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काले गड्ढे के उस पार हॉकिंग रेडिएशन

प्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिकविद् स्टीफन हॉकिंग का निधन उस दिन के शुरुआती लम्हों में हुआ जो महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्श्टाइन की जयंती के तौर पर जाना जाता है. अब 14 मार्च सैद्धांतिक भौतिकी की इन दो विभूतियों की जयंती और पुण्यतिथि के तौर पर याद किया जाता रहेगा.

हॉकिंग एक भरापूरा परिवार और सवालों से जूझती सघन विज्ञान परंपरा और ब्रह्मांड भौतिकी के बहुत से जटिल रहस्यों और निश्चित रूप से अपनी विज्ञान बिरादरी के साथ हुए विवादों, छींटाकशियों और ईर्ष्याओं को छोड़ कर इस दुनिया से गये. नोबेल समिति के विस्तृत खालीपन में अब स्टीफन हॉकिंग भी भर गये हैं. या वो शायद महानता के ब्लैक होल से कहीं अलग और दूर निकल गये हैं. जैसा कि अपनी प्रस्थापनाओं में वो प्रकाश विकिरण के बारे में कहते भी थे. जिसे हॉकिंग रेडिएशन के नाम से जाना गया.

समय का संक्षिप्त इतिहास (अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम) जैसी लोकप्रिय प्रसिद्ध किताब से स्टीफन हॉकिंग दुनिया भर में एक जाना पहचाना नाम कई साल पहले बन गए थे. 1993 में दूसरी किताब ‘ब्लैक होल्स ऐंड बेबी यूनिवर्सेस ऐंड अदर एसेस’ प्रकाशित हुई. इसी किताब में हॉकिंग ने ब्रह्मांड से जुड़े अपने अध्ययनों को रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. इसमें कुछ व्याख्यान भी हैं और वो महत्वपूर्ण लेख भी है जिसमें हॉकिंग ने आइंश्टाइन की दुविधाओं पर अंगुली रखी है. 2001 में उनकी किताब आयी ‘द युनिवर्स इन अ नटशैल’ और इसने भी तहलका मचा दिया. रिकॉर्ड बिक्री हुई.

गैलीलियो की मृत्यु के 300 बाद, आठ जनवरी 1942 को जन्मे हॉकिंग शारीरिक रूप से अपाहिज और बोलने या चलने फिरने में असमर्थ थे. उनके लिए एक ख़ास किस्म की चेयर तैयार की गयी थी जिस पर कई अत्याधुनिक उपकरणों के साथ कंप्यूटर लगाया गया था. हॉकिंग के कंप्यूटर को एक स्पीच सिंथेसाइज़र प्रणाली से जोड़ा गया था. हॉकिंग एक अत्यंत घातक बीमारी एएलएस (amyotrophic lateral sclerosis) के मरीज थे. इस बीमारी को मल्टीपल स्कलेरोसिस यानी एमएस या मोटर न्यूरॉन डिज़ीज़ भी कहा जाता है. डॉक्टरों के खारिज़ कर दिए जाने के बावजूद हॉकिंग न सिर्फ लंबे समय तक अच्छे भले रहे बल्कि उनके तीन बच्चे भी हुए. जबकि धुरंधर न्यूरोसर्जनों का दावा था कि अगर महोदय बच भी गए तो बच्चे किसी सूरत में पैदा नहीं कर सकते.

