इस परिवार की दूसरी फर्म जवाहरलाल जगन्नाथ प्रसाद नाम से बनी, जिसमें मिश्री गट्टा, बूरा का कार्य होता था. सदर बाजार, पियर्सनगंज क्षेत्र में इनका कारोबार था. लाला जगन्नाथ प्रसाद आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाता थे और निशुल्क रूप से लोगों को दवा वितरित करते थे. सन 1942 के करीब किसी फर्म के दीवालिया होने पर इस परिवार द्वारा उसे खरीद लिया गया. बरेली रोड में तब से इनका बगीचा भी है. जगन्नाथ जी को बगीचा संवारने व गौ पालन का शौक भी था. इनके पुत्र मेघश्याम अग्रवाल ने परम्परा से हटकर किराना और एजेंसियों का कार्य किया. मेघश्याम के नाम से आज भी सदर बाजार में प्रसिद्ध प्रतिष्ठान है. 6 जुलाई 1973 को मेघश्याम के असामयिक निधन के बाद इनके पुत्रों ने कारोबार को संभाला. इनके ज्येष्ठ पुत्र प्रदीप अग्रवाल इस समय पूरे कुमाऊं मण्डल में प्रिया गोल्ड के सुपर स्टाकिस्ट हैं और विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हैं. रामपुर रोड स्थित महाराज अग्रसेन भवन बनाने में भी प्रदीप अग्रवाल का बड़ा योगदान है, जो राकेश अग्रवाल जी के साथ मिलकर उन्होंने बनवाया.
मेघश्याम के आसमयिक निधन के बाद उनके दूसरे पुत्र अरविन्द कुमार अग्रवाल ने किराना का कारोबार संभाला. अग्रणी समाजसेवी अरविन्द कुमार ने बीएससी के बाद स्नातकोत्तर किया. लायन्स क्लब के संस्थापक सदस्यों में से रहे श्री अग्रवाल के ज्येष्ठ पुत्र विपुल अग्रवाल ने 2004 में लीक से हटकर मेघश्याम ज्वैलर्स फर्म स्थापित कर ली है जबकि कनिष्ठ पुत्र अंशुल गर्ग बिरला स्कूल नैनीताल के टापर हैं, जो किराना के कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं.
पुरानी हल्द्वानी और अपनी परम्परा को याद करते हुए अरविन्द अग्रवाल काफी भावुक हो जाते हैं और कहते हैं– ‘परम्परायें बनाई जाती हैं, परिवारों और समाज को जोड़ने के लिये. आज परम्पराओं का हम पालन नहीं कर पा रहे हैं. पहले दीपावली के दिन अपनी मुख्य फर्म में सभी खाते ले जाते थे और संयुक्त रूप से पूजा-पाठ के साथ ही खाते बदले जाते थे. अब अप्रैल से मार्च तक व्यापारिक सत्र मानकर खाते बदले जाते हैं. धार्मिक परम्पराओं के बहाने परिजन एकजुट होते थे. होली के अवसर पर भी एक-दूसरे के हाल-चाल जानने के लिए मिलते थे.’
सचमुच परिवारों की ऐसी समृद्ध परम्परायें और मेहनती लोगों ने हल्द्वानी नगर को बसाने में योगदान दिया है.
बात सन 1932 की है, श्याम सुन्दर बंसल ने गरूड़ (बागेश्वर) में गल्ले का कारोबार शुरू किया. उसके बाद सन 1939 में इन्होंने हल्द्वानी आकर तम्बाकू का कारोबार शुरू कर दिया. बंसल मूल रूप से सहारनपुर वेहट के पास पूर्वी यमुना नहर के किनारे आलमपुर ग्राम के रहने वाले थे. हल्द्वानी के पियर्सन गंज (वर्तमान मीरा मार्ग) में इनकी दुकान खुली.
