रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी की दूरी पर एक गांव है ककड़ाखाल. साल 1921 में जब कुमाऊं के बागेश्वर जिले में कुली बेगार को खत्म करने के लिए आन्दोलन जारी था तब इसी गांव से उस समय के ब्रिटिश गढ़वाल में कुली बेगार को खत्म करने के लिए आन्दोलन की शुरुआत हुई. (Anusuya Prasad Bahuguna)
जब आन्दोलन से आस-पास के गाँव के लोग जुड़े तो आन्दोलनकारियों की संख्या सैकड़ों में हो गयी. ब्रिटिश सरकार जब इनसे बता करने पहुंची तो गांव वालों ने रात के अँधेरे में ही गांव से बाहर निकाल दिया. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इन पर बड़े जुल्म ढाये.
ककड़ाखाल के इस छोटे से गांव में आन्दोलन की अलख जलाने वाले शख्स का नाम अनुसूया प्रसाद बहुगुणा. इस आन्दोलन में नेतृत्व के बाद ही अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ‘गढ़केसरी कहलाये.
अनुसूया प्रसाद का जन्म गोपेश्वर में मंडल घाटी के प्रसिद्ध अनुसूया देवी मंदिर में 18 फरवरी 1894 को हुआ. इस मंदिर के नाम पर इनका नाम भी अनुसूया ही रख दिया गया. अनुसूया की प्रारम्भिक शिक्षा नन्दप्रयाग में हुई जिसके बाद आगे की शिक्षा के लिये वो पौड़ी और अल्मोड़ा भी गये. सन् 1914 में उन्होंने इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज से बी.एस.सी. और एल.एल.बी. की डिग्री पाप्त की. वह एक सफल वकील बने. (Anusuya Prasad Bahuguna)
साल 1934 में जब तत्कालीन वायसराय वेलिंगगटन की पत्नी गौचर में हवाई जहाज से उतरी तब अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने ही उनका स्वागत किया. 1937 के चुनावों में संयुक्त प्रातं की विधानपरिषद में गढ़वाल सीट से अनुसूया प्रसाद बहुगुणा चुने गये.
असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन दोनों में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने बढ़चढ़ कर भाग लिया. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा. व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान अनुसूया प्रसाद बहुगुणा एकबार फिर जेल गये. इसबार जेल में एक साल काटने के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और वे भारत छोड़े आन्दोलन में स्वास्थ्य कारणों से भाग नहीं ले पाये थे.
लगातार खराब स्वास्थ्य रहने के कारण अनुसूया प्रसाद बहुगुणा 23 मार्च 1943 के दिन उनकी मृत्यु हो गयी. (Anusuya Prasad Bahuguna)
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