ब्रह्मांड की गुत्थियां सुलझाते हुए एक मोड़ पर आइन्श्टाइन ठिठक गये थे और उन्होंने कुछ थकान कुछ मजाक में कह दिया था कि ईश्वर पासे नहीं खेलता. कई वर्षों बाद अपनी थ्योरी में हॉकिंग ने मजाकिया अंदाज में बताया कि ईश्वर न सिर्फ पासे खेलता है बल्कि न तो वो खुद न हम कभी ये जान पाते हैं कि उसके वे पासे कहां कहां गिरते हैं. हॉकिंग ने न सिर्फ ईश्वर की अवधारणा को चुनौती दी बल्कि तमाम अंधविश्वासों और धार्मिक रूढ़ियों का भी सख्ती से विरोध किया. आकाशगंगा में बिखरे हुए ब्लैक होल्स (कृष्ण विवर-काले गड्ढे) को लेकर उन्होंने ये सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि ब्लैक होल पूरी तरह से ब्लैक नहीं है. यानी एक स्थिर दर से वे कणों को और विकिरणों को वापस भेजते रहते हैं. इस वजह से काला गड्ढा धीरे धीरे वाष्पित होता रहता है. लेकिन अंतिम तौर पर ब्लैक होल और उसकी सामग्री का क्या होता है, ये पता नहीं चल पाया है. ब्लैक होल में समा जाने वाली चीजें क्या नष्ट हो जाती हैं या वे अन्य ब्रह्मांड में निकल जाती हैं. यही वो बात है जो हॉकिंग के मुताबिक वो शिद्दत से जानना चाहते थे लेकिन शरारती अंदाज में ये भी कहते थे कि “इसका मतलब ये नहीं कि मेरा इरादा उस काले गड्ढे में कूद जाने का है.”

पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर उनका नजरिया बिल्कुल स्पष्ट था. उन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दों पर गहरी चिंता जताई और समय समय पर कहते रहे कि आदमी ने धरती का अधिकतम दोहन कर लिया है और इसे जीने लायक नहीं छोड़ा है, इन्हीं चिंताओ के बीच वे अन्य ग्रहों में (जहां जीवन संभव है) मानव बस्तियों के निर्माण के अवश्यंभावी भविष्य की ओर रेखांकित करते थे. हॉकिंग ने एलियन की अवधारणा को भी कभी पूरी तरह खारिज नहीं किया. वे एक ऐसे प्राणी के बारे में हमेशा बोलते थे जो मनुष्य प्रजाति से शारीरिक मानसिक मनोवैज्ञानिक तकनीकी तौर पर उच्चतम अवस्था में है और किसी एक आकाशगंगा का हिस्सा है. हालांकि अपने इन बयानों के पक्ष में वो कोई ठोस वैज्ञानिक तर्क या प्रमाण नहीं रख पाये लेकिन हॉकिंग विज्ञान और उससे इतर सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर इतने लोकप्रिय रहे हैं कि उनकी बात एक सनसनी से ज्यादा एक भविष्यवाणी का दर्जा रखती थी.

ये तय है कि पूरी दुनिया के समकालीन विज्ञान जगत में इतना खिलंदड़ और मस्तमौला वैज्ञानिक नहीं देखा गया. कई मायनों में तो वो अपने निकट पूर्वज आइन्श्टाइन से भी ज्यादा नटखट थे. रही बात समानताओं की तो आइन्श्टाइन जैसी समानताएं सबसे ज़्यादा उन्हीं में थीं. संगीत को लेकर आइन्श्टाइन में जो आला दर्जे की समझ थी, हॉकिंग उस समझ को नये विस्तारों में ले गये. पश्चिमी शास्त्रीय और पॉप संगीत पर उनकी असाधारण पकड़ थी. स्टीफन हॉकिंग का जीवन, कला की उन उद्दाम ऊंचाइयों की झलक दिखाता है जहां संगीत और भौतिकी जैसी दो जटिल दुनियाएं एक बिंदु पर थिरकती रहती हैं.

(धीरेश सैनी के ब्लॉग से)

 

शिवप्रसाद जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं और जाने-माने अन्तराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों बी.बी.सी और जर्मन रेडियो में लम्बे समय तक कार्य कर चुके हैं. वर्तमान में शिवप्रसाद देहरादून और जयपुर में रहते हैं. संपर्क: joshishiv9@gmail.com

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Sudhir Kumar

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