हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष की बहुत महत्त्वपूर्ण प्रजाति पाई जाती है, जिसे Himalayan Boxwood (Scientific name: Buxus Wallichiana) कहते हैं। यह सामान्य दिखने वाला सदाबहार पेड़ तुरंत आपका ध्यान आकर्षित नहीं करता लेकिन प्रकृति, संस्कृति और आजीविका के लिए इसका मूल्य, इसे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक ‘मौन नायक’ (Silente Hero) बनाता है। हालाँकि, कई महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों की तरह, Buxus Wallichiana भी एक बढ़ते हुए संकट का सामना कर रहा है, जिससे इसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इस पेड़ पर शोध कर रही हरिप्रिया कविदयाल, जो आनुवंशिकी एवं वृक्ष सुधार प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में DST-Women Scientist (Wise PhD) हैं, बता रही हैं कि यह हिमालयी वृक्ष क्यों महत्त्वपूर्ण है और हम इसके संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं? (Himalayan Boxwood: The Unsung Tree of Himalayas)
स्थानीय रूप से Buxus wallichiana को उत्तराखण्ड में ‘पापड़ी’, हिमाचल प्रदेश में ‘शमशद’, और जम्मू कश्मीर में ‘चिकरी’ के नाम से जाना जाता है। यह ठनगंबमंम परिवार का एक सदाबहार और धीमी गति से बढ़ने वाला छोटा पेड़ अथवा झाड़ी है, जो आमतौर पर 5 से 8 मीटर तक बढ़ता है। इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की तथा चमड़े (समंजीमतल) जैसी होती हैं जबकि इसके फूल छोटे, और कम आकर्षक (पदबवदेचपबनवने) होते हैं। यह प्रजाति अपनी कठोर, टिकाऊ लकड़ी के लिए जानी जाती है, जिसका उपयोग शिल्पकला (काष्ठकला) और पारंपरिक निर्माण कार्यों में किया जाता है।
यह हिमालयी क्षेत्र की मूल वृक्ष प्रजाति है, जिसमें भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं। भारत में, यह प्रजाति मुख्य रूप से पश्चिमी हिमालय के समशीतोष्ण जंगलों (उप-अलपाईन) और पूर्वी हिमालय के कुछ हिस्सों में समुद्र तल से 1,500 से 3,000 मीटर की ऊँचाई पर मिलती है। यह विभिन्न प्रकार के महत्त्वपूर्ण चौड़ी पत्तियों वाले और शंकुधारी वृक्ष प्रजातियों जैसे, Quercus semecarpifolia (खरसू), Q. floribunda (मोरू), Picea smithiana (स्प्रूस), Acer spp (हिमालयी मेपल), Alnus nepalensis (उतीस), Taxus wallichiana (थुनेर), और Ulmus wallichiana (हिमालयी एल्म) आदि के साथ पारिस्थितिक तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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Ecological, Cultural, and Economic Significance (पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व)
यह स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है, विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में, जहाँ इसकी जड़ें मिट्टी को स्थिर बनाती हैं। इसके अलावा, यह कई प्रकार के कीड़ों, पक्षियों, और बकरी जैसे छोटे जानवरों के लिए आवास और भोजन भी प्रदान करता है।
हाँ, पापड़ी का सांस्कृतिक महत्त्व बहुत अधिक है, खासकर हिमालयी क्षेत्रों में। इसकी लकड़ी का उपयोग पारंपरिक नक्काशी, धार्मिक मूर्तियों, और वॉकिंग स्टिक जैसी वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में इसे पवित्र माना जाता है और धार्मिक परंपराओं से जोड़ा जाता है। कुछ स्थानों पर स्थानीय लोग इसकी पूजा करते हैं तथा मंदिरों के पास और अपने घरों में इसे लगाते हैं, जो स्थानीय लोगों द्वारा संरक्षण का संकेत देता है।
हाँ, Himalayan Boxwood की लकड़ी अपनी मजबूती और टिकाऊपन के कारण अत्यधिक मूल्यवान है। यह उच्च गुणवत्ता वाले फर्नीचर, नक्काशी के उपकरण, और सजावटी वस्तुओं के निर्माण के लिए उपयोग की जाती है। इसका आर्थिक मूल्य स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को सहयोग प्रदान करता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में, जहाँ इसे उगाया और काटा जाता है। परंपरागत रूप से, उत्तराखण्ड में इसकी लकड़ी से संदूक और कांगुली बनाए जाते थे। लेकिन, इन दिनों यहाँ कोई भी इस कला को नहीं अपनाता है। इसके विपरीत, जम्मू और कश्मीर में लोग अभी भी इस पर नक्काशी का काम कर रहे हैं।
क्या आपको लगता है कि B. wallichiana खतरे में है? इसके सामने संकट क्या-क्या हैं?
वास्तव में नहीं, लेकिन निरंतर वनों की कटाई (deforestation) और अस्थिर कटाई (unsustainable logging) (मानव हस्तक्षेप) इसके प्राकृतिक आवास (natural habita) को कम कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, तापमान और वर्षा पैटर्न (जलवायु परिवर्तन) में बदलाव इसके विकास और जंगल में जीवित रहने को प्रभावित कर सकता है। यह प्रजाति धीमी गति से बढ़ती है एवं इसका पुनर्जनन (regeneration) भी खराब है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि B. wallichiana की wild population पर भारी मानवजनित दबाव के कारण, इसके पुनर्जनन में कमी आई है जो इसके लिए खतरे का संकेत है (Wani et al., 2022 और Ahmed et al., 2015)।
उत्तराखण्ड को सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal (Sustainable Development Goal) सूचकांक में प्रथम स्थान मिला है, तो क्या यह प्रजाति संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में कोई भूमिका निभाती है?
