घुघूति बासूती
आमा कां छ?
खेत में छ.
कि करन रे छ?
(Ghughuti Basuti Uttarakhand Children Songs)
दुनिया के किसी भी कोने में जब ये शब्द कान में पड़ते हैं तो आंखें बंद हो जाती हैं और सुकून से भरा एक चित्र बनता हैं. सांसें हल्की होती हैं और चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ आंखें हल्की नम हो जाती हैं.
पहाड़ में बचपन बिताने वाले हर शख्स ने ऐसे न जाने कितने गीत सुने होंगे, ऐसे कितने ही गीत बचपन के साथियों के साथ गाये भी होंगे. पर समय इतनी तेजी से चलता गया कि इन गीतों को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना हर कोई भूल गया.
इन जरूरी गीतों का संकलन किया है हेम पन्त ने. पिथौरागढ़ के रहने वाले हेम के इस संकलन को डिजायन देकर एक ईबुक का रूप दिया है बागेश्वर के विनोद सिंह गड़िया ने. इस ईबुक को नीचे गये लिंक से आप भी डाउनलोड कर सकते हैं.
TinyURL.com/Ebook-Uttarakhand-ChildrenSong
लाड़ से भरे सभी बालगीत कुमाऊंनी भाषा में हैं. इस ई-बुक को नाम दिया गया है घुघूति-बासूति. इसका दूसरा भाग भी जल्द प्रकाशित किया जायेगा. जिसमें गढ़वाली भाषा के बालगीतों का संकलन किया जायेगा. Ghughuti Basuti Uttarakhand Children Songs
बालगीत की इस किताब को ख़ास बनाता है बच्चों द्वारा बनाये गये चित्र. वसुधा, वत्सल और मीनाक्षी द्वारा बनाये गये चित्र इसे अधिक आकर्षित बनाते हैं. उत्तराखंड गाये जाने वाले इन पारम्परिक गीतों में स्थनीय लोकजीवन, रहन-सहन, रीति-रिवाज, पर्व, खानपान, धर्म, दर्शन, और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश होता है. आज भी गावों में बड़े बुजुर्ग अपने नाती-पोतों के साथ इन्हें गुनगुनाते मिल जायेंगे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…