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इतिहास लेखन में महिलाओं की ध्वजवाहक ‘गुलबदन बेगम’

1520 का वक़्त था जब तेरह वर्षीय हुमायूँ को बाबर ने बदक्खशा का सूबेदार नियुक्त किया गया. हुमायूँ की उम्र कच्ची थी लेकिन बाबर चाहता था कि वो प्रशासन के दाव-पेंच जितनी जल्दी सीख जाए उतना अच्छा है इसलिए वह हुमायूँ को काबुल छोड़ देने पर जोर दे रहा था. बाबर को खुद भी बहुत ही कम उम्र में पिता की अचानक हुई मौत के बाद राज्य संभालना पड़ा था. बाबर को बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था हो सकता है कि इस वजह से ही वह अपने उत्तराधिकारी को अचानक होने वाली किसी भी अनहोनी के लिए तैयार करना चाहता था.
(Gulbadan Banu Begum)

हुमायूँ अपनी माँ माहम बेगम का एकमात्र पुत्र था इसलिए माहम उसे इतनी जल्दी खुद से दूर अकेले नहीं जाने देना चाहती थी लेकिन बादशाह का आदेश था इसलिए हुमायूँ को जाना पड़ा. माहम और बाबर दोनों ही हुमायूं को बदक्खशा तक छोड़ने गए और एक लम्बा समय उसके साथ गुजारा ताकि वह नये माहौल में ढल सके. यह घटना आपको इतिहास की किताबों में एक लाइन में इस तरह से सिमटी मिल सकती है कि “तेरह साल की उम्र में हुमायूँ को बदक्खशा का गवर्नर बनाया गया” लेकिन इस घटना के भावनात्मक पहलू को हम जान सके क्योंकि यह घटना एक महिला इतिहासकार द्वारा कलमबद्ध की गयी है.

बहुत सारे अन्य विषयों के साथ ही मध्यकाल में इतिहास लेखन में भी पुरुषों का एकाधिकार रहा है लेकिन इतिहास के आईने में एक महिला इस वर्चस्व को तोड़ती दिखायी देती है और वह है मुग़ल बादशाह बाबर की बेटी “गुलबदन बेगम”. खुशकिस्मती की बात है कि गुलबदन बेगम को पहचानने के लिए बाबर, हुमायूँ या फिर अकबर के नाम तक की भी कोई जरुरत नहीं है क्योंकि गुलबदन बेगम अपने ऐतिहासिक संस्मरण ‘हुमायूँनामा’ की लेखिका के तौर पर इतिहास के जानकारों के बीच एक जाना-पहचाना नाम है.

मुग़ल बादशाह बाबर की सात पत्नियां थी. गुलबदन बेगम, बादशाह बाबर और उसकी छठी पत्नी दिलदार बेगम की पुत्री थी. उनका जन्म 1523 ई. के आस-पास हुआ था. दिलदार बेगम यूं तो गुलबदन बेगम की जैविक माँ थी लेकिन उसका लालन-पालन बाबर की चौथी पत्नी और मुख्य बेगम माहम, जो कि हुमायूं की माँ थी, द्वारा किया गया. 1519 में जब बाबर बाजौर पर आक्रमण के लिए भारत में था तब उसे खबर भेजी गयी कि उसकी पत्नी दिलदार बेगम गर्भवती है. इस खबर के साथ ही बाबर को उसकी प्रमुख बेगम माहम बेगम का एक खत भी मिला जिसमें बाबर से आग्रह था कि “ मेरे भाग्य से चाहे वो लड़का हो या लड़की, इस बच्चे को मुझे दे दीजिये, मैं उसका पालन पोषण अपने बच्चे की तरह करुँगी”.
(Gulbadan Banu Begum)

माहम बेगम अपने चार बच्चों को खो चुकी थी उसका एकमात्र पुत्र हुमायूँ जीवित था हो सकता है इसलिए बाबर बच्चे को गोद लेने के उसके इस प्रस्ताव को मान गया हो. समय आने पर दिलदार बेगम ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसको तीन दिन की उम्र में माहम को गोद दे दिया गया और उसके चार साल बाद गुलबदन बेगम पैदा हुई उसको भी माहम बेगम ने दो साल की उम्र में गोद ले लिया. बाबर अपनी तुजुक और गुलबदन अपने संस्मरण में दिलदार बेगम के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं करते इसलिए इस घटना के बारे में इतिहास में हमें कहीं भी दिलदार बेगम के पक्ष का पता नहीं चलता है. गुलबदन बेगम के संस्मरण तथा अन्य किसी ऐतिहासिक स्रोत्र से दोनों बेगमों के मध्य किसी तरह के मनमुटाव की कोई जानकारी नहीं मिलती है. लेकिन यह घटना मुग़ल बेगमों के बीच पद और प्रतिष्ठा की ऊंची-नीची परतों की ओर एक इशारा जरुर करती है.

बाबर की मौत के समय आठ साल की गुलबदन बेगम अपनी माँ दिलदार बेगम के पास लौट आई और दोनों शहजादा हिंदाल के साथ रहने लगी. सत्रह साल की उम्र में गुलबदन की शादी खिज्र खा ख्वाजा से हुई जो उसका चचेरा भाई था. गुलबदन की कितनी संतानें थी यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है किन्तु वह अपने एक पुत्र सआदत यार खां का जिक्र अपने संस्मरण में करती है.

