गढ़वाल की प्रचलित लोकगाथाओं के अनुसार गंगू रमौल टिहरी जनपद में स्थित सेम-मुखीम क्षेत्र के मौल्यागढ़ (रमोलगढ़) का रहनेवाला एक नागवंशी सामंत था. इसका सम्बन्ध भगवान् श्रीकृष्ण से जोड़ा जाता है जिसके सम्बन्ध में अनेक जनश्रुतियां प्रचलित रही हैं. कुछ का कहना है कि युवावस्था में भगवान् श्रीकृष्ण जब अपने भाई बलराम और गुरु संदीपनी के साथ बद्रीनाथ की यात्रा पर गए थे तो उन्हें रमोली का यह क्षेत्र बहुत आकर्षक लगा था और वे काफी समय के लिए यहीं रह गए.किन्तु कुछ अन्य लोगों का यह मानना है कि भगवान कृष्ण ने स्वप्न में जब इस क्षेत्र को देखा तो उन्हें यह बहुत मोहक लगा. उस समय यहाँ का सामंत गंगू रमोला था. भगवान श्रीकृष्ण ने उसके पास अपने दूत भेजकर उससे अपने आवास के लिए मात्र ढाई हाथ भूमि देने का प्रस्ताव किया किन्तु गंगू ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि जो आज छल से ढाई हाथ भूमि मांग रहा है कल वह सारे क्षेत्र पर अधिकार जमा लेगा.
कहते हैं गंगू बड़ा घमंडी और हठधर्मी सामंत था लेकिन उसकी पत्नी मैनावती और पुत्र सिदुआ-बिदुआ बड़े वीर, दयालु एवं कृष्ण भक्त थे. एक बार अपने भक्तों के प्रेमवश जब श्रीकृष्ण एक जोगी के वेश में रमोला के घर पहुंचे तो उस्की पत्नी और पुत्रों ने उनका विशेष सत्कार किया. किन्तु गंगू ने उन्हें अपमानित कर वहां से निकाल दिया. इससे क्रुद्ध होकर भगवान ने रमोली को अकालग्रस्त होने का श्राप दे डाला. इसके फलस्वरूप वहां के खेतों में अन्न उगना बंद हो गया, हरियाली सूखने लगी, दुधारू पशुओं ने दूध देना बंद कर दिया, पशु मरने लगे, जलस्रोत सूखने लगे और नारियां बाँझ होने लगीं. चारों ओर हाहाकार मचने लगा. इस अप्रत्याशित विपत्ति को देख कर गंगू घबरा गया. उसने भगवान से क्षमा याचना की. उसके अनुनय-विनय पर भगवान ने उसे क्षमा कर दिया और उसे वहां पर सात नाग मंदिरों का निर्माण कराने का आदेश दिया. इनमें से एक स्थान पर उसने अर्जुन और भीम नामक दो वृक्ष रोपे और एक प्राकृतिक लिंग एवं एक पाषाणशिला के रूप में नागराज भगवान् श्रीकृष्ण की स्थापना की. यही वह पूजास्थल है जो नागराजा के मन्दिर के रूप में उत्तराखंड में सेम मुखेम धाम के नाम से विख्यात है.
इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि जब गंगू ने सप्तनागों के मंदिरों का निर्माण शुरू कराया तो वह दिन में जितना भी निर्माण कराता वह रात्रि को समाप्त हो जाता. भगवान् की इस लीला से हारकर उसने भगवान् से अपने पिछले आचरण से क्षमा मांगते हुए उनसे सदा-सदा के लिए यहीं बस जाने का अनुरोध किया. इस पर उसे क्षमा कर दिया गया और भगवान श्रीकृष्ण नागराजा के रूप में यहीं स्थापित हो गये.
(प्रो. डी. डी. शर्मा की पुस्तक ‘उत्तराखण्ड ज्ञानकोष’ के आधार पर)
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Kafal Tree के whatsapp gruop कुछ दिन पूर्व ही जुड़ा हूँ और उसमे दी जा रही जानकारी से लाभान्वित हो रहा हूँ. | ए-मेल में दी गयी जानकारी में प्रोफेसर डी.डी. शर्मा के उत्तराखण्ड ज्ञान कोष से उधृत गंगू रमौल और सेम मुखेम में स्थित नागराज मदिर शीर्षक में गंगू रमौल की पत्नी का नाम मैनावती बताया गया गया है जबकि अन्य कई संदर्भों में उसकी दो पत्नियां इजुला और बिजुला का जिक्र है | इस तथ्य का स्पष्टीकरण मिल सके तो आभार \