणित भी किया जाता है.
(Hindi Divas 2020)
सबसे खतरनाक भाषा, गढ़ी हुई भाषा होती है. इसमें न कोई महक होती है न प्राकृतिक स्वाद. कहीं की ईंठ कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाली कहावत के जरिए भी इस गढ़ी हुई भाषा को समझा जा सकता है. गढ़ी हुई भाषा में प्रवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती और प्रभाव तो सिरे से ही गायब होता है.
इस गढ़ी हुई भाषा के दर्शन कई जगह हो सकते हैं. एक सुलभ-दर्शनालय बैंकों का वो पट्ट भी होता है जिस पर ‘आज का हिंदी शब्द‘ लिखा होता है. मैं जब भी किसी बैंक में जाता हूँ तो इस पट्ट की ओर नज़र अवश्य डालता हूँ. क्योंकि बैंक के भीतर रुपए-पैसों की दुनिया में यही वह जगह होती है जहाँ भाषा के लिए जगह होती है, आरक्षित ही सही. इस पट्ट पर लिखे शब्द को पढ़ कर मैं ऊपर वाले का शुक्र भी अदा करता हूँ कि चलो ये भी हिंदी शब्द अपने शब्दकोश में नहीं. ऐसा भी सोचता हूँ कि अगर इन हिंदी शब्दों का प्रयोग मैं बोलचाल में करने लगूं तो लोग मुझे पक्का अंग्रेज समझेंगे. फिर सुकून मिलता है उनका अंग्रेजी पर्याय देख कर जिन्हें कोई ठेली-पटरी वाला भी समझने में कठिनाई महसूस नहीं करता.
बैंक में जब भी गया, उनके भाषापट्ट से आज का हिंदी शब्द जरूर नोट किया. आप भी देखिए और ईमानदारी से कहिए कि क्या सिर्फ हिंदी के नाम पर इन शब्दों को आप पचा पा रहे हैं और अगर पच रहे हों तो क्या इन्हें संवाद में प्रयोग करने की स्थिति में हैं.
अशोध्य ऋण Dead Loan
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विलेख Deed
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चुकौती पत्र Discharge Certificate
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परिसमापनाधीन Under Liquidation
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पुर्नबट्टा Rediscounting
बैंक भाषापट्टों पर ही कुछ बेहतरीन हिंदी शब्द भी देखे हैं जैसे Closing Balance के लिए इतिशेष. एक बैंक शाखा में इसी की हिंदी, रोकड़ बाकी लिखी हुई थी. कोई पूछे कि भाई, आज का रोकड़ बाकी बता तो पीठ पर कोड़े पड़ने की सी अनुभूति हो. इसी तरह Opening Balance के लिए अथशेष भी सुंदर हिंदी शब्द है.
दूसरी समस्या, हिंदी की मानक पारिभाषिक शब्दावली विकसित करने में असफलता है. अब Hospital की वर्तनी तो सारी दुनिया में एक जैसी रहती है पर उत्तर प्रदेश में ये चिकित्सालय हो जाता है और हरियाणा में हस्पताल. मध्यप्रदेश में औषधालय और महाराष्ट्र में रुग्णालय.
(Hindi Divas 2020)
यमुना नदी के इस तरफ, उत्तराखण्ड में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का मतलब हाईस्कूल होता है और उस तरफ हिमांचल में इण्टरमीडिएट. सरकारी, ही कुछ हिंदी राज्यों में जहाँ राजकीय है तो वही दूसरे राज्यों में शासकीय. जब छात्र था तो रिडक्शन की हिंदी अपचयन पढ़ी और जब शिक्षक बना तो वही किताबों में अनॉक्सीकरण के रूप में मिला. डायरेक्टर फिल्म का हो तो निर्देशक और किसी संस्था या विभाग का हो तो निदेशक.
एयर हॉस्टेस के लिए परिचारिका, सत्कारिणी और व्योमबाला शब्द गढ़े गए पर जनता की जुबान से एयर हॉस्टेस को हटा नहीं पाए. टेलीविजन के लिए दूरदर्शन पूरी तरह शाब्दिक अनुवाद है तो ऑल इंडिया रेडियो के लिए आकाशवाणी, खूबसूरत हिंदी शब्द जिसे आत्मसात करने में किसी को कोई दुविधा नहीं हुई. सभी हिंदीभाषियों, हिंदीप्रेमियों और हिंदी पाठकों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ इस भावना के साथ कि हिंदी का शिरातंत्र उसकी बोलियाँ हैं और पेशीयतंत्र उसकी सम्पर्क भाषाएँ. इन सब से अलग करके गढ़ी हुई हिंदी किसी के भी दिल की भाषा नहीं हो सकती. हिंदी भारत के हृदय की भाषा है, सर्वाधिक लोगों द्वारा व्यवहृत भाषा है. हमें अपनी हिंदी पर गर्व है. उस हिंदी पर जिसमें सभी के लिए जगह है और जिसने सभी से ताकत पायी है.
(Hindi Divas 2020)
1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. .
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अति उत्तम। निस्संदेह हमें अपनी हिंदी पर गर्व है. उस हिंदी पर जिसमें सभी के लिए जगह है और जिसने सभी से ताकत पायी है.,,,,,👍