साभार http://petter.bobupndown.comफोटो
जिला नैनीताल के सरकारी अस्पतालों में दवाएं खत्म हो चुकी हैं. कुछ ही दवाएं सीमित मात्रा में शेष हैं. बच्चों से लेकर बड़ों तक की दवाएं ख़त्म होने से मरीजों की मुश्किलें बढ़ सकती है. नैनीताल जिले में भी सीएचसी ,पीएचसी के अलावा 58 यूनिटों में दवाइयों की कमी है. कुछ दवाएं पूर्ण रूप से खत्म हो चुकी है. दवाओं की खरीद स्वास्थ्य महानिदेशक के स्तर से होती है. हैरानी की बात है कि बच्चों के इलाज में प्रयोग होने वाली एंटीबायोटिक सीरप तक उपलब्ध नहीं है. साथ ही उल्टी रोकने की दवाएं भी नहीं है. सीएससी,पीएससी में दवाएं कम ही शेष रह गईं है. जल्द दवाओं की खरीद नहीं की गयी तो दवाओं के खत्म होने से मरीजों को दोहरी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा.
जिला बागेश्वर जनपद में अल्ट्रासाउंड करने आए कई दर्जनों रोगियों को बैरंग वापस घर लौटना पड़ा. जिला अस्पताल बागेश्वर में अल्ट्रासाउंड मशीन है लेकिन रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टर अवकाश पर गए हुए हैं. अस्पताल में अल्ट्रासाउंड नहीं हो सकें. अल्ट्रासाउंड के लिए दूर -दराज से काफी गर्भवती महिलाएं और गंभीर रूप से बीमार रोगी पहुंचें थे. डॉक्टर 28 अगस्त तक अवकाश पर हैं. अभी तक कोई भी अस्थायी व्यवस्था नहीं की जा सकीं है, जिसके कारण मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा अस्पताल में कैल्शियम की दवा ख़त्म हो चुकी है. जरुरतमंदों को एक गोली तक नहीं मिल पा रही है. पुरे बागेश्वर जनपद के सभी सरकारी अस्पतालों का ऐसा ही हाल है. मरीजों को दवा बाज़ार से खरीदनें के लिए विवश होना पड़ रहा है.
मरीजों को दवाएं ख़त्म होने के अलावा आए दिन सुशीला तिवारी अस्पताल में खराब हो रही मशीनें भी मरीजों के लिए समय और आर्थिक नुकसान का कारण बन रही हैं. पिछलें कुछ दिनों में ही एमआरआई मशीन तीन बार खराब हो चुकी है. सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड की मशीनें भी कई बार खराब हो चुकी है. हज़ारों रूपये का वेतन लेनें वाले इंजीनियर एवं विशेषज्ञ आखिर अस्पताल में क्या करते हैं, सवाल बना हुआ है. बेस अस्पताल में सिटी स्कैन की मशीन लम्बे समय से खराब है. स्वास्थ्य महानिदेशक के निरिक्षण के बाद भी मशीन ठीक नहीं हो सकीं है. दवाएं कम है. कुछ जरुरी दवाएं अस्पताल नहीं है. अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी हैं. गिनती भर तकनीशियन हैं. मशीनें आये दिन खराब हो रही है. सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाएं मरीजों के लिए संतोषजनक कार्य करने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहीं है. गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के मुखिया स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं. जिन्होंने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में सुधार को सरकार का मुख्य अजेंडा बताया हैं.
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जिन्हें लगता है शासन करने वाले जमात की केवल पार्टी बदल जाने से चीजें बदल सकती हैं वे अब कहां हैं?