नागपुर की सड़क पर डबल कार्बोरेटर वाली कार जिसके गद्दों के कवर खुद शिकार किए गए जंगली जानवरों की खाल से सज्जित हों, को तेज रफ़्तार से दौड़ाने वाला एक युवा. भारत के राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रपति भवन में घुटनों से ऊपर तक की एक सफ़ेद धोती लपेटे, पैरों में नीले हवाई चप्पल पहने डॉ. भीमराव अन्तराष्ट्रीय पुरस्कार एक बूढा जर्जर आदमी. कम लोग ही इस बात पर यकीन करेंगे कि दोनों ही बातें एक ही आदमी के बारे में हो रही हैं. नाम है बाबा आमटे पूरा नाम डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे.
बाबा आमटे 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में एक धनी और संपन्न परिवार में जन्मे थे. बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में बाबा आमटे के पिता देवीदास हरबाजी आमटे की जमींदारी थी जो शासकीय सेवा में लेखपाल थे. बाबा आमटे को बाबा इसलिए नहीं कहा जाता की वह कोई संत महात्मा थे, उनके परिवार और उनके माता-पिता उनको बाबा कह कर पुकारते थे. बाबा आमटे की प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा नागपुर के मिशन स्कूल से हुई. फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढाई की उसके बाद उन्होंने वकालत का काम शुरू कर दिया.
बचपन में राजकुमार की तरह जीवन जीने वाले बाबा आमटे ने चौदह साल की उम्र में ही अपनी निजी बंदूक खरीद ली थी. शिकार के शौकीन बाबा आमटे को महंगी गाड़ियों का खूब शौक था. उनकी स्पोर्टस कार के सीट कवर चीते की खाल के बने होते. हालीवुड फिल्मों के बेहद शौकीन बाबा आमटे अंग्रेजी में फिल्म समीक्षा भी लिखते थे. उनके द्वारा लिखी गयी फिल्म समीक्षा भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में मशहूर हुआ करती थी. कहा तो यहां तक जाता है कि उनके द्वारा लिखी एक फिल्म की समीक्षा से 1930 की ऑस्कर विजेता और मैरी एंटोनेट ( 1938 ) की मशहूर अमरीकी अभिनेत्री नोर्मा शीयर इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने बाबा आमटे के नाम एक बधाई सन्देश तक भेजा था.
बाबा आमटे आज़ादी के समय शुरुआत में भगत सिंह और उनके साथियों के साथ जुड़े. भगत सिंह और राजगुरु से मिलने वे लाहौर की जेल तक गये थे. इन्हीं दिनों उन्होंने भारत भ्रमण किया भारत की गरीबी की हालत देखकर बाबा आमटे काफ़ी विचलित हो गये. इस दौरान उनकी मुलाक़ात गांधी से हुई. कुछ समय बाद गांधी के संपर्क में आने के बाद वह गांधीवादी विचारों से इतने प्रभावित हुए कि पूरा जीवन गांधी के आदर्शों के पथ पर ही बिताया. 1942 में जब भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ तो अंग्रजों ने आपरेशन जीरो ऑवर के तहत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर दिया था. बाबा आमटे ने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान कई कांग्रेसी नेताओं का केस लड़ा था.
एक बार जबलपुर रेलवे स्टेशन में कुछ अंग्रेज सैनिक एक महिला के साथ अभद्रता कर रहे थे. जब बाबा आमटे ने यह देखा तो उन्होंने तुरंत इसका विरोध किया. सैनिकों ने बाबा आमटे के साथ मार-पीट तक कर दी. खून से लाल बाबा आमटे इसके बावजूद स्टेशन मास्टर के पास गये और सैनिकों की अभद्रता के विषय में बताया. इस घटना की जानकारी जब महात्मा गांधी को हुई तो महात्मा गांधी ने बाबा आमटे को “अभय साधक” का नाम दिया.
बाबा आमटे का विवाह इंदु घुले (साधना आमटे) से हुआ था. उनकी पत्नी भी उनके साथ सामाजिक कार्यो में भाग लेती थी और कदम से कदम मिलाकर जनसेवा करती थी. दोनों के बीच अथाह प्रेम था. दिलीप चिंचालकर अपने एक लेख में लिखते हैं कि बाबा धर्मपत्नी साधनाताई को पूरा सम्मान देते थे. सामने राष्ट्रपति हों या शंकराचार्य, बाबा अपने उद्बोधन को सबसे पहले प्रिय साधना का नाम लेकर ही शुरू करते थे. सन 1979 में मुंबई में सुलभा और अरविंद देशपांडे के घर बाबा पधारे थे. संयोग से उस दिन उनका जन्मदिन था. सुबह नाश्ते के समय रेखा वसंत पोत्दार, जो एक एयरलाइन में काम करती थीं, बाबा के लिए केक बनाकर ले आईं. वहां विष्णु चिंचालकर, नाना पाटेकर और 8 वर्षीय स्कूली लड़की उर्मिला मातोंडकर भी मौजूद थे. जब रेखा ने बाबा के सामने केक रख कर हैप्पी बर्थडे कहा तो कमरे में चुप्पी छा गई. सब लोग तनाव में थे कि अब विस्फोट होगा परंतु मुस्कुराते हुए बाबा ने केक काटा और पहला टुकड़ा अपनी पत्नी साधना को खिलाया. सार्वजनिक मंच से अपना नाम सुनकर जिन्हें कभी संकोच नहीं हुआ होगा वो साधना ताई पति के इस प्रेम प्रदर्शन से लजाकर लाल हो गईं. उन क्षणों का साक्षी बनकर न सिर्फ मैं बल्कि मेरा डिब्बा कैमरा भी निहाल हो गया.
