कहते हैं, संसार का सबसे निरापद और स्वादिष्ट जीव बकरी है. उस पर अगर वो पहाड़ी हो तो क्या कहने. पहाड़ की खुली जलवायु के बीच निर्द्वंद्व विचरण करने वाला यह जीव कितना स्वादिष्ट होता होगा, स्वाद-लोलुप लोग इसका अंदाज लगा सकते हैं.
पहाड़ों में नर बकरे का कम जिक्र होता है हालाँकि किशोर बकरे के लिए ‘हिल्वाण’ और जवान के लिए ‘बोकिया’ शब्द का प्रयोग किया जाता है मगर सबसे लोकप्रिय शब्द स्त्रीलिंग ‘बकरी’ ही है.
शायद यही कारण है कि वह संसार का सबसे असुरक्षित जीव है. किसी को नुकसान पहुँचाने की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती. इसीलिए लोग कहीं से भी उसका कान पकड़कर उसे खींच ले जाते हैं. बकरी मौसी समझती है कि उसे प्यार से पकड़ा गया है, इसलिए वो नटखट बच्चे की तरह उसे सताती है, जैसे बच्चा माँ को तंग करता है. मगर उसे क्या मालूम कि उसे हलाल के लिए ले जाया जा रहा है.
पहाड़ी बकरी का सबसे प्रिय भोजन ‘तित्पाती’ (कड़वी पत्ती) है. यह सदाबहार पौधा कहीं पर भी पैदा हो जाता है. खासकर पथरीली चट्टानों में यह मजे से झूमता रहता है. कभी अगर आपने बकरी को तित्पाती खाते हुए देखा हो तो आपको पता चलेगा कि स्वाद का सुख क्या होता है. जितनी तेज गति से बकरी ध्यानस्थ होकर पत्ती का चर्वण करती है, उसे देखकर किसी शैतान के मन में भी यह बात नहीं आ सकती कि इस निरीह जीव को खाना चाहिए.
मगर विडम्बना देखिए, बकरी का झटका करने के लिए गाँवों के लोग उसका गला काटने वाले ‘बड्याठ’ को पीछे छिपाकर दूसरे हाथ से उसे तित्पाती दिखाते हैं. बकरी का पूरा ध्यान जब तित्पाती के स्वाद में डूबा रहता है, वो क्रूर हत्यारा बड्याठ की ‘थ्याच्च’ के साथ उसका काम तमाम करते हुए उसके स्वाद को छीनकर अपना बना लेता है.
पहाड़ों में स्त्रीलिंग सब एक जैसे ही होते हैं. निरापद, करुणा और स्नेह से भरपूर और बकरी की तरह उकाव (चढ़ाई) में भी रेस लगाने वाली. भागने और स्वाद लेने में बकरी की कोई नक़ल कर ही नहीं कर सकता. आपने किसी पहाड़ी किशोरी को धूप में बैठकर चटखारे लेते हुए भांगा-काले नमक से सना पहाड़ी नींबू खाते देखा है?
उसकी नक़ल करने की कोशिश न करें. जैसे तीखी पहाड़ी पर दौड़ती पहाड़ी बकरी खुद तो साफ बच निकलती है मगर उसकी नक़ल करता जीभ लपलपाता आदमी फिसलकर इतनी दूर जा गिरता है कि घाटी के चारों कोनों में उसकी आवाज भी नहीं सुनाई देती.
लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही‘ हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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