Featured

पहाड़ के इस सरकारी स्कूल में प्रवेश के लिए अभिभावकों की भीड़

पहाड़ में पलायन का एक बड़ा कारण शिक्षा का अभाव है. पहाड़ों में पिछले कुछ सालों में 3000 से अधिक प्राथमिक विद्यालय बंद किये जाने की खबर आती रहती है. इस विद्यालयों को बंद किये जाने का कारण बच्चों का न होना बताया जाता है. स्तरीय शिक्षा न उलब्ध करा पाने के कारण आज कोई भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं डालना चाहता. पहाड़ के प्राथमिक स्कूलों के आंगन में लोगों की कतार या तो किसी चुनाव के दौरान लगती है या सरकारी योजना की खानापूर्ति के समय ऐसे में अगर कपकोट ,बागेश्वर जैसी जगह में एक सरकारी स्कूल के आंगन में अभिभावकों की भीड़ अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने को खड़ी मिले तो सहज आर्श्चय होना लाजमी है.
(Government Primary School Kapkot Admission)

फोटो: दैनिक जागरण से साभार

दैनिक जागरण अख़बार में पिछले दिनों घनश्याम जोशी  की एक रिपोर्ट छपी- उत्तराखंड का ऐसा सरकारी स्कूल, जहां एडमिशन के लिए मची मारामारी. यह खबर बागेश्वर जिले के कपकोट की है जिसके अनुसार राजकीय प्राथमिक विद्यालय कपकोट में बच्चे के स्कूल में दाखिले हेतु अभिभावक सुबह नौ से शाम पांच बजे तक चटक धूप में लाइन पर खड़े रहने को मजबूर हैं. उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि उनके बच्चे का एडमिशन होगा या नहीं. एक ऐसे समय जब सरकारी शिक्षण संस्थानों को लोग कोसते नहीं थकते तब कपकोट के इस स्कूल में ऐसा क्या है कि अभिभावक अपने बच्चे को इसी स्कूल में दाखिला दिलाना चाहते हैं जबकि इलाके में करीब दर्जनभर निजी स्कूल हैं.

स्कूल की इस कायाकल्प का श्रेय स्कूल के प्रधानाध्यापक ख्याली दत्त शर्मा और उनकी टीम के अन्य शिक्षक सदस्य मंजू गढ़िया, हरीश ऐठानी, अजय तिवारी आदि. इस स्कूल के अध्यापकों की मेहनत का नतीजा है कि स्कूल में छात्र संख्या 30 से बढ़कर आज 284 हो गयी है. स्कूल के हर साल करीब तीन बच्चों का सैनिक स्कूल घोड़ाखाल में चयन होता है अब तक करीब 15 बच्चों का चयन सैनिक स्कूल घोड़ाखाल हो चुका है. इस स्कूल के कई बच्चों का चयन जवाहर नवोदय और राजीव नोवदय स्कूलों के लिये भी हुआ है. अपने कुल के बच्चों की मदद के लिये शिक्षकों की यह टीम सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक उपलब्ध रहती है.

शिक्षकों की यह टीम द्वारा बच्चों की स्कूली शिक्षा के अतिरक्त प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूरा सहयोग देती है. हर बखत सरकारी शिक्षकों और शिक्षा प्रणाली को कोसकर सरकारी स्कूलों को बंद किये जाने की बातों को तवज्जो देने वालों को आकर इस स्कूल को देखना चाहिये और समझना चाहिये कि आज देश और विदेश में बड़े-बड़े पदों में बैठे पहाड़ के लोग इन्हीं सरकारी स्कूलों से निकले हैं. जरूरत स्कूल बंद किये जाने के बजाय स्कूल में ईमानदार प्रयास करने की है.

न्यौली चिड़िया से जुड़ी कुमाऊनी लोककथा

-काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

7 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

7 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

7 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

7 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

7 days ago