गत 5 जनवरी 2019 को नए साल की शुभकामनाएँ देने के लिए नैनीताल समाचार के सहयोगी व लोक निर्माण विभाग के सेवानिवृत्त इंजीनियर देवेन्द्र नैनवाल जी से वरिष्ठ पत्रकार हरीश पंत ‘हरदा’ के साथ भेंट की. बातचीत के दौरान नैनवाल जी ने बागेश्वर जिले के रीठागाड़ पट्टी का एक दिलचस्प किस्सा सुनाया (Henry Ramsay anecdote from Kumaon).
वाकया अंग्रेजों के समय का है. उस समय कुमाऊँ, जिसमें तत्कालीन गढ़वाल जिला (अब पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग जिले) भी आता था, के कमिश्नर हैनरी रैमजे थे. वे जब-तब लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए दौरे पर रहते थे. अपने ऐसे ही दौरे में वे रीठागाड़ पहुँचे. उनके साथ उस समय का प्रशासनिक अमला था.
रैमजे रात को सोने से पहले गाय का दूध पीते थे. जब वे रीठागाड़ के विश्राम भवन पहुँचे तो उनके साथ चल रहे अमले को उनके लिए गाय के दूध की उपलब्धता का संकट खड़ा हो गया, क्योंकि आस-पास किसी के भी पास दूध देने वाली गाय नहीं थी.
पर सवाल अंग्रेज कमिश्नर का था. सो, उनके साथ चल रहे तहसीलदार ने पेशकार को किसी भी स्थिति में गाय का दूध लाने के आदेश दिए. पेशकार ने यह आदेश पटवारी को दिया, पटवारी ने अपने चपरासी को आदेश दे डाला. मरता क्या न करता पटवारी का चपरासी दूध देने वाली गाय की खोज में निकला. किसी ने पास के गाँव में एक महिला के यहॉ दूध देने वाली गाय की सूचना चपरासी को दी. महिला के पति की कुछ समय पहले ही मौत हो चुकी थी. पटवारी का चपरासी जब उस महिला के घर पहुँचा और उसने अंग्रेज साहब के लिए गाय का दूध देने का हुक्म सुनाया तो वह महिला चौंक पड़ी, क्योंकि उसके पास दूध देने वाली गाय थी ही नहीं. उसने पटवारी के चपरासी को हाथ जोड़ते हुए याचना की कि उसके पास जब दूध देने वाली गाय ही नहीं है तो वह कहाँ से अंग्रेज साहब के लिए दूध पहुँचाएगी?
पटवारी के चपरासी ने अपने सिर की बला उस महिला के सिर पर डालते हुए कहा कि यह अंग्रेज साहब का हुक्म है. मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ. कहीं से भी उनके लिए गाय का दूध लाकर पहुँचा देना. इतना कहने के बाद वह वहां से चला गया.
अब वह महिला करे तो क्या करे? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. दोपहर के बाद जब शाम होने को आई तो महिला की चिंता और बढ़ गई, क्योंकि आस – पास किसी के भी पास दूध देने वाली गाय नहीं थी. उस महिला का एक दूध पीने वाला बच्चा था. अंग्रेज साहब के गुस्से से बचने के लिए महिला ने अपने स्तन से दूध निकालकर एक गिलास में डाला और उसे कमिश्नर रैमजे के भोजन की व्यवस्था करने वालों के पास यह कहकर पहुँचा दिया कि गाय ने बहुत ही कम दूध दिया है. जितना सम्भव था, उतना लेकर आ गई हूँ.
रात को रैमजे को दूध गर्म करके दे दिया गया और यह भी बता दिया गया कि बड़ी मुश्किल से गाय का दूध मिला है. वह भी थोड़ा सा ही है, क्योंकि गाय एक ही समय दूध देती है और उसका दूध भी अब सूखने की कगार पर है. रैमजे ने जैसे ही एक घूँट दूध पिया, उन्हें उसका स्वाद कुछ अलग सा लगा. हमेशा गाय का दूध पीने वाले रैमजे को समझ आ गया कि कुछ गड़बड़ है.
दूसरे दिन सवेरे उठने पर उन्होंने साथ चल रहे तहसीलदार को तलब किया और पूछताछ की कि कल रात गाय का दूध कौन और कहाँ से लेकर आया? और जिसके यहाँ से गाय का दूध आया उसे भी बुलाया जाय. पटवारी का चपरासी उस महिला के पास भागा-भागा पहुँचा और उसने अंग्रेज साहब के पास उपस्थित होने का हुक्म सुनाने के साथ ही दूध वाली बात भी बता दी.