गुलबदन अपने पिता की ही भांति पढने-लिखने में दिलचस्पी रखती थी. बेगम की शिक्षा-दीक्षा कैसे हुई इस बात की कोई खास जानकारी नहीं मिलती लेकिन बेगम एक जहीन महिला थी और अरबी व तुर्की भाषाओं की अच्छी जानकार थी. गुलबदन बेगम कवितायें भी लिखा करती थी लेकिन उनकी कविताएं संरक्षण के अभाव में गुम हो गयी हैं उनका लिखा केवल एक शेर उपलब्ध है, जिसे मीर मेहँदी शीराजी की किताब “तजकिर तुल्खवातीन” में जगह मिली है.
(Gulbadan Banu Begum)

अकबर के शासनकाल में गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामाँ लिखा. जब अकबर ने बाबर और हुमायूँ से जुड़े लोगों को उनसे जुड़े संस्मरण लिखने को आदेशित किया. त्रेपन साल की पक्की उम्र में बेगम ने अपनी याद्दस्थ का यह नायब नमूना दुनिया के सामने रखने की शुरुवात की. बेगम को किताबें जमा करने का शौक था उनके संग्रह में बहुत सी दुर्लभ और कीमती किताबे थी. हुमायूँनामा की तैयार नौ प्रतियों में से एक प्रति बेगम को उनके निजी संग्रह के लिए दी गई थी.

मुग़ल काल पर कई तत्कालीन इतिहासकारों ने पुस्तकें लिखी हैं, बेगम के पिता बाबर ने खुद अपने जीवन और विजयों को लिपिबद्ध किया है लेकिन गुलबदन बेगम का इतिहास लेखन इन सब में अलग स्थान रखता है. पुरुषों द्वारा लिखी गयी सभी पुस्तकें वह चाहे बाबर की तुजुक ही क्यों न हो, राजनीतिक दावेदारियों, युद्ध और जीत की रणनीतियों से भरी है. इसके बनिस्पत गुलबदन बेगम ने घरेलू वातावरण के झरोखे से मुग़ल सत्ता के इतिहास को लिखने की कोशिश की है. उनका लिखा हुआ स्मृति और इतिहास के बीच एक मद्धम रेखा से विभाजित होता है. बेगम केवल विजय की बात नहीं लिखती बेगम उस समय का वर्णन भी बखूबी करती है जब बादशाह युद्ध पर जाता है और कई वर्षो तक उसकी कोई खबर नहीं मिलती. विजय के पैगाम पर हरम की क्या प्रतिक्रिया होती थी, बादशाह की मौत का भावनात्मक पहलू केवल बेगम को पढने वाले ही जान सकते हैं. बेगम के लेखन में तिथियों के उल्लेख का अभाव है लेकिन इससे मुग़ल परिवार, उनके बीच के आपसी सम्बन्ध, संस्कार, मुग़ल महिलाओं की स्थिति आदि के बारे में गहन जानकारियां हासिल होती हैं. संक्षेप में कहे तो एक स्त्री की नजर से मुग़ल राजसत्ता को देखने में बेगम की पुस्तक मददगार है.

गुलबदन ने अपना बचपन पिता बाबर के शासन काल में काबुल और हिन्दुस्तान में बिताया, जवानी में वह हुमायूँ के अच्छे-बुरे दिनों की साक्षी रही. इन दोनों के शासन काल की हर आम और ख़ास घटना के राजनीतिक पक्ष के साथ-साथ भावनात्मक पक्ष को भी बेगम ने बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा है. दुर्भाग्यवश हुमायूँनामा की केवल एक अधूरी पाण्डुलिपि उपलब्ध है जो ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है. इसमें हुमायूँ के 1553 तक के शासनकाल का वर्णन है. गुलबदन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष अकबर के शासन काल में सुखपूर्वक व्यतीत किये. सलीम के विद्रोह के वक़्त बेगम ने अकबर से सलीम के साथ माफ़ी की दरख्वास्त की थी. 1603 की फ़रवरी में बेगम को ज्वर आया और वह कुछ अचेत सी हो गई तब अकबर की माँ हमीदा बेगम जो उनके साथ थी. आँख बंद पड़ी बेगम को हमीदा ने पुकारा “जीउ”.कुछ देर बाद आँखे खोलकर बेगम ने कहा- मैं तो जाती हूँ, तुम जीओ. इस तरह अंतिम आशीर्वाद देते हुए बेगम ने दुनियां को अलविदा कह दिया.

अकबर ने स्वयं उनके जनाजे को कन्धा दिया था जो अकबर का उनके प्रति अनुराग को दर्शाता है. इस तरह इतिहास लेखन में महिलाओं की ध्वजवाहक गुलबदन बेगम अपनी कृति की बदौलत धीरे से इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गयी.
(Gulbadan Banu Begum)

अपर्णा सिंह

इतिहास विषय पर गहरी पकड़ रखने वाली अपर्णा सिंह वर्तमान में सोमेश्वर महाविद्यालय में इतिहास विषय ही पढ़ाती भी हैं. महाविद्यालय में पढ़ाने के अतिरिक्त अपर्णा को रंगमंच पर अभिनय करते देखना भी एक सुखद अनुभव है.

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इसे भी पढ़ें: दुश्मनों को धूल चटाने वाली बाबर की नानी ‘ईसान दौलत खानम’

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