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छापाए दिल इतना न उछालो

अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 18
अमित श्रीवास्तव

छापे के दौरान एक सरकारी कर्मचारी के मेज की दराज़ से बरामद हुई एक डायरी में ये प्रलाप मिला जिसके बाएं हाशिये पर कृपया ‘अ’ के संबंध में अपनी स्पष्ट टिप्पणी/आदेशित करना चाहें  लिखा हुआ था, पूरी टिप्पणी को एक बड़े से कोष्ठक में दबाया गया था और एक तरफ “अ” लिखा हुआ था. “अ” ये था-

छापे एवं स्टिंग के संबंध में नियमावली का प्रस्ताव मुख्यालय भेजने विषयक आपके आदेश के क्रम में आपके संज्ञान में लाना है कि गत माह कार्यालय के सात छापे, आठ स्टिंग और नौ इनके बीच की कोई चीज़ हो चुकी है. वरिष्ठ पद से ज्यादा छापे के मौके के इन्तजार में हैं, कनिष्ठ वरिष्ठ के ऊपर स्टिंग के. अब ये समझना ज़रा मुश्किल है कि हम जो फ़ाइल कर रहे हैं वो छापे के क्रम में है, स्टिंग के दबाव में या वास्तविक. अतः प्रबंध इस बात का किया जाए कि-

छापों की अधिकतम संख्या निर्धारित की जाए. माह में तीन से ज्यादा छापे/स्टिंग न किये जाएं.  अपरिहार्य परिस्थितियों में यदि आवश्यक हो तो कारण स्पष्ट करते हुए उस छापे/स्टिंग को घेलुआ समझा जाए.

एक अधिकारी को तीन से ज्यादा छापे का अधिकार न हो. यदि इससे ज्यादा की उसे तलब लगे तो `वर्चुअल छापा विभाग’ बनाकर उसे वहाँ पोस्ट किया जाए.

एक कर्मचारी को कम से कम तीन छापे/ स्टिंग से मुक्त रक्खा जाए एवं चौथे से ही उस पर प्रशासनिक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए.

जो लोग छापे या स्टिंग से घबराकर अच्छी परफोर्मेंस देने लगते हैं उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही सुनिश्चित हो क्योंकि वो नियमतः गलत हैं. सापेक्षिता के प्रशासनिक सिद्धांत के अनुसार आप पर हुए छापे या स्टिंग की परिणति अगले के ऊपर छापे या स्टिंग में ही होनी चाहिए. ये ऐसी खुजली हैं जो दूसरे की पीठ पर खुजा कर ही आराम मिलता है. अतः सभी को स्टिंग/छापे का समान अवसर मिलना सुनिश्चित हो.

संलग्नक: भगवान को लिखा मेरा खुला पत्र

ओम स्टिंगाए नमः स्वाहा: छाप छापाए नमः

हे भगवन वाइरल हो गया है. न… न आजकल खांसी-जुखाम-बुखार के अलावा भी बहुत कुछ वाइरल हो सकता है. किसी गाय का रम्भाना वाइरल हो सकता है, किसी गाने का बनाया जाना, किसी मूर्ती की टांग पर चीटें की चढ़ाई, बादल से गिरती एटीएफ की बरसात, बन्दूक की नोक पर पेशाब करता कोई चूहा, कुछ भी वाइरल हो सकता है. वाइरल होना अब किसी बीमारी का लक्षण नहीं लेकिन फिर भी ये अन्तराष्ट्रीय रोग है.

आजकल एक स्टिंग वाइरल हुआ है. जब से ये स्टिंग मार्केट में आया है न्यूज़ चैनेल वाले इस दस मिनट के स्टिंग वीडियो को पन्द्रह-पन्द्रह सेकेण्ड के चालीस टुकड़ों में चार सौ विज्ञापनों के साये में, आठ एक्सपर्ट की मेंटल जिमनास्टिक के साथ, चौबीस घंटे में पच्चीस बार दिखा चुके हैं. एक इसे अपना `एक्सक्लूज़िव स्टिंग’ बताता है, दूसरा हमारे चैनेल पर `सबसे बड़ा खुलासा’ का जुमला देता है, तीसरा और आगे बढ़कर `खबर का असर’ तक पहुंचा देता है. इधर पुलिस मुकदमा लिखने-न लिखने, गिरफ्तारी करने-न करने के बीच अदृश्य आवाजाही गुन रही है उधर न्यायालय ये कहलवा रहा है कि उसके दरवाजे दोनों पार्टियों के लिए खुले हैं. सच ही है भगवन तुम्हारे इस लोकल घर में अंदर जाने के तो बीसियों दरवाजे हैं बाहर आने का ये लोग बनाना भूल गए. वहीं जनता स्टिंग देखते-पकते बार-बार चैनेल बदल कर `कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ पर आ जा रही है.