पटवारी के चपरासी का हुक्म सुनते ही उस अकेली महिला के होश उड़ गए. वह एक बार फिर से धर्मसंकट में फँस गई. उसे लगा कि उसने बैठे बिठाए बड़ी भारी मुसीबत मोल ले ली है. उसने अपना दूध गाय का दूध बताकर बड़ी गलती कर दी. अंग्रेज साहब अब गुस्से में उसे न जाने क्या सजा दें?
फिर भी वह महिला डरते-डराते अंग्रेज कमिश्नर रैमजे के पास पहुँची. उन्होंने उस महिला से कहा कि वह ईमानदारी से बताए कि जो दूध उसने भेजा था, वह किसका था? महिला ने डरते हुए सारा वाकया बता दिया कि उसके पास तो दूध देने वाली कोई गाय है ही नहीं. पटवारी के कारिन्दों ने जबरन उससे कहीं से भी गाय का दूध लाकर देने को कहा था. ऐसे में वह क्या करती? उसने झूठ बोलकर अपना दूध ही गाय का दूध बताकर भेज दिया था.
महिला के साफगोई से सब कुछ बता देने पर कमिश्नर रैमजे उस महिला के पैरों में गिर पड़े और बोले कि आज से तुम मेरी ईजा (माँ) हो, क्योंकि अनजाने में ही सही मैंने तुम्हारा दूध पी लिया है.
रैमजे के उस महिला के पैरों में गिरते ही वहॉ मौजूद सभी सरकारी कारिन्दे सकते में आ गए. वे यह समझने लगे कि इस महिला ने न जाने कमिश्नर साहब को क्या पट्टी पढ़ा दी है? अब उनकी खैर नहीं? क्योंकि उन लोगों ने ही उस महिला से कहीं से भी गाय का दूध लाने का फरमान सुनाया था.
रैमजे ने उसके बाद उस महिला से उसके घर के हाल-चाल जाने. उसने बताया कि वह बहुत ही गरीब है और उसके पति की भी कुछ महीने पहले ही मौत हो चुकी है और वह बड़ी ही मुश्किल से अपने बच्चों का लालन-पालन कर पा रही है. रैमजे ने कहा कि वह अब उनका पुत्र है तो एक बेटे के नाते वह उनके लिए क्या कर सकता है? उस महिला ने कहा कि उसे खाने-कमाने के लिए कुछ जमीन मिल जाती तो काफी होता.
रैमजे ने कहा, “बोलो, कितनी जमीन चाहिए?” वह महिला फिर बोली कि थोड़ी बहुत दे दीजिए.
इस पर रैमजे ने तहसीलदार से सम्बंधित क्षेत्र का नक्शा निकालने को कहा और उस नक्शे को महिला को दिखाकर गाँव के बारे में बताते हुए कहा कि तुम्हें यहाँ जितनी जमीन चाहिए उस पर अंगुलियों से एक घेरा बना दो. उस महिला ने अपने हिसाब से नक्शे पर उंगली घुमा दी. रैमजे ने तुरन्त ही उस पर पेंसिल से घेरा बनाकर तहसीलदार को आदेश दे दिया कि नक्शे में जितने क्षेत्र में पेंसिल से निशान बनाया गया है, उस पूरी जमीन को “ईजा” के नाम कर दिया जाय!
और इस तरह से रीठागाड़ पट्टी का एक पूरा गाँव ही उस महिला के नाम हो गया. कालान्तर में उस महिला के बच्चों के वंशजों में गोविन्द सिंह बिष्ट जी भी हुए. जो अल्मोड़ा के प्रसिद्ध वकील थे और वहॉ के विधायक भी रहे. कुछ साल पहले उनकी मृत्यु हो चुकी है.
ऐतिहासिक तौर पर इसमें कितनी सच्चाई है यह तो नहीं मालूम, लेकिन इस क्वीड़ से तत्कालीन अंग्रेज प्रशासकों की जनता के बीच रहने और उनके दुख दर्दों को नजदीक से जानने – समझने और तत्काल हल निकालने की प्रवृत्ति का पता चलता है, जो लोगों में एक किस्सागोई के तौर पर आज भी जिंदा है.
शायद यही कारण रहा होगा कि अपनी लाख बुराईयों के बाद भी उन्होंने दो सौ सालों तक भारत पर राज किया.
जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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