बरसात के बाद मौसम में पहाड़ हरी लम्बी घास से लद जाते हैं. इस घास का प्रयोग यहां के लोग अपने जानवरों को खिलाने के लिये करते हैं. इन दिनों हरे पहाड़ों के बीच लाल-पीली रंगीन साड़ियों में पहाड़ की महिलायें जंगलों में घास काटती खूब नज़र आती हैं.
घास से भरे पूरे पहाड़ को एक ही महीने में तो जानवरों को खिलाया नहीं जा सकता इसलिये पहाड़ में लोग इस घास को इक्कट्ठा कर लेते हैं और बनाते हैं घास का लूटा.
घास के लूटे आप उत्तराखंड के गांवों में लगभग हर घर में देख सकते हैं. आश्विन और कार्तिक के महीनों में पहाड़ों में हुई घास को यहां के लोग सूखा कर रखते हैं और सर्दियों में और ऐसे मौसम जब खेती का काम अधिक होता तब अपने जानवरों को खिलाते हैं.
पहाड़ में इन घास के लूटों का अत्यंत महत्त्व है क्योंकि सर्दियों में यहां महीना ऐसा गुजरता है जब आप घर से बाहर भी नहीं निकल सकते ऐसे में पहाड़ के लोग न केवल अपने लिये बल्कि अपने जानवरों के लिये भी चारे का इंतजाम रखते हैं.
घास के लूटे बनाने के लिये सूखी घास का प्रयोग किया जाता है. घास के लूटे में सबसे छोटी ईकाई घास का एक पुला है. इकठ्ठा किये घास के एक गठ्ठर को एक पुला कहा जाता है. पहाड़ों में महिलायें पीठ में घास के बड़े-बड़े गठ्ठर लेकर जाती हुई अक्सर देखी जाती हैं पीठ में लगे घास के एक गठ्ठर को एक भारी कहा जाता है.
अगर घास छोटी होती है तो एक भारी में पंद्रह से अठारह पुले होते हैं और अगर घास लम्बी होती है तो एक भारी में दस से बारह पुले होते हैं.
घास के एक लूटे में दस से अधिक भारी लगती हैं. लूटा बनाने के लिये सबसे पहले एक लकड़ी को जमीन में गाड़ा जाता है और उसके बाद यदि जमीन में नमी हो या दीमक लगने का खतरा हो तो सबसे नीचे पेड़ की छोटी टहनी या पत्ते बिछाये जाते हैं उसके ऊपर घास के पुले लगाये जाते हैं.
बीच में जमीन धसी लकड़ी के चारों और गोलाई में घास के पुले एक-एक के ऊपर एक बिछाये जाते हैं जिनकी संख्या ऊंचाई के साथ कम होती जाती है. पहाड़ के गांवों में बने घास के यह लूटे उनकी मेहनत के प्रतीक हैं.
उत्तराखंड के गावों में बने लूटों की तस्वीरें देखिये :
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