भगवन, छापा और स्टिंग इक्कीसवीं सदी को इन दो महान आविष्कारों के लिए अगर जाना नहीं जाएगा तो पहचाना ज़रूर जाएगा. जाना इसलिए नहीं जाएगा क्योंकि न तो ये इक्कीसवीं सदी की औलाद हैं और न ही इन्हें पश्चिमी सभ्यता ने हमें उपलब्ध कराया है. नियमतः जो वेस्टर्न है वही सत्य है वही हॉट है वही शिव है वही हैपेनिंग है वही सुन्दर है.

आप तो जानते ही हैं, हमारे यहाँ प्राचीन काल से ही इन दोनों संहारक-पोषक विधाओं की उपस्थिति रही है. देश, काल एवं वातावरण के हिसाब से रूप अलग-अलग रहा है. यहाँ तक कि पौराणिक आख्यानों में भी इनके व्याख्यान हैं. कहते हैं ( वैसे यहाँ कहने सुनने समझने से ज्यादा मानने का चलन है फिर भी जाने कौन लोग हैं जो कहते हैं) कि भगवान राम ने हनुमान को दरअसल रावण का स्टिंग करने भेजा था लेकिन उन्होंने गलती से छापा मार दिया. मातहत के कॉन्सेप्ट अगर क्लीयर न हों तो ऐसी गलतियां हो जाती हैं. (लोग तो ये भी कहते हैं कि उन्हें अशोक वाटिका में पेड़ों में कैमरा इंस्टाल करना था लेकिन… बातें हैं बातों का क्या). इधर महाभारत में एक संजय हुए हैं जो स्टिंग कला के माहिर बताए जाते हैं. चूंकि ध्रितराष्ट्र अंधे थे इसलिए संजय ने ग्राउंड से ए वी लिया फिर फूटेज में से वी हटाकर सिर्फ ऑडियो उन्हें सुनाया. (पीला वाला तार हटा लिया होगा).

कालान्तर में ये कला और निखरी जब राजे-महाराजे-बादशाह अपनी रियाया का हाल जानने के लिए रात रात भर घूमकर खुद स्टिंग करते थे और फिर दिन में उसी समस्या पर छापा मारकर सुलझा देते थे. इस लिहाज से छापे और स्टिंग का गहरा नाता है. इनके अंतर्संबंध थोड़े पेचीदे हैं जैसे-

स्टिंग का स्टिंग हो सकता है छापे का छापा नहीं हो सकता.

स्टिंग का छापा नहीं हो सकता छापे का स्टिंग हो सकता है.

छापे में प्रश्न पूछना अनिवार्य है जवाब सुनना नहीं. वैसे भी पूछने वाला हमेशा बड़ा जानकार होता है. `ही नोज़ एवरीथिंग एंड एनीथिंग अंडर द सन’ वाली बात है. स्टिंग में जवाब ज़रूरी है उसे तोड़ने की सुविधा भी ज़रूरी है.

छापा आपको स्वयं मारना पड़ता है स्टिंग किसी और से भी करवा सकते हैं. उसके लिए आजकल प्रोफेसनल एजेंसीज़ खड़ी हो गई हैं. इस तरह के विज्ञापन आम बात हो गए हैं-

`हर तरह के स्टिंग में एक्सपर्ट. ऑडियो, वीडियो फॉर्मेट के अलावा एनीमेशन के द्वारा पूरे स्टिंग का रिकंस्ट्रक्शन घर बैठे प्राप्त करें. एडिटिंग एवं मोर्फिंग की सुविधा कम दरों पर उपलब्ध. हमारा टोल फ्री नंबर है….

नोट- किसी विशेष मीडिया हॉउस में टाइम स्लॉट प्राप्त करवाने का अतिरिक्त शुल्क लगेगा.’

क्या बताऊँ भगवन दरअसल आजकल सरकारें नियम, क़ानून, बजट, योजना जैसी वायवीय चीजों से नहीं वरन छापे और स्टिंग जैसे यथार्थवादी उपादानों की वजह से चल रहीं हैं.

हे भगवन अब तुम मुझसे अच्छे स्टिंग के गुण सुनो! अच्छा स्टिंग वो है जिसमे स्टिंगभोक्ता को स्टिंग होने की भनक तब लगे जब स्टिंग सार्वजनिक होने-होने को हो. ऐसे में जैसे बारिश जब होने-होने को होती है, तो मौसम घुमड़ सा जाता है, अक्सर घबराकर पसीना छोड़ देता है कुछ इसी ही कैफ़ियात होती है उसकी. या फिर तब लगे भनक जब स्टिंगकर्ता के भयादोहन से कार्य संपादन या मुद्रादोहन जैसे इरादों की सनक की भनक भी साथ-साथ लगे. ऐसे में मदारी-जमूरे जैसे जज़्बात उभरते हैं. या तो वो खेल दिखाता है या खेल जाता है. अच्छे स्टिंगकर्ता को चाहिए कि जब तक उसे स्टिंग सार्वजनिक करने वाला सहूलियत भरा समय न आता दिखे वो उसे उसी तरह दबाए रक्खे जैसे बालि ने रावण को कांख में दबाकर तीन लोकों के दर्शन करा दिए थे. वो चाहे तो इसे भोक्ता की गर्दन भी समझ सकता है.