भारत की आजादी के बाद बाबा आमटे का नाम उन कम लोगों में शामिल है जिन्होंने सही मायने में गांधीवादी विचारधारा का पालन किया. बाबा आमटे का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए आनन्दवन नामक संस्था की स्थापना का था. बाबा आमटे ने कुष्ठरोग संबंधी सारा ज्ञान प्राप्त किया और बरोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ “आनन्दवन” की स्थापना की. इस समय उनकी उम्र 35 साल थी. तब उन्होंने एक पेड़ के नीचे आनन्दवन की स्थापना की थी. आज वह एक विशाल रूप धारण कर चुकी है. वर्तमान में आनंदवन और हेमलकसा ग्राम में एक-एक अस्पताल है. आनंदवन में एक यूनिवर्सिटी, एक अनाथाश्रय और अंधोंं और गरीबों के लिए एक स्कूल भी है. आज स्व-संचालित आनंदवन आश्रम में तक़रीबन 5000 लोग रहते है. आनन्दवन के साथ ही उन्होंने एक अन्ध विद्यालय की स्थापना भी की. गरीब, बेसहारा बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उन्होंने गोकुल नामक संस्थान का गठन व संचालन किया. उनके कार्यों के लिये भारत सरकार ने 1971 में उन्होंने पद्मश्री के पुरूस्कार से सम्मानित किया.
जब अस्सी के दशक में पंजाब के भीतर खालिस्तान आन्दोलन अपने चरम पर था तब उन्होंने पंजाब में जाकर ‘भारत जोड़ो’ आन्दोलन की शुरुआत की थी. इस आन्दोलन को बाबा आमटे कश्मीर से कन्याकुमारी तक ले गये थे. 1985 में बाबा आमटे को उनके कार्यों के लिये रैमन मैगसेस पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया.
1990 के दशक में बाबा आमटे नर्मदा आंदोलन से जुड़े. मार्च 1990 में उन्होंने बड़े बाँध पीड़ितों की खातिर आनंदवन छोड़ नर्मदा किनारे बसने का फैसला किया. नर्मदा नदी पर बनने वाले बड़े बाँधों के कारण मप्र के कई क्षेत्र डूब में आ रहे थे. उन्हें बचाने के लिए बाबा ने राजघाट (बड़वानी) के समीप अपनी कुटिया बना ली और डूब पीड़ित परिवारों की खातिर आंदोलन चलाया. हजारों आदिवासियों के विस्थावपन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टेक ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया.
बाबा आमटे ने आनंदवन छोड़ते समय कहा था कि अपने प्रिय आनंदवन से विदा होने का अब समय आ गया है. आनंदवन, जहाँ मैंने आनंद की दुनिया में प्रवेश किया, आनंदवन जो कि मेरे संपूर्ण अस्तित्व का प्रतीक है. मैं जा रहा हूँ, नर्मदा मैया में उस शांति को प्राप्त करने जिसकी अभिलाषा पूरी मानव जाति को है.’
बाबा आमटे ने दो काव्य संग्रह लिखे हैं. जिनके नाम ‘ज्वाला आणि फुले’ और ‘उज्ज्वल उद्यासाठी’. इन कविताओं में बाबा आमटे के संघर्ष की छवि देखने को मिलती है.
बाबा आमटे के पुत्र प्रकाश आमटे और विकास आमटे आज भी बाबा आमटे के सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं. बाबा आमटे ने वास्तविक रूप से गांधी के विचारों को आगे बढ़ाया. अस्पृश्यता के अंत की जो बात गांधी के समय तक शुद्र वर्ग तक सीमित थी उसे बाबा आमटे ने एक कदम आगे बढ़कर कुष्ठ रोगियों तक पहुंचाया और समाजसे पूरी तरह निकाले गये कुष्ठ रोगियों की मदद कर एकबार फिर से उन्हें समाज में उचित सम्मान दिलाया. बाबा आमटे का सिध्दांत था ‘परोपकार मानव को नष्ट करता है और कार्य मानव को बनात्ता है.’
– काफल ट्री डेस्क
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