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कितना कठिन है सुदूर घाटी के कुमाऊनी गाँवों में इन दिनों जीवन – तरदा की आपबीती

बीते दिन पिंडर घाटी के अंतिम गांव खाती के तारा सिंह उर्फ तरदा से मुलाकात हुई. वे अपनी बिटिया को कॉलेज पहुंचाने के लिए बागेश्वर तक आए थे. “क्या हाल हैं गांव के” – पूछने पर मायूस हो वे गांवों की परेशानी बताते चले गए. Hard Winter Life in Pindar Valley

तारा सिंह उर्फ़ तरदा

“क्या होता है हमारा. वैसा ही ठैरा वहां. खाती गांव में ही इस बार बेमौसम ड़ेढ़ फीट तक बर्फ गिरी है. पिंडारी के रास्ते में द्वाली में चार फिट बर्फ है. सारे रास्ते बंद पड़े हैं. बिजली और फोन तो सपना जैसा हो गया है. नेताओं और प्रशासन की नजर में तो हम आदिवासी जैसे हैं. उन्हें कोई मतलब नहीं रहता है हमारी परेशानियों से. वहां आते तो उन्हें भी पता चलता कि आज के युग में हम कैसे रह रहे हैं. खाली अपने आफिसों में बैठकर बयानबाजी करते रहते हैं. अब तो इन सबको अपनी परेशानी बताते – बताते हम भी थक गए हैं. अब तो आधा खाली हो गया है पिंडरघाटी का मल्ला दानपुर.” Hard Winter Life in Pindar Valley

“हमारे बाप-दादाओं ने तो जैसे-तैसे काट ली अपनी जिंदगी. कभी हमारी भी सुध लेंगे. ये सोच हम भी डटे रहे अपने घर-गांवों में. तीन पीढ़ी गुजर गई लेकिन हम आज भी वहीं हैं जहां पहले थे. हमारी तो कट ही गई लेकिन अब बच्चों के लिए बाहर निकलना मजबूरी हो गई है. कल को हम इन्हें क्या जबाव देंगे. हमारा बचपन यों ही गुजर गया. घर-खेत के कामों में. हाईस्कूल में पढ़ने के साथ ही टूरिस्टों के साथ गाईड का काम भी करना शुरू कर दिया था. टूरिस्ट आते थे और वो हमारी और गांव की तारीफ करते थे तो मन खुश हो जाता था. वे कहा करते थे कि यहां की परेशानियों के बारे में वो सरकार को बताएंगे. जल्द ही यहां भी बिजली, फोन, सड़क आ जाएगी. टूरिस्टों का आना-जाना लगा रहा.”

जातोली गांव, सुन्दरढूंगा घाटी, बागेश्वर

“वो सपने दिखाते रहे. तब तक मेरी शादी हो बच्चे भी हो गए थे. बरसातों में रास्ते-पुल गायब हो जाते थे तो बरसात के बाद सब मिलकर उन्हें ठीक कर लेते थे. बर्फबारी से पहले जानवरों के साथ ही अपने खाने का सामान रख लेना हुआ. बर्फ गिरने के बाद कई हफ़्तों तक गांव-घाटियों की जिंदगी ठहर सी जाने वाली हुई. न जाने लोगों को बर्फ इतनी अच्छी क्यों लगती होगी. हमारे लिए तो बर्फबारी हमेशा मुसीबत ही लाती है. न कहीं आ-जा सकते हैं, न कुछ काम कर सकते हैं. बस घरों में नजरबंद कैदी की तरह कैद हो जाते हैं.” Hard Winter Life in Pindar Valley

“जब बर्फ गिरती है तब अच्छा तो लगता है लेकिन बाद में दो-एक दिन के बाद ऐसा लगता है जैसे वक्त ठहर सा गया हो. बादल छाए रहने से सोलर पैनल भी चार्ज नहीं हो पाते हैं तो गांव के खेतों में खड़े बिजली के पोलों को देख-देख अपनी आदिमानव जैसी जिंदगी को ही कोसना हुआ. पहले उरेडा ने गांवों में बिजली का सपना दिखाकर छह-एक करोड़ डकार लिए और अब यूपीसीएल ने भी गांवों में बिजली के तार-पोल लगा अपनी फाइलों में बिजली चला दी लेकिन गांव आज तक भी सिर्फ सोलर के भरोसे ही हुए.”

“धूर के पास जब मोबाईल टावर बना तो थोड़ा भरोसा हुआ कि सरकारें हमें भी इंसान मानने की सोच रही है. लेकिन ये भरोसा भी कुछेक सालों में ही टूट गया. इस टावर को चलाने के लिए जनरेटर का डीजल नीचे कपकोट-सौंग में ही गायब हो जाने वाला हुआ. अब टॉवर काम करे तो करे कैसे. बाद में इसमें बिजली का कनेक्शन दिया तो वो भी इस साल बिल का बकाया होने पर कट गया. 2013 में खाती गांव समेत बधियाकोट, लीती में डिजिटल सेटेलाइट फोन लगाए तो टॉवर के काम ना करने पर भी गांव-घरों की खबरें आ-जा रही थी. इनमें से एक सेटेलाइट कपकोट तहसील में और एक बागेश्वर में आपदा विभाग में लगाया गया था. खराब मौसम और आपदा के वक्त नीचे प्रशासन को भी हम यहां के हाल बता देते थे. सितंबर महीने में इन्हें भी बंद कर दिया है. पूछने पर कोई कुछ भी नहीं  बताता है. पिंडर घाटी के धूर, बदियाकोट, किलपारा, लीती, रातिरकेटी, खाती, वाछम, जातोली, कुंवारी, तीख, डौला, बोराचक, भराकांडे, समडर, अरम के सांथ ही लीती, गोगिना, कीमू के गांवों के फोन अब शांत हो गए हैं.” Hard Winter Life in Pindar Valley

इन दिनों खाती गांव, पिंडर घाटी

“अच्छा अब चलता हूं फिर. कल वापस गांव को जाना है.. जरा बाजार से कुछ सामान भी खरीदना है. फिर मिलता हूं कभी.”

अभिवादन कर तरदा मुझसे विदा ले चला गया. मैं चुपचाप हो उसे बस जाते हुए देखता रहा. उसकी पीढ़ी की परेशानियां मैं महसूस कर रहा था लेकिन ये कष्ट उन्होंने खुद ही झेलने हुए. सरकारी सिस्टम और नेतागणों से संवेदना की उम्मीद करना तो चांद पर गिरे विक्रम लैंडर को सीधा करने से भी ज्यादा कठिन हुआ. अब इसे क्या कहें, आपदा के नाम पर नौ सेटेलाइट सिस्टम तहसील में रखे हैं, लेकिन जब इन क्षेत्रों में कभी कोई आपदा आएगी तो उसकी सूचना यहां तक कैसे मिलेगी इस बारे में सब गांधीजी के बंदर बने बैठे हैं.

– बागेश्वर से केशव भट्ट

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बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं. केशव काफल ट्री के लिए नियमित लेखन.

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