इस परिवार के बुजुर्ग राजकुमार बंसल अपने बचपन को याद करते हुए बताते हैं कि तम्बाकू और पत्ते वाली सुर्ती लेने के लिए पहाड़ों से व्यापारी उनकी दुकान में आया करते थे. सीमान्त से आने वाले भोटिया व्यापारी तब रामनगर से भी सामान ले जाया करते थे. उस दौर में रेलवे बाजार में नाले के पास परसादी लाल हलवाई तथा बड़ी मस्जिद के निकट श्यामलाल हलवाई की दुकान थी. मालू के पत्तों का ठेका इन लोगों का था. मालू के पत्ते लेने के लिये जाने वाले लोगों, कामगारों को जलेबी मिठाई खिलाकर भी पत्ते दिया करते थे. बाद में कारोबारी श्यामलाल गुप्ता ‘कबाड़ी’ ने मालू के पत्तों का ठेका ले लिया था. द्वितीय विश्व युद्ध समय पैराशूट का कपड़ा, बूट इत्यादि जो बचा सामान था, वह सब श्यामलाल कबाड़ी बेचा करते थे. उस समय दो पैसे का मलाई वाला लड्डू मिलता था, जो अब किसी भी कीमत पर नहीं मिल सकता है.
वे बताते हैं कि सन 1961 में मात्र चार लोगों ने नसबन्दी करवाई तब आपरेशन का मतलब बहुत डरावना था. नसबन्दी करवाने वाले एक व्यक्ति ने उनसे कहा, ‘भाई साहब, नसबन्दी करवाने जा रहा हूं, आगे मुलाकात हो या न हो, मिलते जा रहा हूं.’ तब नैनीताल के रामजे अस्पताल में 26 रुपये जमा कर मरीज की जो भर्ती होती थी, उसमें नाश्ता, खाना, चाय, रात्रि का खाना यानी कि भरपूर सामग्री मिलती थी. यदि कोई मरीज अपनी जरूरत से कम खाना खाए तो डाक्टरों की टीम मरीज से खाना न खाने का कारण जानना चाहती थी. डा. रामलाल साह भी निरीक्षण में आया करते थे.
आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों को दूर-दूर तक भेजने एवं असाध्य रोगों की दवा उपलब्ध कराने के संकल्प के साथ सीताराम-अनिल कुमार फर्म का नाम प्रसिद्ध है. हल्द्वानी के सदर बाजार स्थित इनके प्रतिष्ठान में आज भी नवजात बच्चे से लेकर बूढ़े तक के मर्ज की दवा लेने व जानकारी के लिए लोग पहुंचते हैं. व्यवसाय के साथ समाजसेवी इस परिवार ने हल्द्वानी के सीतापुर नेत्र चिकित्सालय में काफी योगदान दिया है. बुलन्दशहर से 12 किमी आगे अनूपशहर के रहने वाले हरप्रसाद अग्रवाल 1934 में अल्मोड़ा आकर मुनीम बन गये. दो साल बाद वे हल्द्वानी आ गये. इनके परिवार में सबसे बड़े पुत्र वैद्य जमुना प्रसाद अग्रवाल थे.
इस बड़े परिवार की शाखाएं भी अब काफी फैल चुकी हैं. इसके बावजूद संयुक्त परिवार की छाया इसमें है. प्रभात कुमार बताते हैं कि पुराने समय में डाक्टरों की जगह वैद्य हुआ करते थे. उनके ताऊ जमुनाप्रसाद जी ने भी सन्त महात्माओं की संगत में कुछ जानकारियां जुटाई थी. लोग कैंसर, ल्यूकोरिया, खाज सहित तमाम बीमारियों की रोकथाम के लिये परामर्श और जड़ी लिया करते थे. इसी क्रम में उनके पिता सीताराम अग्रवाल ने भी जड़ी-बूटियों की जानकारी जुटाई और आयुर्वेद की दवा उनकी फर्म में मिलने लगी. पहले इस फर्म का थोक का कार्य था लेकिन बाद में इसे किराने का रूप दे दिया गया, लेकिन जड़ी-बूटियों के लिए उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक रही. प्रभात कुमार अग्रवाल चाहते हैं कि असाध्य रोगों का आयुर्वेदिक उपचार लोगों को सुलभ हो, इसके लिये वह उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटियों के थोक का कार्य करते हैं.
(जारी)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर
पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने- 57
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