हाँ, बिल्कुल! B. wallichiana के संरक्षण की पहल तीन SDGs में योगदान देती हैः (1) SDG-13 (जलवायु परिवर्तन/कार्यवाई), (2) SDG-15 (भूमी पर जीवन) और (3) SDG-12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन)।
खैर, यह केवल इस प्रजाति के बारे में नहीं है। हिमालय में हर पेड़ की प्रजाति पर्यावरण और स्थानीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मैं भाग्यशाली हूँ कि मैं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित ‘वन आनुवंशिकी संसाधनों का संरक्षण (Forest Genetic Resources) (FGR) नामक परियोजना का हिस्सा रही हूँ। वैज्ञानिक, डॉ. एच. एस. गिनवाल (निदेशक ICFRE. उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर), ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत के वन आनुवंशिकी संसाधनों पर सभी डेटा एकत्र करने और संकलित करने के उद्देश्य से इस महत्त्वपूर्ण परियोजना के बारे में सोचा और इसकी शुरूआत की।
Himalayan Boxwood की बात करें तो अगर इसकी population में गिरावट आती है, तो हम एक ऐसी प्रजाति खो देंगे जो पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पौधा मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है, वन्यजीवों के लिए आश्रय और भोजन प्रदान करता है, और स्थानीय समुदायों को सांस्कृतिक और आर्थिक दोनों तरह से सहायता करता है। इसे खोने से हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का नाजुक संतुलन बिगड़ जाएगा, जैव विविधता को नुकसान पँहचेगा, और इससे जुड़ी सांस्कृतिक परंपराएं भी खत्म हो जाएंगी। संक्षेप में, इसके खत्म होने से पर्यावरण और लोगों की आजीविका पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगें।
IPCC ने हिमालय को vulnerable vkSj sensitive ecosystems में से एक बताया है। हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उससे जुड़ी जैव विविधता के संदर्भ में data-deficient है, जिस कारण से इसे ‘white spot’ भी कहा जाता है। हिमालयी क्षेत्रों में, अनावश्यक विकास एवं बढ़ते टूरिज्म के कारण सबसे ज्यादा उस क्षेत्र की वन प्रजातियाँ, चाहे वह वन्यजीव हों या वृक्ष, प्रभावित होती हैं। इसलिए, अभी से ही इनके संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि भविष्य में भारत के आनुवंशिक संसाधनों को बचाया जा सके और हमारी आने वाली पीढ़ियों को लाभ मिल सके।
B. wallichiana का संरक्षण कई कदम उठाकर किया जा सकता है, जैसे कि आवास संरक्षण (habitat conservation), टिकाऊ कटाई (sustainable logging), ex-situ conservation] reforestation, और जहॉं आवश्यक हो वहॉं वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना एवं साथ ही साथ शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से। ये पहल न केवल यह सुनिश्चित करती हैं कि प्रजाति भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहे बल्कि आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने में भी मदद करती है, जो प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसके संरक्षण के लिए, मैं इसके आनुवंशिक एवं इस पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ रहा है, पहलुओं पर काम कर रही हूँ। काम चल रहा है।
चूंकि स्थानीय समुदाय संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, तो आपको क्या लगता है कि स्थानीय समुदाय B. wallichiana की सुरक्षा में कैसे मदद कर सकते हैं?
हॉं, स्थानीय समुदाय पारंपरिक रूप से अपने पर्यावरण के संरक्षक रहे हैं, जो conservation practices करने के लिए भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र की अपनी गहन समझ पर भरोसा करते हैं। ये समुदाय प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के बीच के नाजुक संतुलन को समझते हैं। कुछ स्थानों पर स्थानीय समुदाय/लोग, क्षेत्र की जैव विविधता की रक्षा के लिए वन विभाग के साथ सहयोग कर रहे हैं। उत्तराखण्ड के मुनस्यारी में Himalayan Shephered समूह उनमें से एक है।
इसके बावजूद, इनके अधिकारों को समझकर, टिकाऊ कटाई अभ्यासों में भाग लेकर, सामुदायिक समूहों की स्थापना करके और इको-टूरिज्म को बढ़ावा देकर Himalayan Boxwood सहित हिमालयी वृक्ष प्रजातियों की रक्षा करने में मदद मिल सकती है। (Himalayan Boxwood: The Unsung Tree of Himalayas)
मूल रूप से मुक्तेश्वर की रहने वाली हरिप्रिया कविदयाल फ़िलहाल देहरादून में रहती हैं. हरिप्रिया डीएसटी-महिला वैज्ञानिक (WISE-PhD), आनुवंशिकी और वृक्ष सुधार प्रभाग, ICFRE- वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में कार्यरत हैं. वे पिछले आठ वर्षों से वन संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. इसके अतिरिक्त वे कुमाऊँ की पारंपरिक लोक कला ऐपण पर भी कार्य करती हैं. जो उन्हें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में योगदान देने का अवसर प्रदान करती है.
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