हे विधाता, एक बार एक अधिकारी को व्यापारी द्वारा अपना स्टिंग किये जाने की भनक स्टिंग होते-होते ही लग गई. उसने सोचा कि निजता-विजता का कुछ मामला बनाकर पुलिस को फोन करता हूँ. फिर उसने सोचा कि अरे वो तो खुद एक पुलिसवाला है. समस्या यही है कि आजकल पुलिसवाले भूल जा रहे हैं कि वो पुलिसवाले हैं. वो खुद को संदेशवाहक समझ लेते हैं. अभिनेता भूल जाता है कि वो अभिनेता है, वो तेल की शीशी बन जाता है. खिलाड़ी भूल जाता है कि वो खिलाड़ी है, वो खुद को नटबोल्ट मान बैठता है. अब क्या हो. उस अधिकारी ने एक बेल पर जेल से आए अपराधी मित्र को फोन किया. उस मित्र ने इस स्टिंग का स्टिंग कर लिया. अब रिश्ते पेचीदे हो गए लेकिन मामला सुलट कर सीधा हो गया. अब जब व्यापारी पुलिसवाले को फोन करता है पुलिसवाला अपराधी को अपराधी व्यापारी को. जब पुलिसवाला अपराधी को फोन करता है अपराधी व्यापारी को व्यापारी पुलिसवाले को. क्यों और किस बावत का आंकलन आप स्वयं कर लें. अमरीका में इसे `चेक एंड बैलेंस’ कहते हैं अर्थशास्त्र में `बैलेंस ऑफ पेमेंट’ और साहित्य में `विरुद्धों का सामंजस्य’.

छापा थोड़ी अलहदा चीज़ है भगवन. पहले ये अचानक पड़ जाता था लेकिन अब दिखने में तो ऐसा लगता है कि ये बस अचानक पड़ गया, लेकिन ये पूरी तैयारी से सोच समझ कर पड़ता है. अच्छा छापाकर्ता मुह उठाए आता लगता है जबकि वो कान सटाए-फोन घुमाए आता है. घटनास्थल पर वो मुह बिचकाए-आँख दिखाए रहता है और जब जाता है तो नाक फुलाए-कलम घिसटाए (अब मौके पर जेब भराए-पेट फुलाए तो नहीं हो सकता न) जाता है. फोन घुमाए का तात्कालिक असर (छापे के दीर्घकालिक असर जैसी किसी चीज़ के होने में मुझे गहरा शक है) ये होता है कि मीडियाकर्मियों की फ़ौज की अल्प कालीन मौज हो जाती है.

लस्क/ लछाक

-आज क्या खास है चैनेल हेड पूछता है

-सर एक मंत्री का स्टिंग है सड़क के ठेके के लिए पैसे मांग रहे हैं और एक छापे का वीडियो

-ओके गुड… पहले स्टिंग चला दो छापा इसके रिस्पोंस के बाद देखेंगे कि आज ही चलाना है या बाद में

-लेकिन सर एक गड़बड़ लग रही है

-वाट

-सर छापा भी इन्हीं मंत्री जी ने मारा है कंस्ट्रक्शन साईट का और इन्हीं पर स्टिंग भी हुआ है टेंडर के मामले में ‘ज़रा कंसीडर कर लें’ को लेकर

-ठीक है प्राइम टाइम को आधा-आधा कर लो एक भाग देव रूप एक दानव रूप, नहीं, ऐसा करो स्क्रीन को आधा-आधा कर लो एक भाग रक्षक एक भक्षक, नहीं, ऐसा करो दर्शकों के दिमाग को आधा-आधा कर दो…

कृपया उक्त संदर्भित पत्र के क्रम में…

इसके बाद आपका परम भक्त और कृपया संज्ञानित होना चाहें जैसा कुछ था. आख़िरी लाइन में हस्ताक्षर की जगह लाल स्याही से कुछ गालियाँ लिखी गईं थीं जो सबको पता हैं इसलिए यहाँ देने का कोई औचित्य नहीं है. लस्क/लछाक का पूरा तर्जुमा लेखक के बस की बात नहीं है, आप जान सकें तो उसे यू ट्यूब पर डाल दें, वाइरल हो सकता है.

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

(पिछली क़िस्त:आन्दोलन, सिफ़ारिश और ब्रीफकेस)

 

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता).

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Girish Lohani

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