हर्ष देव जोशी को कुमाऊं का चाणक्य कहा जाता है. हर्ष देव जोशी को कुमाऊं का ऐतिहासिक पुरुष तो सभी ने माना है लेकिन उन्हें कुमाऊं का चाणक्य कहे जाने पर सभी एक मत नहीं हैं. अनेक शासकों को धोखा देने वाले हर्ष देव जोशी आखिर में ख़ुद अंग्रेजों के धोखे के शिकार हुये. कुमाऊं के इस ऐतिहासिक पुरुष की एक वसीयत राहुल सांकृत्यायन ने अपनी किताब कुमाऊं में छापी है. राहुल सांकृत्यायन की किताब ‘कुमाऊं’ में ‘हर्ष देव जोशी की वसीयत’ नाम से छपे अध्याय को पढ़कर पाठकों को सहज बुद्धि से स्वयं तय करना चाहिये कि क्या हर्षदेव जोशी को वाकई कुमाऊं का चाणक्य कहा जाना चाहिये: सम्पादक
(Harsh Dev Joshi Harakdev Joshi)
एक ओर हम बलभद्र थापा और बमशाह जैसे आदमियों को देखते हैं, तो दूसरी ओर हर्षदेव जोशी की वैयक्तिक स्वार्थान्धता का तिकड़म अन्त तक जारी रहते भी देखते हैं. गोरखा-राज्य का स्वागत करने वालों में वह प्रथम थे किन्तु जब उनकी आशा नहीं पूरी हुई तो वह अंग्रेजों की सहायता के लिए तैयार थे. हर्षदेव के भावों को जानने के लिए उनकी निम्नलिखित वसीयत भी मदद कर सकती है:
तर्जुमा चिट्ठी हिन्दी मोहरे जोशी हर्षदेव वालिदम्के बरबख्त बूदन बैकुण्ठवासी बअहिलकारान खुद दादा रफ्ता बूदन्द मय-बिरादरान निन्द फिदवी रसीदा अस्त फकूत .
मकल याददाश्त जोशी ज्यूने बरबख्त बैकुण्ठवासी होनेके औलाद अपने के वास्ते अहवाल हक्की लिखाकर सौंपना अहिलकार अपनोंके किया.
“मर्कूमा अष्टमी सुदी आषाढ़ संवत् १८७२ विक्रमाजीत बमुकाम श्रीगणनाथ संवत् १८७१ आश्विन्यं मुदी पडेवाके रोज (१) बहुक्म कम्पनी बहादुर केसे मिस्टर विलियम फ्रेजर साहब बहादुर ने बीच कनखलके हवेली भागमल खत्री की में दस्तगीरी हमारी की, वास्ते करने फतेह मुल्क कोहिस्तान के. उस बख्त में साहब ममदूह ने फरमाया : जो कुछ कि मुद्दा, तुम्हारे दिल में कम्पनी के घर से वसूल करने वास्ते तुम चाह रखते हो, सो अर्ज करो, (वे) बाद फतेह होने के वसूल होंगे करके साहब के हुक्म दिये जाने पर (राजा, राजपंचों मुल्क मुमय्योंको) की और औलाद-अपनी की बेहतरी के वास्ते तफसील बमूजिब मैंने मुद्दा अर्ज की सो साहब ममदूह ने कबूल की. बाकी मुद्दा हुक्म कम्पनी ही हमको मुक्कर्रर (मंजूर) होगा.
(Harsh Dev Joshi Harakdev Joshi)
यह कह के हुक्म अपनी तरफ से दिया-
अव्वल- कि इज्जत तुम्हारी कम्पनी के घर से मुआफिक राजाओं के मय फर्जन्दान होगी.
दोयम- हुक्म जनैली तुम्हें मिलेगा.
सोयम्- गढ़ व कुमाऊँ निज तुम्हारी ही (सम्पत्ति) है, इससे सिवाय जो मुल्क कोहिस्तान अमलदख़ल कम्पनी के में आवेगा, उसका बन्दोबस्त मार्फत तुम्हारे होगा.
यह जो हुक्म मिस्टर विलियम फ्रेजर साहब बहादुर के देने से हमराह गार्डनर साहबबहादुर के होकर मुल्क कुमाऊँ के तई जो कुछ खैरख्वाही मुझ गरीब से बनी, सो जहाँ-आलम में रोशन है. बीच-अलमोड़ा के नक्कारा फतेह का कम्पनी का बजाय करके उम्र मेरी ने वफ़ा न दिया. अब मैं बैकुण्ठवासी होता हूँ | मेरी हक्की हकदार औलाद मेरी मार्फत साहबबहादुर कैसे (और अर्ज करले पास मिस्टर गार्डनर साहबबहादुर कैसे) भी कम्पनी के घर से वसूल कर ले. मुद्दा यह तमाम इक्कीसों की थी, बेहतरी तमाम मुल्क की और अपनी करके बीच दर-ए-दौलत कम्पनी अंगरेज बाहादुर की खैरख्वाही के तईं मशगूल रहना. अगर इस बात के वास्ते कयामत की जांफिशानी औलाद मेरी न करे (तो) भला नहीं होगा. लेकिन हकदारों को हक सरकार न पहुँचायेगी, तो अर्ज मेरी औलाद की साहबा लोग न सुन के दुरुस्ती मुआफिक मेरी अर्ज की हुई के न कर देवें, तो मैं दामनगीर आकवत में हूँगा. और किताब दिखाई, उसमें साहब-ममदूह ने लिखा दिखलाया. हकदार कदीमी मेरे तईं को सबका ठहराया बतलाया. अव्वल मुद्दा गद्दी की में तकरार भी किया. तफसील मुद्दा हीज़देह (अठारह शर्तों का विवरण) –
(1) गद्दी राजकुमाऊँ की कायम हो.
