उत्तराखंड सरकार ने इस साल मार्च में इन ग्लेशियल झीलों से जुड़े खतरों का आकलन करने के लिए दो विशेषज्ञ टीमों का गठन किया था. इस टीम ने उत्तराखंड में ऐसी 13 ऐसी चिह्नित ग्लेशियर झीलें का अध्ययन किया जो जोखिम की दृष्टि से संवेदनशील हैं. विशेषज्ञ टीम की रिपोर्ट के अनुसार इन13 झीलों में 5 झीलें उच्च जोखिम वाली झील हैं.
(Glacial Lakes of Uttarakhand)
इन पांच झीलों में तीन झील पिथौरागढ़ जिले में और एक चमोली जिले में चिन्हित है. उच्च जोखिम वाली झीलों में पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी में मौजूद प्यूंग्रू और एक अवर्गीकृत, लासरयांघाटी मबान और कुटियांगटी घाटी में एक अवर्गीकृत झील शामिल हैं. चमोली जिले में धौली गंगा बेसिन की वसुधारा ताल उच्च जोखिम वाली झीलों में शामिल है. समुद्र तल से 4,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर स्थित ये झीलें 0.02 से 0.50 वर्ग किलोमीटर के बीच हैं.
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि हिमालय के ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में हैं और कोई अप्रिय घटना न घटे इसके लिये निरंतर जांच की आवश्यकता है. जुलाई के पहले सप्ताह से पांच संभावित उच्च जोखिम वाली झीलों का बैथिमेट्री अध्ययन शुरू कर रही हैं. इस अध्ययन से झीलों के आकार, ग्लेशियर कैसे बने और कैसे पिघल रहे हैं आदि के विषय में सही और सटीक जानकारी मिलेगी.
(Glacial Lakes of Uttarakhand)
पिछले दशक में उत्तराखंड में हुई दो बड़ी आपदाओं का कारण बड़ी ग्लेशियल झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) से आई बाढ़ को बताया जाता है. जून 2013 में केदारनाथ घाटी में झील फटने से 6,000 लोगों की मौत हुई थी और फरवरी 2021 में चमोली की ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियल झील फटने से बाढ़ आई जिसमें 72 लोगों की जान चली गई थी.
आपदा प्रबंधन सचिव के अनुसार इन पांचों हाई रिस्क ग्लेशियर झीलों की मॉनिटरिंग और मिटीगेशन के लिए एक टेक्निकल एक्सपीडिशन भेजा जा रहा है. मिटीगेशन यानी न्यूनीकरण के लिए ग्लेशियर झीलों की परिस्थितियों को देखते हुए, वहां पर डिस्चार्ज क्लिप पाइप्स डाले जाएंगे ताकि झील को पंचर करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सके.
(Glacial Lakes of Uttarakhand)
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