भैरव मंदिर से आगे कि ओर जहाँ गुरुद्वारा है, उसके पीछे की गली जो कसेरा लाइन से दूसरी ओर मिलती है, पीपलटोला नाम से जानी जाती थी. यहाँ तवायफें रहा करती थीं और मुजरे के शौक़ीन लोग यहाँ जाया करते थे. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 14)
इस मोहल्ले को पीपलटोला नाम इस लिए दिया गया क्योंकि तब इसके दोनों ओर पीपल के पेड़ हुआ करते थे. आज भी इस मोहल्ले में पीपलेश्वर महादेव का मंदिर है. अब इस इलाके को पटेल चौक नाम से जाना जाता है. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 14)
गुरुद्वारा बनने से पहले रामलीला मैदान और पीपलटोला के मकानों की कतार के बीच मंदिर तक खुला चौड़ा मैदान था. उस दौर में पंसारियों की दुकानें कसेरा लाइन में थीं. और चौक बाजार में पालिका के स्वामित्व की पुरानी दोमंजिला इमारत के नीचे पुलिस चौकी थी.
1940 के आसपास हल्द्वानी में एकमात्र रेडियो नगर पालिका के पुलिस चौकी वाले मकान के दुमंजिले में लगा था. रेडियो खोलने व बंद करने की जिम्मेदारी पालिका के चौकीदार गंगादत्त की हुआ करती थी. राष्ट्रीय आन्दोलन व विश्व युद्ध कि खबरें सुनने के लिए लोग उसके आसपास इकठ्ठा हुआ करते थे.
पटेल चौक में 1974 के अग्निकांड के बाद बहुत बदलाव आया है. रामलीला मैदान के पास बड़े गुरुद्वारे से लगा आंवलेश्वर महादेव मंदिर यहाँ के पुराने मंदिरों में से एक है. मंदिर परिसर में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का कार्यालय था.
1957 में जब एनडी तिवारी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा तब उनका चुनाव निशान बरगद का पेड़ था. युवा चंद्रशेखर और उनके 5-7 साथी रिक्शे में चुनाव प्रचार किया करते थे.
उस समय हल्द्वानी का कोई भी शादी, समारोह भवानीदास वर्मा के बिना नहीं हुआ करता था. वे नक़ल उतारने के अलावा विशेष भाव, मुद्राओं वाले नृत्य भी किया करते थे. इनके बड़े भाई देवीलाल वर्मा ‘देविया उस्ताद’ तबला वादक थे.
(जारी है)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
पिछली कड़ी : इस तरह दीमकों ने चट कर दी हल्द्वानी के पुस्तकालय की किताबें
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