त्यार ही तो वह बीज है जो नई पीढ़ी को पहाड़ से जोड़कर रखता है. अपने गांव और घर से दूर रहने वाले पहाड़ी के भीतर अगर कहीं पहाड़ मौजूद है तो उसका एक मजबूत कारण उसके अपने त्यार ही तो हैं. दूर देश-परदेश में रसोई के भीतर से निकली अपने पारम्परिक पकवानों की सुगंध भीतर कैसा सुकून देती है इसे घर से दूर रहने वाला पहाड़ी ही जान सकता है. पकवानों की यह सुगंध ही तो है जो भीतर पहाड़ को पालती पोसती है फिर पहाड़ के जटिल जीवन ने ही तो हमें उत्सवों में खुशियां ढूंढ लेना सिखाया है.
(Ghee Tyaar 2023)
आज मसांत है यानी महीने का आखिरी दिन. आज के शाम पहाड़ियों के घर पकवानों की सुगंध से सरोबार रहेंगे. पूड़ी, उड़द की दाल की पूरी व रोटी, बड़ा, पुए, मूला-लौकी-पिनालू के गाबों की सब्जी, ककड़ी का रायता थाली में परोसे जायेंगे. कल सुबह बनेगी गाड़ी खीर और उस पर डलेगा ताज़ा घी. कल का दिन कहलाता है घी त्यार.
जैसा की पहाड़ियों के हर त्यौहार से जुड़ा एक वैज्ञानिक पहलू जरुर होता है उसी तरह घी त्यार का भी अपना एक वैज्ञानिक पहलू है. दरसल यह मौसम बदलने का समय है. अब बारिश कम होना शुरू होता है.
बारिश के मौसम को स्थानीय बोली में चौमास कहा जाता है तो अब चौमास के खत्म होने का समय है. अब मौसम पहले के मुकाबले बेहतर होगा. धूप निकलने से बारिश के मौसम की लसड़-पसड़ भी अब कम होगी. संभवतः पहाड़ के पुरखों ने अगले मौसम की मेहनत के लिये कमर कसने को ही इस दिन को चुना हो.
(Ghee Tyaar 2023)
बाकी असल पहाड़ी तो यह जानते ही हैं कि घी त्यार के दिन घी न खाने क्या होता है.
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