घाट से पिथौरागढ़ के बीच लम्बे मोड़ों वाली घुमावदार सड़क है. पिथौरागढ़ को जोड़ने वाला यह एकमात्र मुख्य मार्ग है. 1950 में जब पिथौरागढ़ शहर में सड़क पहुंची तो पहले कुछ वर्षों में इस सड़क में बहुत सी दुर्घटनाएं घटी. घाट और पिथौरागढ़ के ठीक बीच में एक छोटा सा गांव गुरना पड़ता है. गुरना गांव की सीमा पर मुख्य सड़क के किनारे एक ठंडा जल स्त्रोत हुआ करता था. पिथौरागढ़ आने जाने वाले वाहन चालक इस स्त्रोत से पानी भरा करते थे. इस दौर में पिथौरागढ़ पहुंचने वाले अधिकांश वाहन बड़े ही होते थे. बड़े वाहन चालक इस जलस्रोत के पानी को पीकर और हाथ मुंह धोकर ताजगी के साथ शहर में प्रवेश करते.
इस जल स्त्रोत के 50 मीटर की दूरी पर सड़क के नीचे की ओर एक छोटा सा पाषाण देवी का मंदिर स्थित था. वाहन चालक पिथौरागढ़ सकुशल पहुचंने पर मंदिर में हाथ जोड़ देवी का ध्यान करते. धीरे-धीरे जो वाहन चालक पिथौरागढ़ से बाहर की ओर चलते उन्होंने भी अपनी आगे की यात्रा मंगलमय होने की कामना से यहां वाहन रोकना शुरू कर दिया और अपनी आगे की यात्रा के लिये जल के मीठे स्त्रोत से पानी भरकर रखना भी शुरू किया.
धीरे-धीरे यह मान्यता बनने लगी की इस मंदिर में आशीर्वाद लेने से सड़क दुर्घटना नहीं होती है. इसके बाद 1952 में ही सड़क के किनारे एक मंदिर का निर्माण किया गया. आश्चर्य की बात यह रही कि इसके बाद से घाट और पिथौरागढ़ के बीच लगातार होने वाली सड़क दुर्घटनाएं लगभग थम सी गयी.
इसके बाद से पिथौरागढ़ आने और जाने वाले सभी वाहन मंदिर में घंटी बजाने लगे. बाद में गुरना गांव के नाम पर ही इसे गुरना माता का मंदिर कहा जाने लगा. कुमाऊं रेजिमेंट के पिथौरागढ़ प्रवास के बाद यह मान्यता भी बनने लगी की जम्मू की वैष्णो देवी माता का स्थानीय अवतार ही गुरना माता हैं.
कालांतर में गुरना गांव से ही एक पुजारी मंदिर में नियुक्त किया गया. आज इस मंदिर के सामने से गुजरने वाली हर गाड़ी फिर वह सरकारी वाहन हो या निजी वाहन हो मंदिर में रुकती है. सभी यात्री टीका, पिठ्याँ लगाते हैं और प्रसाद ग्रहण कर ही आगे का सफ़र तय करते हैं.
गुरना मंदिर का जिक्र अधूरा रहेगा अगर इसके साथ में लगी दुकानों का जिक्र न किया जाय. गुरना मंदिर की प्रसिद्धि के साथ में यहां पर कुछ होटल भी खुले. इन होटलों में विश्व के सबसे लज़ीज आलू के गुटके पहाड़ी रायते के साथ परोसे जाते हैं. 2005 तक पिथोरागढ़ की यात्रा करने वाले हर शख्स की जुबान में इन आलू के गुटकों का स्वाद होगा. कभी एक बड़ी कड़ाही में बनने वाले आलू के गुटके अब छोटी कड़ाही में बनते हों लेकिन पहाड़ का स्वाद अब भी इन्होंने नहीं छोड़ा है. पिछले कुछ वर्षों में इनकी लोकप्रियता और इनसे प्राप्त आमदनी दोनों में खासी गिरावट देखी गयी है.
भले ही वर्तमान में इस मंदिर का प्रयोग व्यसाय के रूप में भी ही हो रहा हो लेकिन गुरना माता का मंदिर आज भी पिथौरागढ़ समेत पहाड़ की तमाम जनता की आस्था के केंद्र बना हुआ है.
– गिरीश लोहनी
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…