(2) मुआफिक बजुर्गान हमारों के मुआफिक इज्जत उस जगह कायम हो.
(3) जमींदारी बखशी हुई राजाओं की हमारे तईं, सो हमको मिले.
(4) मिल्कियत ब्राह्मणों की बतौर साबिक कायम हौवे.
(5) जो कुछ वास्ते देवतों के रुपया-जमीन जो साबिक से कायम है, सो बहाल रहे.
(6) बदस्तूर-साबिक के खायकार कुमाऊँ के तराई की गढवाल की कायम रहे.
(7) कानूने कुमाऊँ कि इब्तदा से ताल्लुक बुजुर्ग हमारे के रहे, सो अब भी कायम रहे.
(8) इन्साफ माफिक धर्मशास्त्र के हो.
(9) बन्दोबस्त गोरखालियों का बन्द होकर माफिक राजाओं के बन्दोबस्त हो.
(10) गोवध कभी नहीं हुआ, अब भी न हो.
(11) जल हिन्दू मुसलमान का जुदा-जुदा रह आया है, सो ही अब भी रहे.
(12) बिछौना हिन्दू-मुसलमानों का जुदा-जुदा ही रहा है, सो अब भी रहे.
(13) हुरमत इज्जतदारों की मुआफिक आगे के रहे .
(14) मजहब जो धर्मशास्त्र का चला आया है मुआफिक उसमें फर्क न पड़े.
(15) आदमी पहाड़ का गरीबशुदा है, औरतें इस मुल्क की किसी के बहकावटी से बदईमान न हों.
(16) गोरखों की बिद्दत से ब्राह्मण इस मुल्क से चले गये हैं, सो आबाद हो.
(17) मकान-देवतों में सिवाय कदीम के जाने वालों के और कोई न जाये.
(18) बेटा बड़ा हमारा कैद गोरखाली के में है, नवाज़िश कम्पनी की से छूटे.
(Harsh Dev Joshi Harakdev Joshi)
हर्षदेव जोशी जैसा आदमी स्वार्थान्ध हो बच्चों जैसे विश्वास के साथ इतनी बातें करे यह विश्वास करना मुश्किल है. उनके नादान वंशज भले ही ऐसी जाली वसीयत में इस तरह की बकवास कर सकते हैं, किन्तु अपनी जन्मभूमि और लोगों के लिए हर्षदेव के वे भाव बिलकुल नहीं थे, जो कि बमशाह ने अपने नेपालके प्रति दिखलाये.
कुमाऊँ का यह ‘अर्ल वारविक’ अद्वितीय बुद्धि और प्रभाव रखता था, यह तो अंग्रेजों ने भी स्वीकार किया है. कप्तान हियरसी ने 1814 में क. फ्रेजर को जोशी का परिचय निम्नलिखित शब्दोंमें दिया था- “यह पुरुष (हमारे लिए) एक पक्का साधन है. इसके नाम से गोरखाली काँपते हैं. कुमाऊँ में इसका सम्बन्ध 6000 पुरुषों से है. यह अब 68 वर्ष का है, किन्तु अब भी सक्रिय एवं उत्साहपूर्ण हैं तथा इसकी सभी हड्डियाँ स्वस्थ हैं. सभी पहाड़ी राजाओं पर सतलज से परे भी इसका प्रभाव है.”
फ्रेजर ने लिखा था- यद्यपि दुर्भाग्य तथा दरिद्रता के कारण वह (हर्षदेव) अत्यन्त उदास रहता है किन्तु अब भी उसका दिमाग सक्रिय, कर्मठ और उद्योगपरायण है.
एटकिन्सन का विचार था – हर्षदेव जोशी की सहायता से कुमाऊँनी लोग हमारे साथ हुए. उसका प्रभाव अब भी बहुत था और उसने ब्रिटिश सरकार को योजना में पूरी तौर से सहायता की.
(Harsh Dev Joshi Harakdev Joshi)
यह लेख राहुल सांकृत्यायन की किताब कुमाऊं से लिया गया है.
(Harsh Dev Joshi Harakdev Joshi)
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