नैनीताल माउन्टेनियरिंग क्लब के बेमिसाल 50 साल
-प्रमोद साह
1953 में एडमंड हिलेरी व शेरपा तेनजिंग द्वारा एवरेस्ट फतह किए जाने के बाद माउन्टेनियरिंग तथा एडवेंचर स्पोर्ट्स ने विश्व स्तर पर युवाओं का ध्यान बड़ी तेजी से आकृष्ट किया. उन्हीं दिनों सी. आर. एस. टी कॉलेज नैनीताल के युवा अध्यक्ष चंद्र लाल शाह के मस्तिष्क में भी पर्वतारोही बनने की धुन सवार हो गई. लेकिन परिवार के इकलौते पुत्र होने के कारण पर्वतारोही बनने की राह रुक गई. तो भी अयारपाटा जहां उनका घर था, नैनी झील स्नो व्यू, टिफन – टॉप, चारों तरफ नैनीताल में फैला नैसर्गिक सौंदर्य मानो बार बार उनको और पास बुलाता, चुनौती पेश करता कि तुम क्या डर कर बैठ जाओगे? हार मान लोगे?
इसी मन: स्थिति से संघर्ष करते हुए उनके नेतृत्व में सी.आर.एस.टी कॉलेज का पहला पिंडारी अभियान 1964 में पिंडारी ग्लेशियर पहुंचा जिसने पर्वतारोहण के प्रति आपकी रुचि को और गहरा कर दिया. 1965 में नेहरू माउन्टेनियरिंग इन्सटीट्यूट (निम) की स्थापना उत्तरकाशी में हुई. जिसके पहले प्रधानाचार्य ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह के संपर्क में आप आए और 1968 में सी.आर.एस.टी. कालेज का दूसरा दल पिंडारी ग्लेशियर अभियान में पहुंचा. जब यह दल वापस नैनीताल आया तो नैनीताल माउंटेनियरिंग क्लब की स्थापना का ब्लू प्रिंट उनके मस्तिष्क मे तैयार हो चुका था.
इस अभियान को लेकर पूरे देश में एक अलग तरीके का उत्साह था. इस अभियान की दैनिक प्रगति का विवरण उस वक्त आकाशवाणी से भी प्रसारित किया जा रहा था. नंदा घाट फतेह के साथ ही क्लब का शुमार देश के बड़े माउंटेन्यरिंग क्लब में हो गया. बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा पर्वतारोहण का प्रशिक्षण क्लब से प्राप्त किए जाने लगा, बहुत तेजी से क्लब के नेतृत्व में लगातार कई बड़े पर्वतारोहण अभियानों का संचालन भी किया गया. इनमें महत्वपूर्ण 1974 में क्लब के वर्तमान अध्यक्ष अनूप शाह के नेतृत्व में नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व का शैक्षणिक शोध अभियान भी था जिसमें नंदा देवी के उत्तर में 16000 फीट में एक नया तालाब जिसे ऋषिताल नाम दिया गया, की खोज की गई. 1977 में केदार डोम अभियान, 1989 में उंटा -धूरा अभियान जो कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ता है, संपन्न किया गया.
1990-91 मे क्लब की गतिविधियां बहुत बढ़ गई. इस वर्ष सात अभियान संपन्न किए गए जिनमें चार हिमाचल प्रदेश में थे. 1990 मे ही मैकतोली चोटी को भी फतह किया गया. 1994 में ट्रेल पास अभियान पूरा हुआ और 1997 में निम उत्तरकाशी के सहयोग से महिला पर्वतारोही सदस्यों का एक दल चंद्रप्रभा एतवाल के नेतृत्व में श्रीकंठ पर्वत पर भेजा गया जो सफल रहा.
क्लब के इतिहास में सब कुछ सुखद ही नहीं रहा. 3 जून 1981 को एक दुर्भाग्यशाली सूचना गोमुख क्षेत्र उत्तरकाशी से आई, जहां 21000 फीट की ऊंचाई पर अभ्यास करते हुए क्लब के तत्कालीन अध्यक्ष श्री चंद्र लाल साह जी के पुत्र निर्मल साह और और पर्वतारोही प्रतिमान सिंह हिमालय की गोद में चिरनिद्रा मे सो गए. थोड़े समय तक क्लब की गतिविधियों में ठहराव आया लेकिन 1983 में निम के प्रधानाचार्य रिटायर्ड कर्नल बी सी जोशी द्वारा क्लब को अवैतनिक सेवाएं देने से क्लब ने फिर नई ऊंचाइयां प्राप्त की.
सितंबर 1992 में क्लब के एक बेहद प्रतिभावान पर्वतारोही रतन सिंह बिष्ट मैकतोली अभियान में बर्फीले तूफान में फंस कर मृत्यु को को प्राप्त हुए. इन पचास सालों के सफर मे एवरेस्ट अभियान में शामिल शहीद मेजर हर्ष बहुगुणा मेमोरियल स्टोर ने, क्लब के अभियानों में लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध करा कर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. नैनीताल माउंटेनियरिंग क्लब अपनी स्थापना से आज तक एनडीए/सीडीएस के जेंटलमैन कैडेट्स, पुलिस अधिकारियों, पुलिस के जवनों, विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों तथा देश विदेश के अन्य साहसिक युवाओं को अपने विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रशिक्षण दे चुका है, जिनकी संख्या 40000 से अधिक है. 29- 30 सितम्बर को नैनीताल पर्वतारोहण कलब अपनी स्थापना के 50 वर्ष पर स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित कर रहा है जिस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजीव शर्मा जी हैं. साथ ही इस कार्यक्रम में इंडियन माउंटेनिययरिंग फेडरेशन के अध्यक्ष कर्नल जे. एस चौहान, एवरेस्ट माउंटेनियर लवराज धर्मसक्तू सहित माउंटेनियरिंग के क्षेत्र में स्थापित बहुत से महत्वपूर्ण हस्ताक्षर उपस्थित रहेंगे.
प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.
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